नई दिल्ली : कांग्रेस पार्टी का अन्य अध्यक्ष चुनने के लिए कल दो बार CWC की बैठक हुई, जिसमें पार्टी के तमाम दिग्गज नेता मौजूद रहे, लेकिन बैठक में पार्टी अध्यक्ष को लेकर कोई निष्कर्ष नहीं निकल पाया, जिसके बाद सर्वसम्मति से सोनिया गाँधी को कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर चुना गया। पर्य्य जब तक नया अध्यक्ष नहीं चुन लेती, तबतक सोनिया गाँधी पार्टी अध्यक्ष के तौर पर कार्यभार संभालेंगी। कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर सोनिया के सामने कई चुनौतियाँ है, जिनका सामना उन्हें करना पड़ेगा।
वर्तमान में कांग्रेस जिस स्थिति में है, उस स्थिति से पार्टी को निकालना सोनिया गाँधी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। 2014 के लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद से कांग्रेस का ग्राफ लागातार नीचे गिरा है और पार्टी का मत प्रतिशत धड़ाम हो गया है। ऐसे में कांग्रेस को फिर से देश की प्रमुख पार्टी की कतार में शामिल करवाना सोनिया गाँधी के लिए बड़ी चुनौती है।
कांग्रेस पार्टी में चल रही गुटबाज़ी किसी से छिपी नहीं है। किसी भी मुद्दे पर पार्टी के सभी नेताओं की राय एकसमान नहीं रही है और यही कारण है कि पार्टी लोगों का विश्वास हासिल कर पाने में नाकाम रही है। सोनिया गाँधी के सामने पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को एकजुट करने की चुनौती है, ताकि किसी भी मुद्दे को हथियार बनाकर मजबूती से लड़ा जाए।
देश की सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी में जहाँ युवाओं को तरजीह दी जा रही है, वहीँ कांग्रेस में अभी भी वरिष्ठ नेताओं का बोलबाला है, लिहाज़ा कई युवा नेता खुद को साइडलाइन समझ रहे हैं और आक्रामक तरीके से पार्टी के लिए काम नहीं कर पा रहे हैं। सोनिया गाँधी के सामने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और युवा नेताओं के बीच संवाद स्थापित कर तालमेल बिठा पाने की चुनौती है।
कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी समस्या पार्टी का दिन-ब-दिन खिसकता जनाधार है। कांग्रेस पार्टी की पकड़ देश के सभी समुदायों में समान रूप से रही है, लेकिन बीते कुछ सैलून में पार्टी की पकड़ ढीली हुई है और पार्टी के पास अब नाममात्र जनाधार बचा है। खोये जनाधार को वापस हासिल करना सोनिया गाँधी के सामने बड़ी चुनौती है।