राज्यसभा की 56 सीटों के लिए हो रहे चुनाव में 41 उम्मीदवार निर्विरोध निर्वाचित हो गए हैं। 3 राज्यों यूपी, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक की 15 सीटों के लिए आज मतदान होना है। इन राज्यों में बीजेपी ने संख्याबल के आधार पर जितनी सीटों पर जीत सुनिश्चित है, उनके मुकाबले अतिरिक्त उम्मीदवार उतार दिया है। यूपी की 10 राज्यसभा सीटों के लिए 11 उम्मीदवार मैदान में हैं। कर्नाटक की 4 सीटों के लिए 5 और हिमाचल प्रदेश की 1 सीट के लिए 2 उम्मीदवार मैदान में हैं। यूपी विधानसभा की 4 सीटें रिक्त हैं और 403 सदस्यों वाली इस विधानसभा की स्ट्रेंथ 399 सदस्यों की है। 10 राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव हो रहे हैं। ऐसे में हर उम्मीदवार को जीत सुनिश्चित करने के लिए 37 विधायकों के प्रथम वरीयता के वोट चाहिए होंगे। भाजपा के पास सुभासपा, अपना दल, राष्ट्रीय लोक दल जैसे सहयोगी दलों को मिलाकर 286 विधायक हैं। राजा भैया की पार्टी जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के भी 2 विधायक हैं।
राजा भैया साफ कर चुके हैं कि उनकी पार्टी के विधायक भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में मतदान करेंगे। इस तरह संख्याबल 288 पहुंच जाता है। संख्याबल के आधार पर देखें तो भाजपा आठवें उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित करने के लिए जरूरी 296 प्रथम वरीयता के वोट के आंकड़े से 8 वोट पीछे है। दूसरी तरफ, सपा के 108 विधायक हैं जिनमें से एक इरफान सोलंकी जेल में बंद हैं। इरफान को वोटिंग की इजाजत नहीं मिली है। अब सपा की स्ट्रेंथ 107 विधायकों की बची।
कांग्रेस और सपा का गठबंधन है। कांग्रेस के भी 2 विधायक हैं। इस तरह सपा-कांग्रेस का संख्याबल 109 पहुंच जाता है। बसपा के एक विधायक का समर्थन भी अगर सपा हासिल कर ले तो संख्याबल 110 ही पहुंचता है जो 3 सीटें जीतने के लिए जरूरी 111 के आंकड़े से एक कम है। सपा ने हर एक उम्मीदवार को 37-37 विधायक भी आवंटित आवंटित कर दिए। यह भी कह दिया कि सभी उम्मीदवार अपने-अपने वोट डलवाएं, यह उनकी जिम्मेदारी होगी।
लेकिन, अब समस्या यह है कि सपा के 8 विधायक मतदान से ठीक पहले वाली रात अखिलेश यादव के डिनर से नदारद रहे। विपक्ष को इसके बाद अब क्रॉस वोटिंग का डर भी सता सताने लगा है। कहां सपा यह उम्मीद पाले थी कि जयंत चौधरी और ओमप्रकाश राजभर की पार्टी में जो उसके लोग हैं, वह जरूरत के समय अखिलेश के उम्मीदवारों का बेड़ा पार करा देंगे और कहां उसके अपने विधायकों के ही खिसकने का खतरा गहरा गया है।
दरअसल, सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अपने विधायकों को डिनर पर बुलाया था। इस डिनर में चायल विधायक पूजा पाल, गौरीगंज विधायक राकेश प्रताप सिंह, गोसाईगंज विधायक अभय सिंह, अमेठी विधायक महाराजी देवी, कालपी विधायक विनोद चतुर्वेदी, ऊंचाहार विधायक मनोज पांडेय, सिराथू विधायक पल्लवी पटेल और अंबेडकरनगर विधायक राकेश पांडेय नहीं पहुंचे। बीजेपी के पास आठवें उम्मीदवार की जीत के लिए प्रथम वरीयता के 8 वोट ही कम पड़ रहे हैं और अब सपा प्रमुख के डिनर से 8 विधायकों की गैरमौजूदगी से क्रॉस वोटिंग के कयासों को बल मिला है।
कर्नाटक में क्या चल रहा है?
कर्नाटक में राज्यसभा की चार सीटों पर चुनाव हैं. सूबे की सत्ताधारी कांग्रेस को चुनाव से पहले क्रॉस वोटिंग का डर सता रहा है। कर्नाटक विधानसभा की स्ट्रेंथ 225 सदस्यों की है। हर उम्मीदवार को जीत के लिए प्रथम वरीयता के 45 वोट की जरूरत है। कांग्रेस से तीन, बीजेपी और जेडीएस से एक-एक उम्मीदवार मैदान में हैं। कांग्रेस को तीनों उम्मीदवारों की जीत के लिए प्रथम वरीयता के 135 वोट चाहिए और पार्टी के 136 विधायक हैं। दो निर्दलीय समेत तीन अन्य विधायकों के समर्थन का दावा भी पार्टी कर रही है। इस तरह सत्ताधारी दल का संख्याबल 139 पहुंचता है जो जरूरी वोट से चार अधिक है।
वहीं, बीजेपी और जेडीएस गठबंधन के पास प्रथम वरीयता के 85 वोट हैं जो 2 सीटें जीतने के लिए जरूरी 90 से पांच कम है। भाजपा और जेडीयू के नेता भी अपने दोनो अपने दोनों उम्मीदवारों की जीत के दावे कर रहे हैं। कर्नाटक सरकार के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने हाल ही में यह आरोप भी लगाया था कि उनके विधायकों को प्रलोभन दिए जा रहे हैं। क्रॉस वोटिंग के खतरे को लेकर अलर्ट कांग्रेस ने व्हिप जारी करने के साथ ही अपने सभी विधायकों को एक होटल में ठहराया है। पार्टी ने विधायकों की मॉक वोटिंग भी कराई जिससे कोई वोट अमान्य होने की संभावनाओं को कम से कम किया जा सके।
हिमाचल प्रदेश की एक सीट के लिए हो रहे चुनाव में कांग्रेस ने अभिषेक मनु सिंघवी को उतारा है। 68 सदस्यों वाली हिमाचल विधानसभा में कांग्रेस के 40 बीजेपी के 25 विधायक हैं। 3 निर्दलीय भी सरकार का समर्थन कर रहे हैं। कांग्रेस का संख्याबल 43 पहुंचता है जो जीत के लिए जरूरी प्रथम वरीयता के 35 वोट से आठ अधिक है। लेकिन, भाजपा ने कांग्रेस से ही आए हर्ष महाजन को उतारकर मुकाबले को रोचक बना दिया है।
हर्ष पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह के करीबियों में गिने जाते थे। भाजपा को अपने उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित करने के लिए प्रथम वरीयता के 10 वोट की और जरूरत है। पार्टी को क्रॉस वोटिंग की उम्मीद है तो वहीं 2017 में सुजानपुर से प्रेम कुमार धूमल को हराने वाले राजेंद्र राणा के बागी तेवरों ने कांग्रेस की टेंशन बढ़ा बढ़ा दी है।
राज्यसभा चुनाव में 41 उम्मीदवार पहले ही निर्विरोध चुन लिए गए हैं। हालांकि, नतीजे औपचारिक रूप से 27 फरवरी को घोषित किए जाएंगे। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, केंद्रीय आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव और पूर्व कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी उन 41 उम्मीदवारों में शामिल हैं, जो निर्विरोध चुनाव जीतीं हैं। हालांकि, बाकी 15 सीटों पर कड़ा मुकाबला होने की उम्मीद है।
क्रॉसओवर वोटिंग का पूरा विवरण
संयुक्त राज्य अमेरिका के प्राथमिक चुनावों में, क्रॉसओवर वोटिंग उस व्यवहार को संदर्भित करती है जिसमें मतदाता उस पार्टी के लिए मतदान करते हैं जिसके साथ वे पारंपरिक रूप से संबद्ध नहीं हैं। बंद प्राथमिक चुनावों के मामले में भी, जिसमें मतदाताओं को अपनी राजनीतिक पार्टी से मेल खाने वाला मतपत्र प्राप्त करने की आवश्यकता होती है, क्रॉसओवर वोटिंग अभी भी हो सकती है, लेकिन मतदाताओं को अपनी राजनीतिक संबद्धता बदलने के लिए अतिरिक्त कदम उठाने की आवश्यकता होती है प्राथमिक चुनाव का।
मलेशिया में, इस प्रथा को पार्टी-हॉपिंग के रूप में जाना जाता है और संघीय कानून द्वारा निषिद्ध है। क्रॉसओवर वोटिंग के उद्देश्य कई प्रकार के होते हैं। क्रॉसओवर वोट अक्सर रणनीतिक होते हैं, हालांकि जरूरी नहीं कि ऐसा हो। यह प्रस्तावित किया गया है कि शरारती क्रॉसओवर वोटिंग सीमित है।
बीमा-उद्देश्यीय क्रॉसओवर तब होते हैं जब मतदाता अपनी पार्टी के प्राथमिक परिणामों को एक पूर्व निष्कर्ष के रूप में देखते हैं; उदाहरण के लिए, उनकी अपनी पार्टी का कोई उम्मीदवार बहुत पसंदीदा है या निर्विरोध चल रहा है, इसलिए उनकी सबसे अच्छी रणनीति किसी विरोधी पार्टी के लिए मतदान करना है। 2 प्रकार के बीमा-उद्देश्य वाले क्रॉसओवर मतदाता मौजूद हैं
सर्वश्रेष्ठ मतदाता एक विरोधी उम्मीदवार को वोट देने के लिए आगे आते हैं, जिसे वे विरोधी पार्टी के अन्य विकल्पों पर पसंद करते हैं, अगर उनकी अपनी पार्टी का उम्मीदवार आम चुनाव में हार जाता है। हो सकता है कि वे विरोधी दल के किसी ऐसे उम्मीदवार को आम चुनाव में पहुंचने से रोकने का प्रयास कर रहे हों जिसे वे नापसंद करते हों।
सकारात्मक रणनीतिक मतदाता अपनी ही पार्टी के प्रमुख उम्मीदवार से नाखुश हैं, और अपने पसंदीदा विकल्प को व्यावहारिक नहीं मानते हैं। इस प्रकार, वे उस उम्मीदवार को वोट देने के लिए आगे आते हैं जिसके बारे में उन्हें लगता है कि उसे आम चुनाव में मौका मिलेगा।
पार्टी पर छापेमारी
पार्टी पर छापा मारना एक रणनीति है जहां एक पार्टी के सदस्य विरोधी उम्मीदवार के लिए मतदान करके किसी अन्य पार्टी की प्राथमिक स्थिति में तोड़फोड़ करने का प्रयास करते हैं, जिसे वे अपनी पार्टी के उम्मीदवार के खिलाफ खड़े होने का मौका नहीं मानते हैं, या मतदान करते हैं ताकि दो या दो से अधिक के बीच विभाजित समर्थन को बढ़ाया जा सके। उस पार्टी के नामांकन के लिए दावेदार (विशेषकर राष्ट्रपति के लिए)।
पार्टी पर छापेमारी के प्रयास का एक उल्लेखनीय उदाहरण 2008 में डेमोक्रेटिक प्राइमरी में ऑपरेशन कैओस था, जब रश लिंबॉघ ने बराक ओबामा को राजनीतिक रूप से कमजोर करने के प्रयास में रिपब्लिकन को हिलेरी क्लिंटन को वोट देने के लिए प्रोत्साहित किया था। प्रयास अंततः असफल रहा। 2012 के रिपब्लिकन प्राइमरी में एक और घटना घटी, जहां मिशिगन में कई डेमोक्रेटिक मतदाताओं ने उनके अभियान को बाधित करने के लिए सामने चल रहे मिट रोमनी के मुकाबले कमजोर जीओपी उम्मीदवार रिक सेंटोरम को वोट दिया। यह प्रयास भी असफल रहा।
कुछ मामलों में, क्रॉसओवर वोटिंग तब हो सकती है जब मतदाताओं को लगता है कि विरोधी पार्टी का उम्मीदवार बेहतर है। इन क्रॉसओवर मतदाताओं को सच्चे समर्थक कहा जाता है, और वे बीमा या तोड़फोड़ के उद्देश्य से अपना वोट नहीं डाल रहे हैं।
कुछ मामलों में, क्रॉसओवर वोटिंग इसलिए भी हो सकती है क्योंकि मतदाता की संबंधित पार्टी के साथ पंजीकृत कोई भी उम्मीदवार दाखिल नहीं हुआ है, इसलिए यदि वे मतदान से परहेज नहीं करना चाहते हैं, तो उन्हें अपनी पार्टी के अलावा किसी अन्य पार्टी के उम्मीदवार का समर्थन करना होगा। क्रॉसओवर वोटिंग के इस रूप को कोई विकल्प नहीं कहा गया है।
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