कोरोना :विश्व में आपसी कलह का कारण
कोरोना ने अब तक २०० देशों को अपने चपेट में ले लिया है। कोरोना से मरने वालों की संख्या अब लाखों में है। कोरोना महज किसी भौगोलिक क्षेत्र में सिमटा नहीं है बल्कि पुरे विश्व में अपना पाव फैला चूका है। ऐसे में सभी देश अपने अपने स्तर पर इससे बचाव में लगे हैं। कोरोना विश्व में अलग अलग तस्वीर दिखा रहा है। जहां एक तरफ कोरोना का अब तक कोई वैक्सीन नहीं है इलाज़ नहीं है। जान माल की क्षति के अलावा कोरोना की सबसे बड़ी देन होगी – आपसी मतभेद।
स्पेन कोरोना वायरस से बुरी तरह प्रभावित है , उसे मेडिकल संसाधनों और उपकरणों की सख़्त ज़रूरत है। ख़ास तौर से स्पेन के उन इलाक़ों में जहां पर कोविड-19 के संक्रमण के मामले सबसे ज़्यादा सामने आए हैं। लेकिन, स्पेन की ये ज़रूरी मेडिकल संसाधन जुटाने की कोशिश में तुर्की ने अलग ही रोल अदा किया है। सरकार से उसकी तनातनी का नतीजा ये हुआ कि स्पेन ने तीन हेल्थ ट्रस्ट ने सैकड़ों वेंटिलेटर्स की जो खेप ख़रीदी थी, उनसे लदे हुए जहाज़ों को तुर्की की सरकार ने अपने क़ब्ज़े में ले लिया।इस पर स्पेन के मीडिया ने अपनी सरकार के हवाले से तुर्की की इस करतूत को ‘चोरी’ कहा है। पूरे हफ्ते चले इस खींचातानी और तमाम घटनाक्रम के बाद अंततः स्पेन ,तुर्की के शिकंजे से इस जहाज को छुड़ाने में सफल रहा। लेकिन इन सबके बाद ये खींचातानी आपसी कलह का संकेत दे रहा है। ये घटना दुनिया के कोने कोने में कूटनीति को जन्म देने का गवाह बन गई। .
कोरोना वायरस से देशों के बीच बढ़ रही तनातनी, WHO भी संदेह में ……
कोरोना वायरस को लेकर अमेरिका और चीन के बीच जो बयानबाज़ी हो रही है वो दुनिया के सामने है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने खुलेआम WHO पर यह आरोप लगाया कि WHO चीन के साथ पक्षपात किया है। राष्ट्रपति ट्रम्प ने बयान दिया कि कोरोना मामले में WHO ने चीन की सही स्थिति को छुपाया और WHO चीन के इशारे पर चल रहा है। और अमरीका अब विश्व स्वास्थ्य संगठन को दिया जाने वाला फंड रोकने पर विचार कर रहा है। जबकि वर्तमान में WHO में अमेरिका का योगदान लगभग २५ % का है।
कोरोना का जन्मदाता चीन ….
कोरोना वायरस के चलते कूटनीति का ये एकमात्र उदाहरण नहीं है बल्कि इसके अलावा भी कई उदाहरण हैं। यूँ तो , चीन पर ये आरोप लग रहे हैं कि उसने कोरोना वायरस के मरीजों का सही आंकड़ा नहीं दिया है , फिर भी,कोविड-19 से जुड़े हर कूटनीतिक संघर्ष का सम्बन्ध चीन से हो ये भी ज़रूरी नहीं।
भारत के वरिष्ठ अर्थशास्त्री शरद कोहली ने जनतंत्र टीवी से कहा, “इस वैश्विक महामारी जिससे पूरा विश्व जूझ रहा है ऐसे में सभी देशों से यही उम्मीद की जा सकती है कि सभी इस बुरे वक़्त में साथ खड़े हों । जबकि हालात कुछ और हीं है। यहां सभी देश अपने निजी जरूरतों के लिए एक दूसरे देश से सम्बन्ध खराब कर रहे हैं। हालाँकि, कई देश में कोरोना से पहले भी आपसी मतभेद था। लेकिन कुछ देशो में कोरोना के बिगड़ते हालातों के बाद कलह बढ़ते दिख रहे हैं। वहीं इन सबके बीच ‘चीन’ की छवि विश्व के मानस पटल पर ख़राब होती दिख रही है। आज जिस वायरस ने लाखों जाने ली है और आगे भी न जाने कौन सा रूप लेगा इसका जन्मदाता चीन है। ऐसे में सभी देशों का चीन को लेकर नकारात्मक रुख है।”
यूरोपीय देशों में भी है दरार
कोरोना विश्व में आपसी कलह का जन्मदाता बन गया है इस बात की एक मिसाल यूरोपीय देशों की एकता में पड़ी दरार भी है। जब इटली में कोविड-19 के संक्रमण के मामले तेज़ी से बढ़े, तो इटली ने अपने पड़ोसी देशों से अपील की कि वो मेडिकल संसाधन मुहैया कराने में उसकी मदद करें। लेकिन, इटली के दो बड़े पड़ोसियों जर्मनी और फ्रांस ने अपने यहां से ऐसे उत्पादनों के निर्यात पर पाबंदी लगा दी. यूरोपीय यूनियन के मुख्यालय ब्रसेल्स में इटली के राजदूत मॉरिज़ियो मसारी ने पॉलिटिको नाम की वेबसाइट में लिखा, “निश्चित रूप से ये यूरोपीय एकता के लिए शुभ संकेत नहीं हैं.”
इटली के लोगों में जर्मनी के लिए बेरुखी की एक और वजह है जब एक प्रस्ताव आया कि कोरोना वायरस की महामारी से सबसे अधिक प्रभावित देशों की मदद के लिए चंदा जुटा कर एक फंड बनाया जाए. लेकिन, जर्मनी इसका विरोध करने वाले देशों में शामिल हो गया है। ऐसे में इटली की जनता में जर्मनी को लेकर बेरुखी हुई। जर्मनी के अलावा नीदरलैंड, ऑस्ट्रिया और फ़िनलैंड ने भी कोविड-19 प्रभावित देशों की मदद के लिए फंड जुटाने के इस प्रस्ताव का खुल कर विरोध किया था। जबकि, स्पेन, फ्रांस, बेल्जियम, यूनान, आयरलैंड, पुर्तगाल, स्लोवेनिया और लक्ज़मबर्ग ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया था.
चीन और ब्राज़ील में झगड़ा
पूरा विश्व इस पर संदेह जाता रहा है कि चीन अपने यहां कोविड-19 के संक्रमण के सही आंकड़े नहीं दिए हैं। ब्रिटिश अधिकारियों ने भी चीन में कोरोना वायरस के संक्रमण के मामलों की संख्या पर सवाल उठाए हैं। समय चीन के कोविड-19 आंकड़ों पर प्रश्नचिह्न लग रहे हैं, उस समय चीन का प्रचार तंत्र अपने देश की छवि बेहतर करने का अभियान चला रहा है. जैसे जैसे हम चीन में कोविड-19 के असल आंकड़ों के बारे में जानेंगे, वैसे-वैसे दुनिया में चीन के प्रति नाराज़गी बढ़ेगी.”कोरोना वायरस से निपटने के चीन के तौर तरीक़े पर ब्राज़ील ने भी सवाल उठाए हैं. जब से ये महामारी फैली है तब से ब्राज़ील और चीन के बीच कई बार तनातनी हो चुकी है।
कुछ समय पहले हीं ब्राज़ील के राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो के क़रीबी अधिकारी और चीन के कूटनीतिक अधिकारी सोशल मीडिया पर खुलेआम एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहे थे। इसके अलावा , ब्राज़ील के शिक्षा मंत्री अब्राहम वीनट्रॉब ने एक ट्वीट किया. चीन के अधिकारी अब्राहम के इस ट्वीट से इतने नाराज़ हुए कि उन्होंने इसे नस्लवादी तक क़रार दे दिया। ब्राज़ील में चीन के दूतावास ने ट्वीट करके कहा, “ऐसे बयान बेहूदा हैं और निंदनीय हैं क्योंकि इनमें एक नस्लवादी सोच दिखती है। चीन, ब्राज़ील का व्यावसायिक सम्बन्ध गहरा है। ब्राज़ील का 80 प्रतिशत सोया चीन ही ख़रीदता है