भारत और पड़ोसी : कहां बिगड़ गई बात ?
पड़ोसी देश श्रीलंका (Sri Lanka) में हाल ही में राष्ट्रपति चुनाव खत्म हुए हैं और पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे (Mahinda Rajapaksa) के छोटे भाई और पूर्व रक्षा सचिव गोटाबया राजपक्षे (Gotabaya Rajapaksa) को कामयाबी मिली। पड़ोसी देश होने के नाते पीएम मोदी (PM Modi) ने उन्हें बधाई दी और गोटाबया ने भी उसका मैत्रीपूर्ण जवाब भी दिया, लेकिन क्या भारत श्रीलंका के लिए आने वाले दिन भी ऐसे ही माहौल में आगे बढ़ेंगे ? ये सवाल इसलिए भी क्योंकि जानकार मानते हैं कि गोटाबया राजपक्षे की जीत चीन (China) के लिए फायदेमंद हो सकती है, क्योंकि उनके बड़े भाई महिंदा राजपक्षे के सत्ता में रहते हुए श्रीलंका में चीन ने खूब निवेश किया था। इतना ही नहीं महिंदा राजपक्षे ने इस वक्त चीन से अरबों डॉलर का उधार भी लिया था और कोलंबो बंदरगाह के दरवाजे चीन के युद्धपोतों के लिए खोल दिए थे। आज भी श्रीलंका चीन के भारी भरकम कर्ज के बोझ तले दबा हुआ है। ऐसे में माना जा सकता है कि चीन के लिए श्रीलंका का रुख भारत के मुकाबले कहीं ज्यादा झुकावदार हो सकता है। वहीं हाल के दिनों में भारत-श्रीलंका के संबंध भी खासे उतार-चढ़ाव वाले रहे हैं। दिलचस्प ये है कि आज कमोबेस भारत के कई दूसरे पड़ोसी देशों के साथ संबंध हिचकोले खाते ही नज़र आ रहे हैं।
यानि मौजूदा हालात केन्द्र सरकार की नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी (Neighbourhood first) यानि आस-पास के पड़ोसी देशों के साथ रिश्ते पर भी सवाल खड़े कर रहे हैं, क्योंकि तमाम दावों के बावजूद पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका, अफगानिस्तान, भूटान, मालद्वीव के साथ- साथ चीन के साथ भारत के रिश्तों मे लगातार दूरियां बढ़ती नजर आ रही है, जिसका सीधा असर देश की सामरिक, आर्थिक ताकत और भौगोलिक सीमा पर साफ देखा जा सकता है।
पाकिस्तान (Pakistan) के साथ अविश्वास की खाई बढ़ने का आलम ये है कि कोई किसी की सुनने को तैयार नहीं। सीमा पर तनाव बढ़ता ही जा रहा है, जिसका असर दोनों देशों के नागरिकों के साथ साथ अर्थव्यवस्था पर भी पड़ रहा है, जिसका फायदा पड़ोसी देश चीन ने अच्छी तरह से उठाया। पाकिस्तान को कर्ज में डुबो कर चीन ने भारत-पाकिस्तान के बीच की खाई को और भी चौड़ा कर दिया।
वैसा ही हाल पड़ोसी देश नेपाल (Nepal) के साथ भी है। कभी भारत का नैचुरल साथी रहा नेपाल भी अब भारत की झोली से छिटक कर चीन की गोद में जाता दिख रहा है। पहले व्यापारिक संबंधों में खटास दिखी और अब ताजा मामला ‘कालापानी’ विवाद से जुड़ा हुआ है। नेपाल, भारत और तिब्बत के बीच ट्राइजंक्शन में स्थित कालापानी क्षेत्र नेपाल का हिस्सा है, लेकिन वहां भारतीय सेना (Indian Army) तैनात है और नेपाल ने मांग उठाई है कि भारत को वहां से अपनी सेना तुरंत हटा लेनी चाहिए। ये पहली बार नहीं है जब नेपाल ने ऐसे आंखें तरेरी है और इसके पीछे भी नेपाल को चीन से मिलने वाला आर्थिक सहयोग एक वजह है। कुल मिलाकर चीन इस क्षेत्र मे अपना दबदबा बढ़ाते हुए भारत के पड़ोसी देशों के साथ लगातार अपनी नजदीकियां बढा रहा है और एक बड़ी आर्थिक शक्ति के नाते वहां इन देशों की आर्थिक प्रगति मे सहयोग दे कर अपना वर्चस्व बढ़ा रहा है।
वहीं पड़ोसी देश म्यांमार (Myanmar) और बांग्लादेश (Bangladesh) के साथ रोहिंग्या मुद्दे को भारत के साथ असहमति का दौर भी संबंधों की गरमाहट को कम कर गया, क्योंकि बांग्लादेश ये आरोप लगाता रहा है कि भारत ने इस मुद्द्दे पर खुल कर उस का साथ नहीं दिया, या यूं कहें उस का आरोप था कि वह म्यांमार का साथ दे रहा है। वहीं दोनों देशों के बीच इन दिनों खटास की वजह बन गया है प्याज। भारत के निर्यात रोकने से बांग्लादेश में प्याज की कीमतें 200 रुपए प्रतिकिलो के पार पहुंच गई हैं, जिसका ठीकरा सरकार लगातार भारत के सिर फोड़ रही है।
वहीं ड्रैगन यानि चीन के साथ भारत की तनातनी तो जगजाहिर है, खासकर सीमा विवाद को लेकर। सीमा पर शांति बनाये रखने के लिये दोनों देशो की सेनाओं के बीच कई बार सामरिक दिशा निर्देश भी तय हुये, लेकिन NSG में भारत की सदस्यता को लेकर और आतंकी हाफिज सईद को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा आतंकी घोषित किये जाने को लेकर चीन की अडंगेबाजी और BRIपरियोजना जैसे मुद्दो पर चीन के लगातार भारत विरोधी तेवर बने हुए हैं ।
उधर मालदीव (Maldives) में भी चीन के बढ़ते प्रभाव के चलते भारत के साथ रिश्तों दरार लगातार बढ़ती जा रही है। हालत ये है कि पिछले साल ही मालदीव ने भारत की तरफ से दिए गए दो नेवी हेलिकॉप्टर को वापस लौटा दिया। वहीं जून, 2018 में हालात तब और खराब हुए जब मालदीव में सत्ताधारी पार्टी के सांसद अहमद निहान को चेन्नई के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से वापस भेज दिया गया। वो इलाज के लिए आए थे। मालदीव की तरफ से कहा गया कि अगर भारत का पड़ोसी देशों के प्रति यह नीतिगत रवैया है तो इससे कुछ भी हासिल नहीं होने जा रहा। क्योंकि माना जा रहा है कि राजनीतिक मोर्चे पर मालदीव के पूर्व राष्ट्रपतियों अब्दुल्ला यामीन और मोहम्मद वाहीद को चीन ज़्यादा रास आया। हालांकि इसकी बड़ी वजह चीनी कर्ज भी है। कुल कर्ज का 70 फीसदी कर्ज चीन ने ही मालदीव को दिया है।
कहीं द्विपक्षीय संबंधों को ठीक से संभाल न पाना ही तो इसकी बड़ी वजह नहीं है, क्योंकि पाकिस्तान के साथ लगातार बिगड़ते संबंधों की गवाह तो दुनिया है, लेकिन आस पास के लगभग हर पड़ोसी से संबंधों में आ रही कड़वाहट कई और बड़े सवाल भी खड़े करती है। ऐसा नहीं है कि भारत ने अपने पड़ोसियों के साथ संबंधों को संभालने की कोशिश नहीं की। पांच साल पहले पीएम मोदी ने दक्षेस देशों के राष्ट्राध्यक्षों को सरकार के शपथ-ग्रहण समारोह मे बुला कर ‘नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी’ की शुरूआत की थी, लेकिन ये भी बड़ा सच है कि वो पॉलिसी वक्त की कसौटी पर खरी नहीं उतर पाई। लिहाजा ये वक्त है सरकार के लिए भी एक समीक्षा का, कि वो कैसे पड़ोसियों के साथ संबंधों को पटरी पर ला सके और फिर से भारतीय उपमहाद्वीप में अच्छे संबंधों की वो गरमाहट महसूस की जा सके, जो एक वक्त थी।
वासिंद्र मिश्र (Vasindra Mishra)