छोटी दिवाली से जुड़ी हैं, कई कहानियों की मान्यतायें
Choti Diwali: भारत में दीपावली एक ऐसा त्यौहार है, जो भारतीय संस्कृति के अन्य त्यौहारों में सबसे प्रमुख माना जाता है। लोग अपने परिवार के साथ मिलकर ईष्टों की पूजा करते हैं और नये कपड़ो को पहनकर, विभिन्न मिठाइयों के साथ, और साथ ही रंगोली बनाकर बड़े हर्षोल्लास से इस पर्व को मनाते हैं। पांच दिन के इस दीपोत्सव पर्व में धनतेरस, छोटी दिवाली, बड़ी दिवाली, भाई दूज, गोवर्धन पूजा त्यौहार शामिल होते हैं। जिसमें पहले छोटी दिवाली फिर अगले दिन बड़ी दिवाली मनाई जाती है। आपको बता दें छोटी और बड़ी दिवाली को त्यौहार के रुप में मनाने के पीछे अलग-अलग पौराणिक कथाओं की मान्यतायें हैं।
इसीलिये मनाई जाती है, छोटी दिवाली
Choti Diwali: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार प्रागज्योतिषपुर राज्य में नरकासुर नाम का एक राक्षस था, जिसने इंद्र को युद्ध में परास्त करके देवी मां की कान की बालियों को छीन, देवताओं और ऋषियों की 16 हजार बेटियों का अपहरण करके उनको अपने स्त्रीगृह में बंदी बना लिया था। नरकासुर को यह शाप था, कि उसकी मृत्यु एक स्त्री के हाथ ही होगी। स्त्रियों के प्रति नरकासुर के द्वेष को देख कर सत्यभामा ने कृष्ण से निवेदन कर उनके द्वारा चलाये जा रहे रथ में बैठ, युद्ध में नरकासुर का वध किया और सभी कन्याओं को छुड़वा लिया। वहीं इन महिलाओं को समाज में सम्मान दिलवाने के लिए कृष्ण जी ने इन महिलाओं से नरक चतुर्दशी के दिन विवाह कर लिया , जिसके बाद लोगों ने इस दिन अपने घरों में दीए जलाए थे। जिस दिन नरकासुर का वध किया गया, उस दिन चतुर्दशी तिथी थी और इसलिए इस दिन को ‘नरक चौदस’ कहा जाता है और यह दिन दीपावली के एक दिन पहले आता है इसीलिये इस दिन को छोटी दीपावली भी कहा जाता है।
छोटी दीवाली पर इस जगह होती हैं काली मा की पूजा
Choti Diwali: एक और कथा के अनुसार छोटी दिवाली के दिन काली ने नरकासुर नामक दानव का अपने हाथों से वध किया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, राक्षश नरकासुर माता भूदेवी का पुत्र था। नरकासुर की मृत्यु के पश्चात भूदेवी ने घोंषणा की थी, कि उनके पुत्र की मृत्यु के दिन को मातम के तौर पर नही, अपितु त्यौहार के तौर पर याद रखा जाए और इसलिए इस दिन पश्चिम बंगाल में काली चौदस के रुप में मनाया जाता है।