कौन कहता है कि नाम से कोई फर्क नहीं पड़ता ? फर्क पड़ता है। आपने अक्सर लोगों को कहते हुए देखा होगा नाम में क्या रखा है, लेकिन नाम से फर्क पड़ता है और इतना पड़ता है कि आपको न बैंक लोन देगा न आपको सिम काड मिलेगा औऱ ना ही टेलीफोन पर आपकी बात को गंभीरता से लिया जायेगा। आप सोच रहे होंगे ये कैसा नाम ? ये नाम है राहुल गांधी। जी हाँ, सही सुना आपने। राहुल गांधी इन दिनों काफी परेशान हैं, ना उनका कोई सरकारी काम हो पा रहा है, और ना उन्हें कोई कम्पनी फायनेंस दे रही है और न ही उनकी बातों पर कोई भरौसा कर रहा है। अब हालात ये हो गए हैं कि तंग आकर राहुल गांधी अब अपना नाम बदलने की सोच रहें हैं। आप सोच रहे होंगे गांधी परिवार के इतने बड़े शख्स को ये परेशानी क्यों हो रही है ? लेकिन जिन्हें आप राहुल गांधी समझ रहे हैं, दरअसल ये कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी नहीं हैं, बल्कि इंदौर के राहुल गांधी की है।
जी हां इंदौर वाले राहुल गांधी हैं। गांधी परिवार के अलावा भी एक राहुल गांधी हैं और वो हैं इंदौर में। राहुल इन दिनों बहुत परेशान हैं। राहुल का कहना है कि उन्हें इस नाम की वजह से न तो कोई टेलीकॉम कम्पनी सिम देती है, न उनका ड्राईविंग लायसेंस बना है। बड़ी मुश्किल से उनका आधार कार्ड बन पाया है और जब भी कही अपना आधार कार्ड दिखाते है तो देखने वाला इसे नकली बताते हैं। उनका मजाक उड़ाते हैं। दरअसल इस परेशानी की वजह भी आपको बतातें हैं
क्या है माजरा ?
इंदौर के रहने वाले 23 साल के राहुल के पिता राजेश गांधी कपड़ा व्यापारी हैं। राहुल बताते हैं कि उनके पिता राजेश मालवीय बीएसएफ में थे और नक्सली हमले में शहीद हो गए थे। पिता राजेश के अच्छे व्यवहार की वजह से उन्हें उनके अफसर गांधी के नाम से पुकारते थे और फिर इसी सरनेम से उनके परिचय पत्र बन गए और पिता के सरनेम से ही अब राहुल का सरनेम भी गांधी हो गया। अब इस बात का खामियाजा उन्हें उठाना पड़ रहा है। लोग उन्हें भी पप्पू कहकर चिढ़ाते हैं और अनजान लोग उनके नाम पर यक़ीन नहीं करते।
राहुल गांधी नाम रखना इतनी परेशानी का कारण बन जाएगा, शायद ये बात राहुल गांधी को भी पता नहीं होगी। जब परेशानी बढ़ी तो दर्द भी शब्दों के साथ बयां हो गया। नौबत यहां तक आ गई कि अपने नाम से परेशान राहुल अब आधार कार्ड में नाम बदलवाकर अपने बाकी दस्तावेज़ भी राहुल मालवीय के नाम से करवाने की बात कह रहें हैं। लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या हमारे देश में नेताओं की छवि इतनी खराब हो गई है कि आम आदमी को भी अपना नाम बदलने की नौबत आ गई वहीं ये कहना गलत नहीं होगा कि “मशहूर यहां पर नाम बहुत हैं-शरीफ हैं कम बदनाम बहुत हैं “