बीजेपी- आप की सियासी नूराकुश्ती
दो साल बाद उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी इन राज्यों में सक्रिय हो गई है। आम आदमी पार्टी से राज्यसभा सांसद संजय सिंह कई महीनों से उत्तर प्रदेश में जमकर बैठे हैं और अलग-अलग मुद्दों पर योगी सरकार को घेरने की कोशिश करते नज़र आ रहे हैं। मुद्दा चाहे विधायक रहे निवेंद्र मिश्रा की हत्या का हो, या फिर चिकित्सा उपकरणों की खरीद में कथित घोटाले का। ऐसे में पूरे प्रदेश में संजय सिंह के खिलाफ 10 से ज्यादा FIR भी दर्ज हो गई हैं। हालांकि संजय सिंह के खिलाफ कार्रवाई में उत्तर प्रदेश सरकार की वो आक्रामकता नहीं दिखती, जैसी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू को लेकर है। सरकार की नीतियों के खिलाफ आवाज उठाने वाले अजय कुमार लल्लू आए दिन गिरफ्तार होते रहते हैं। लगभग एक महीना जेल में बिता चुके हैं ऐसे में सवाल ये उठते हैं कि क्या प्रदेश सरकार को आम आदमी पार्टी से कोई खतरा नहीं दिखता या फिर ये एक अलग तरह की सियासी रणनीति है ?
दरअसल देश की सियासत में लगभग दस साल पुरानी आम आदमी पार्टी और केंद्र की सत्ता पर 6 साल से काबिज बीजेपी एक जैसे मुद्दों और वादों के साथ कुर्सी पर काबिज हुई है। अन्ना के आंदोलन के बाद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी बनाई और दिल्ली की सत्ता पर काबिज हो गए। भ्रष्टाचार विरोधी इसी आंदोलन का एक चेहरा थीं तेज़तर्रार आईपीएस अधिकारी रहीं किरण बेदी, जिन्होंने केंद्र में बीजेपी की सरकार बनते ही पार्टी ज्वाइन कर ली और 2016 आते -आते पुडुचेरी की राज्यपाल बना दीं गईं। उस वक्त सीएजी की रिपोर्ट्स चर्चा में रही थीं, क्योंकि सीएजी विनोद राय की 2जी स्पेक्ट्रम के आवंटन पर दी हुई रिपोर्ट को भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का आधार माना गया था। केंद्र में एनडीए की सरकार बनने के बाद सीएजी रहे विनोद राय को बैंकिंग बोर्ड ऑफ इंडिया का चेयरमैन नियुक्त किया गया था। ये बात अलग है कि इस कथित घोटाले की लंबी जांच के बाद भी किसी भी आरोपी के खिलाफ सबूत नहीं मिल पाए और सीबीआई की अदालत ने सारे आरोपियों को बरी कर दिया था। इस आंदोलन में 2009 में बने विवेकानंद फाउंडेशन की भी बड़ी भूमिका रही थी। ऐसा कहा गया कि अन्ना हज़ारे, अरविंद केजरीवाल, किरण बेदी और रामदेव को एक साथ लाने और टीम अन्ना बनाने में इस फाउंडेशन ने अहम रोल निभाया। इस फाउंडेशन के डायरेक्टर हैं अजित डोभाल जो अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हैं।
बीते कुछ वक्त में कई ऐसे मुद्दे रहे हैं जिसपर अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी बीजेपी से सीधे दो-दो हाथ करने के मूड में नज़र नहीं आई है। चाहे वो दिल्ली में हुए दंगों का मामला हो या फिर अनुच्छेद 370 हटाए जाने का। कोविड 19 को लेकर केंद्र सरकार की स्ट्रैटेजी पर अरविंद केजरीवाल और केंद्र सरकार में कोई गतिरोध नहीं दिखा है। ऐसे में उत्तर प्रदेश में आम आदमी की सक्रियता सवाल खड़े करती ही है। यूपी- उत्तराखंड दोनों ही राज्यों में बीजेपी की सरकार है। जिस पार्टी की सरकार होती है उसे एंटी इनकंबेंसी का खतरा होता है। मौजूदा हालात में उत्तर प्रदेश में सरकार की छवि वर्ग विशेष के विरोधी के तौर पर बनी हुई है। खासकर ब्राह्मण वर्ग में पैदा हुए सरकार विरोधी माहौल का फायदा कांग्रेस या बीएसपी और एसपी को ना मिले इसीलिए आम आदमी पार्टी को मैदान में उतारा गया है। 2011 से ही बीजेपी की बी टीम रही आम आदमी पार्टी एक बार फिर बीजेपी को मजबूती देने के लिए मुस्तैद नज़र आ रही है। इसीलिए उनके नेता संजय सिंह उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों का मुद्दा जोर शोर से उठाते दिख रहे हैं। लगातार योगी आदित्यनाथ पर सीधे हमले करने के बावजूद इनके खिलाफ गिरफ्तारी की कार्रवाई नहीं हुई है।