हिंदुस्तान में सियासत के शिखर तक पहुंचने के लिए सियासतदां सफेद लिबास पहनते हैं.. ज़मीन से जुड़ाव के लिए खद्दर का सहारा लेते हैं..राजनीति के रास्ते पर शिष्टाचार की दुहाई देते हैं.. शुचिता और सद्चरित्र के सोपान पर सबसे ऊपर रहने का दंभ भरते हैं.. लेकिन कड़वी हकीकत ये भी है कि राजनीति का रण जीतने के लिए ‘दिल-मिले न मिले, हाथ मिलाते रहिए’ वाली कवाहत भी चरितार्थ करते रहे हैं।
उदाहरण चाहे जम्मू-कश्मीर में एक वक्त बीजेपी-PDP गठबंधन रहा हो… यूपी में लोकसभा चुनाव के दौरान सपा-बसपा की जुगलबंदी रही हो.. महाराष्ट्र की ‘महा अगाड़ी’ सरकार रही हो.. या बिहार में NDA सरकार.. बिहर की 243 सीटों के लिए विधासनभा चुनाव में करीब 6 महीने का वक्त ही बचा है.. बीजेपी के साथ मिलकर सत्ता के रथ पर सवार नीतीश कुमार की JDU… बिहार में NDA का सबसे बड़ा घटक है.. हालांकि साथ रहकर भी ये दोनों साथी रेल की पटरियों की तरह कई मुद्दों पर कभी एक नहीं दिखाई दिए.. चाहे NRC का मुद्दा हो, वंदे मातरम का गान हो, सेकुलरिज्म का सवाल हो…
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद को OBC समाज का सबसे बड़ा हिमायती बताते हैं.. लेकिन उन्हें भी पता है कि हालिया सियासी परिदृष्य में किसी एक तबके के बूते सत्ता हासिल की ही नहीं जा सकती.. लिहाज़ा CM के तौर पर वो सर्व समाज की बात भी करते हैं… बीजेपी भी हिंदुत्व वाली अपनी पुरानी रणनीति पर सॉफ्ट हिंदुत्व और सबका साथ वाला लबादा चढ़ा चुकी है.. बदलते माहौल के हिसाब से दोनों पार्टियों ने खुद को सेकुलर खांचे में फिट करने के लिए सियासी कसरत में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है.. इसे मौके की नज़ाकत कहें या सियासत का तकाज़ा कि NDA में एक साथ रहने वाले नीतिश कुमार बीजेपी से कई मायनों में जुदा तासीर दिखाते रहे हैं.. चाहे वो कट्टर हिंदुत्ववादी बीजेपी की छवि से उलट सर्व समाज को साथ लेने के नीतीश कुमार के कदम रहे हों.. जो कई बार रोज़ा इफ्तार पार्टियों में भी दिखाई पड़ते रहे हैं…
नीतीश कुमार पब्लिक पोस्टरिंग से अलग, सरकार चलाने के लिए NDA खेमे में रहना कबूल है कहने के साथ ही नीतीश ने सियासी तकाज़ों की भी कई बार नब्ज़ टटोली है. चाहे वो NRC, CAA या फिर देशभर में नया ट्रैफिक कानून लागू करने में केंद्र के खिलाफ जाकर ‘ख़ास’ वोटबैंक साधने का काम रहा हो.. नीतीश कुमार ने बेहद सधे हुए कदमों से राजनीतिक तराज़ू पर नफे-नुकसान का पलड़ा अपने हिस्से में झुकाया है. नीतीश जानते हैं कि उन्हें कहना कहा है… सुननी सबकी है.. और करनी अपने मन की है.. बावजूद इन तमाम विरोधाभासों के.. नीतीश की JDU और भारतीय जनता पार्टी शानदार सियासी दोस्त हैं… नाजु़क वक्त पर नपे तुले कदम… पॉलिटिक्स के पैमाने पर बैलेंस.. और तमाम विरोधाभासों और मतभेदों के बीच गठबंधन का धर्म निभाकर नीतीश और पीएम मोदी की दोस्ती नज़ीर भी बनती दिखी…
ट्रिपल तलाक पर भले ही देशभर में हो हल्ला हुआ हो, लेकिन नीतीश मोदी के साथ खड़े रहे… डिफेंस डील पर भले ही विपक्ष के निशाने पर NDA सरकार रही हो.. लेकिन नीतीश ने गठबंधन धर्म की मर्यादा कभी नहीं लांघी.. लेकिन इसका मतलब ये भी नहीं कि नीतीश NDA की हां में हां ही मिलाते रहे.. उन्होंने NCR और NPR को 2010 के नियमों के मुताबिक ही बिहार में लागू कराने की बात भी दो-टूक कह दी. मोदी सरकार 2.0 के वक्त हुए कैबिनेट बंटवारे से एक ओर नीतिश थोड़ा अनमने भले ही दिखे.. लेकिन बिहार विधानसभा 2020 में वो NDA के ही हमराही बने हैं.. बीजेपी ने भी NDA में रहते हुए नीतीश के ही नेतृत्व में बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया है.. 130 करोड़ की आबादी का नेतृत्व साबित करने में कई बार सियासी दलों की कथनी और करनी में अंतर दिखाई दिया.. बिहार में JDU और BJP का अलग चेहरा और केंद्र की सियासत में आने पर दोनों पार्टियों का अलग स्वरूप यही साबित करता है कि देश-काल और परिस्थितियों के मुताबिक सियासतदानों की कथनी और करनी में अंतर दिखाई देता रहा है… हम आप भले ही इसे अवसरवादिता कहें… लेकिन पॉलिटिकल डिक्शनरी में यही एडजेस्टमेंट कहलाता है।
- वासिंद्र मिश्र