कट्टरपंथियों और आतंकवादियों के पनाहगार बने पाकिस्तान में गरीबी और सामाजिक विकास हमेशा से प्राथमिकता नहीं रहा। वहां की सरकारों ने भले ही पाकिस्तान के बच्चों को स्कूल और शिक्षा मुहैया न करायी हो, पर यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि वहां का हर एक बच्चा एके-47 से तो जरूर ही परिचित होगा।
दरअसल अगर कोई देश अपनी जीडीपी के एक बहुत बड़े हिस्से और विदेशों से मिली सहायता को केवल हथियार खरीदने में खर्च करता हो तो उस देश से उग्रवाद और आतंकवाद के अलावा और किसी खबर की आशा करना ही बेईमानी है ।
सैन्य और खूफिया सूत्रों ने रविवार को यह दावा किया कि पाकिस्तान 600 टैंक हासिल करने वाला है जिसमें 360 खरीदने वाला है और 220 स्वदेशी टैंकों को चीन की सहायता से बनाने जा रहा है। इन सारी स्थिति से चीन की पाकिस्तान सेना द्वारा संचालित सरकार की मंशा सामने आ गयी है।
इस डील में सबसे ज्यादा सतर्क करने वाली बात ये है कि भारत का सबसे ज्यादा विश्वस्थ देश या कहें मित्र राष्ट्र रूस से पाकिस्तान टी-90 टैंक खरीदने के फिराक में है । ये जान लेना जरूरी है कि यही टी-90 टैंक भारतीय सेना की रीढ़ है ।
भारत के लिए ये स्थिति अच्छी खासी समस्या है क्योंकि ये टैंक जम्मू-कश्मीर में तैनात किए जायेंगे। इनकी मारक क्षमता 4 किलो मीटर के इर्द गिर्द है। पर सही अर्थों में कहा जाये तो ये स्थिति तो होनी ही थी क्योंकि इस बहुध्रुवीय दुनिया में अगर भारत गुटनिर्पेक्ष की नीति पर चलकर अगर रूस के साथ अमेरिका से भी सैन्य संधि करेगा । तो इस स्थिति में आखिर रूस से भी कैसे ये आशा की जाये की वो केवल भारत का ही मित्र होकर रह जाये । जाहिर है अगर भारत उसके दुश्मन अमेरिका से दोस्ती करता है तो रूस भी भारत के शत्रु के करीब क्यों नहीं जायेगा ?
पर सवाल ये नहीं बल्कि ये है कि दुनिया भर में भीख मांगते वाले पाकिस्तानी हुक्मरानों के ज़हन में क्या पाकिस्तानी आवाम की खैरियत कहीं बसती है कि नहीं। क्या उनकी प्राथमिकता ऐसी है क्या कोई सपने हैं जिनमें वो अपनी आवाम के बारे में विकास को लेकर दुनिया से सहायता मांगे। दुनिया से भीख मांगकर अगर बार बार हथियारों का व्यापार किया जाता रहेगा तो आखिर दुनिया कब तक आतंक की खान को भीख देती रहेगी ?