यूपी के उन्नाव में जो हुआ उसने न केवल आम जनता को झकझोर कर रख दिया है, बल्कि कानून व्यवस्था के तमाम दावों को भी दुनिया के सामने बुरी तरह से बेपर्दा कर दिया है। एक रेप पीड़िता बीते करीब डेढ़ साल से इंसाफ के लिए दर दर भटकती रही, लेकिन उसे मिला क्या? इंसाफ के बदले मौत! और दुखद ये है कि हर बार की तरह इस बार भी ये सिस्टम तब जागा जब वो जिंदगी की जंग हार गई।
फिर क्या था सरकार सवालों में घिर गई और सियासत ने भी जोर पकड़ लिया। हालांकि कानून व्यवस्था की खस्ताहाल की ये कोई पहली या इकलौती घटना नहीं है। लंबे वक्त से यूपी में कानून का इकबाल ऐसे ही बेहाल चल रहा है, लेकिन उन्नाव में कानून की ऐसी धज्जियां उड़ेंगी शायद ही किसी ने सोचा था। लिहाजा जब सरकार फेल होने लगती है, तो या तो जनता सामने आती है या फिर विरोधी दल, फिर क्या था कांग्रेस, एसपी और बीएसपी ने मोर्चा संभाल लिया और नैतिकता के आधार पर मांग लिया सीएम योगी का इस्तीफा।
वैसे तो इस बात में कोई दो राय नहीं कि उन्नाव कांड की जितनी भी मज़म्मत की जाए वो कम है, लेकिन सियासत को भी बैठे बिठाए एक नया मुद्दा मिल गया वो भी तब जबकि उत्तरप्रदेश में एक-सवा साल में चुनाव होने वाले हैं। और कानून व्यवस्था पर योगी सरकार सीधे निशाने पर है। हाल फिलहाल य़े साफ नजर आ रहा है कि यूपी का अगला चुनाव एक बार फिर कानून-व्यवस्था की पिच पर ही लड़ा जाएगा।
पिछले काफी वक्त से यूपी में ये देखने को मिल रहा है कि तमाम दावों के बावजूद भी सूबे की कानून व्यवस्था बिगड़ती जा रही है और प्रदेश की बीजेपी सरकार के हाथ लगातार इस मोर्चे पर नाकामी ही हाथ आ रही है। जबकि ये वही बीजेपी है जो साल 2017 में हुए पिछले चुनाव में कानून व्यवस्था के मुद्दे को उठाकर ही सत्ता में आई थी।
2017 के चुनाव में बीजेपी का सबसे बड़ा चुनावी एजेंडा ही बेहतर कानून व्यवस्था और भ्रष्टाचार था, लेकिन सरकार में आने के बाद इन दोनों ही मुद्दों पर सरकार की पकड़ लगातार ढीली होती जा रही है और जानकार भी मानते हैं कि अगर कामकाज का तरीका ऐसा रहा तो आगामी चुनाव में बड़ी मुश्किल में फंस सकती है बीजेपी।
उदाहरण के तौर पर उन्नाव को ही देख लीजिए राजधानी लखनऊ से महज 63 किलोमीटर की दूरी पर बसे ये जिला बढ़ते आपराधिक ग्राफ के चलते देश भर में सुर्खियों में बना हुआ है। अपराध के आंकड़े ऐसे हैं कि सुनकर किसी के भी होश फाख्ता हो जाएं, करीब 31 लाख की आबादी वाले उन्नाव में जनवरी, 2019 से नवंबर, 2019 के बीच रेप के 86 मामले दर्ज हुए। 11 महीनों के दौरान जिले में यौन उत्पीड़न के 185 मामले सामने आ चुके हैं।
भले ही यूपी सरकार लगातार कोशिश कर रही है लेकिन ग्राउंड लेवल पर इसका कोई पॉजीटिव असर देखने को मिल नहीं रहा है। ऐसे में कहा जा सकता है कि अगर समय रहते मौजूदा हालात पर काबू नहीं पाया तो सत्ता से बाहर जाना पड़ेगा, क्योंकि यूपी का बीते करीब दो दशक का या कहें कि पिछली तीन सरकारों का इतिहास कुछ ऐसा ही रहा है। जब खराब कानून व्यवस्था और भ्रष्टाचार सत्ता परिवर्तन की वजह बना।
साल 2007 में कानून व्यवस्था की लचर हालत, भ्रष्टाचार के गंभीर मामलों और गुंडाराज जैसे गंभीर आरोपों में फंसी मुलायम सिंह यादव सरकार को जनता ने सत्ता के बाहर का रास्ता दिखा दिया, क्योंकि तमाम दावों के बावजूद वो जनता में कानून व्यवस्था का भरोसा कायम करने में नाकाम रहे और इसी कमजोर नब्ज को टटोलकर मायावती ने जनता का मन जाना और सत्ता में आईं, लेकिन वो भी बदहाल कानून-व्यवस्था और भ्रष्टाचार के मकड़जाल में फंसने से अपनी सरकार को बचा नहीं पाईं और साल 2012 में नई उम्मीद जगाते हुए अखिलेश यादव ने यूपी का मन जीत लिया, लेकिन जैसे जैसे वक्त बीता यहां भी हालात कमोबेस वैसे ही होते चले गए और फिर योगी आदित्यनाथ ने जनता को बेहतर कानून व्यवस्था का भरोसा दिया और साल 2017 में सरकार में आ गए, लेकिन बीते 2 सालों के दौरान उनकी सरकार भी कानून-व्यवस्था जैसे संवेदनशील मसले पर सवालों में भी घिरी रही।
एक के बाद एक रेप केस कुछ में तो उनके अपने ही नेता फंसे लेकिन कार्रवाई में जमकर हीलाहवाली हुई जिससे जनता के मन में सरकार के कामकाज को लेकर खासा असंतोष देखने को मिल रहा है।
लिहाजा अब सरकार को सोचना है कि कैसे उसे जनता के बीच अपनी सरकार और उसके कामकाज के इकबाल को बचाना है क्योंकि मौजूदा हालात तो बेहद ही निराशाजनक हैं और कहीं ऐसा न हो कि जनता के मन में एक बार फिर परिवर्तन की भावना घर कर जाए और इस सरकार का भी परदा गिर जाए ।
- वासिन्द्र मिश्र