पूरी दुनिया को अपनी चपेट में लेकर सम्पूर्ण मानव जाति को हैरानी-परेशानी के जाल में फंसाकर रख दिया है इस कोरोना वायरस ने…खासकर हमारे देश भारत में जिस तरह से अचानक कोरोना के पीड़ितों की तादाद में इजाफा हुआ वो चिंता की लकीरों को और भी गाढ़ा कर रहा है,लेकिन उससे भी ज्यादा जो चीज परेशान करने वाली है वो है देश में कोरोना के मरीजों के प्रति समाज और सरकारी तंत्र का व्यवहार…जी हां, आप भी सोच में पड़ गए होंगे कि जहां इन दिनों देश-दुनिया में चर्चा इस बात पर हो रही है कि इस पर काबू पाएं तो आखिर कैसे? और भारत तो पलायन की त्रासदी से दो-चार हो रहा है…ऐसे में कौन से पहलू पर चर्चा ले बैठे…तो आपको बता दें कि ये पक्ष भी उतना ही अहम है जितना कि कोरोना का इलाज…क्योंकि आज जो कोरोना से पीड़ित हैं, उन्हें इलाज और देखभाल के साथ जिस चीज की सबसे ज्यादा जरूरत है वो है मानवीय सलूक।
Covid-19 से ग्रसित लोगों से दूरी जरूर बनाएं लेकिन दिल में उनके लिए दूरी न रखें…क्योंकि वो खुद ही पीड़ित हैं…उन्हें आसामाजिक तत्व न समझें..ऐसेलोगों के साथ इंसानियत का व्यवहार करें…आज मुश्किल की घड़ी में सबसे बड़ी जरूरत है संवेदनशीलता की..क्योंकि पिछले कुछ दिनों से जो रिपोर्ट्स देखने को मिल रही हैं…उन्हें देखकर ये सोचने को मजबूर हूं कि जो खुद ही इस अनदेखी मुश्किल का मारा है, उसके साथ अपराधियों जैसा सुलूक कितना जायज है…किसी के घर के बाहर ये चस्पा कर देना कि वो या उसका परिवार कोरोना ग्रसित है ,ये कितना मानवीय है….या फिर किसी पर ये केस कर देना कि उसने जाने अनजाने ही संक्रमण को आगे बढाया…कितना तर्कसंगत है….कम से कम भारत जैसे देश में ऐसे व्यवहार देखना वाकई दुखद है क्योंकि अगर वो कामकाज की विवशता के चलते संक्रमण का शिकार हुए तो उनका क्या दोष?
प्रभावित लोगों के साथ अमानवीय व्यवहार क्या लोकतांत्रिक देश में वाजिब है…जहां बकायदा सिविल राइट्स हैं सबको बराबरी का हक मिला है…लेकिन जो व्यवहार आज हमारे देश में कोरोना पीडितों के साथ समाज और सरकारी संस्थाएं कर रही हैं वो न कानूनी तौर पर जायज है और न ही इंसानी लिहाज से….और न ही पुरातन काल से चली आ रही हमारी संस्कृति इसकी इजाजत देती है…ऐसे में बड़ा सवाल ये भी है कि फिर आखिर हम ऐसा कर ही क्यों रहे हैं…कहीं ये किसी की नकल करने का नतीजा तो नहीं…हो सकता है कि उनके देश-काल में ये वाजिब हो…इशारा आप समझ गए होंगे…लेकिन कम से कम जिस जीवन दर्शन के साथ भारत आगे बढ़ता रहा है वहां ऐसा नहीं होना चाहिए।
आज इस मुसीबत की घड़ी में जरुरत है कि हम कोरोना के मारे लोगों के प्रति दयाभाव दिखाएं…उन्हें भावनात्मक सहयोग दें….न कि उन्हें Untouchable जैसा महसूस कराएं…उन्हें दुनिया के सामने इसतरह से प्रोजेक्ट किया जा रहा है कि जैसे वो अपराधी हों…उनका ऐसा प्रतिकार क्यों…ऐसा अपमान क्यों?
जबकि सभी जानते हैं कि ऐसे लोग फिलहाल आपके सहारे,सद्भाव और संवेदना के पात्र हैं…और जिसतरह से देश के तमाम हिस्सों में कोरोना के खिलाफ जंग जारी है…उससे उम्मीद है कि जल्द हम मुश्किल से बाहर निकलेंगे….खासकर दिल्ली और केरल जैसे राज्य इस मुश्किल में उम्मीद की किरण जगा रहे हैं अगर काम नेकनीयती और जनकल्याण के इरादे से किया जाए तो परिणाम सकारात्मक ही आते हैं…कम से कम कोरोना त्रासदी के वक्त उनकी भूमिका खासी प्रभावशाली है…बिना आलोचना किए व्यवस्था दुरुस्त करने की लगन ही हमें इस मुश्किल से उबारने में कारगर होगी….लेकिन तब तक एक सबसे अहम काम जो आप और हम कर सकते हैं, वो है कोरोना के पीड़ितों के प्रति इंसानियत का व्यवहार क्योंकि जीवन के ऐसे वक्त में उन्हें हमारा साथ, देखभाल और प्यार चाहिए न कि तिरस्कार…उम्मीद है कि कोरोना काल में इंसानियत की इस कसौटी पर सौ फीसदी खरे उतरेंगे हम।
– वासिन्द्र मिश्र