बांग्लादेश में 30 दिसंबर को होने वाले 11वें संसदीय चुनाव के लिए राजनीतिक उठापटक जोरों पर है। जियोपॉलिटिक्स के लिहाज से अहम इस देश में अमेरिका चीन के साथ साथ भारत भी नजरें गड़ाये हुए है ।
विपक्ष और आरोप प्रत्यारोप की राजनीति
शेख हसीना के नेतृत्व में आवामी लीग और खालिदा जिया की पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के बीच मुकाबले में गिरफ्तारियों का दौर जारी है। विपक्ष का हसीना पर आरोप है कि वो उनके कार्यकर्ताओं को विना वजह गिरफ्तार करवा के जेल में ठूंस रहीं है। अब तक लगभग 10500 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। इसके अलावा बीएनपी की सहयोगी जमात-ए-इस्लामी ने भी आरोप लगाया है कि उसके 3500 से ज्यादा कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया है।
प्रतिबंध व भ्रष्टाचार वाली पार्टियों का गठबंधन
एक तरफ जहां बीएनपी की मुखिया खालिदा जिया भ्रष्टाचार के कारण जेल में बंद हैं तो वहीं उसकी सहयोगी पार्टी जमात-ए-इस्लामी के चुनाव लड़ने पर ही प्रतिबंध है। इसलिए अब उसके सारे कार्यकर्ता बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के साथ निर्दलीय के तौर पर चुनाव मैदान पर उतरेंगे।
शेख हसीना के समय में भारत के साथ बांग्लादेश के अच्छे संबंध
भारत की लुक ईस्ट पॉलिसी की अगर बात की जाये तो बांग्लादेश उसमें अहम साझेदार है। भारत से बांग्लादेश लगभग चार हजार किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है। शेख हसीना के कार्यकाल में संबंधों की अगर बात की जाये तो बीते दिनों ऐसा देखा गया है कि भारत के साथ सीमा विवाद से लेकर द्विपक्षीय विवाद तक सभी क्षेत्रो में संबंध बेहतर हुए हैं । चाहे फिर वो तीस्ता नदी के पानी बटवारे की बात हो या फिर बांग्लादेश में भारत के निवेश की बात । इससे इतर अगर बात खालिदा जिया के कार्यकाल की करे तो देखने में आता है कि जिया के दो कार्यकाल हुए उस दौरान भारत के बांग्लादेश के साथ संबंध बेहद खाराब थे। जिया के कार्यकाल में पाकिस्तान के समर्थन से कट्टरपंथियों का गिरोह फलने फूलने लगता है और अल्पसंख्यकों पर अत्याचार बढ़ जातें हैं।
बांग्लादेश विश्व महाशक्तियों के लिए क्यों महत्वपूर्ण
दरअसल जिस प्रकार चीन अपनी साम्राज्यवादी मांसिकता के साथ दक्षिण चीन सागर के साथ हिंद महासागर को हथियाने का प्रयास करने के फिराक में है। उससे अब भारत अपने पडोसियों के लेकर अब चौकन्ना है। क्योंकि चीन के भारी भरकम कर्ज तले जिस तरह से श्रीलंका पाकिस्तान दबे हैं और जिस प्रकार कर्ज के असरे वो हंबनटोटा सरीखे बंदरगाहों को कब्जियाने में लगा है वह भारत के साथ अमेरिका और यूरोपीय देशों के लिए चिंता का विषय है। शायद इसीलिए भारत अब पड़ोसी देशों में हो रही लगभग हर गतिविधि पर पैनी नजर रखता है।