नई दिल्लीः साइबर क्राइम ठगी में लोग अब तक किसी न किसी बहाने ओटीपी पूछकर लोगों के खाते साफ कर रहे थे लेकिन अब बगैर ओटीपी पूछे ही खातों में सेंध लगा रहे हैं। यही नहीं वे अपने शिकार को पहले ही फोन करके बताते हैं कि उसका खाता हैक किया जा रहा है। कुछ ही सेकेंड में खाते में बैलेंस शून्य होने का मैसेज भी मोबाइल पर आ जाता है।
बता दें की साइबर पुलिस के मुताबिक ठगी का यह तरीका इसी महीने शुरू हुआ है। साइबर ठग अपने शिकार को उसके खाते से रकम निकालने से पहले या बाद में फोन करके इसकी जानकारी भी देते हैं. कुछ ही पलों में जब मोबाइल पर मैसेज शून्य बैलेंस हो जाने का मैसेज पहुंचता है तब कहीं लोगों को उनकी बात पर यकीन आता है। ज्यादातर लोग ठगों के आगे अपनी रकम वापस कर देने के लिए गिड़गिड़ाते हैं। यहीं से ठगी का असली खेल शुरू होता है।
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साइबर क्राइम ठगी
यूपी 112 में तैनात सिपाही मुकेश को सात मार्च को साइबर ठगों ने फोन कर बताया कि उनका खाता हैक कर वे सारी रकम निकालने जा रहे हैं। कुछ ही देर बाद उनके मोबाइल पर भी खाते से 3.32 लाख रुपये निकलने का मैसेज आ गया। ठगों से दोबारा बातचीत हुई तो उन्होंने मुकेश से कहा कि वे उनकी कुछ रकम वापस कर देंगे, इसके लिए उन्हें वह ओटीपी बताना होगा।
मुकेश ने ठगों को ओटीपी बताने के बजाय साइबर थाने को सूचना दी। साइबर पुलिस की छानबीन में पता चला कि मुकेश के खाते से रकम निकालकर एफडी बनवा ली गई है। अगर वह ओटीपी बता देते तो रकम हथिया ली जाती। साइबर पुलिस की कोशिश से पूरे 3.32 लाख रुपये दोबारा मुकेश के खाते में पहुंच गए।
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ओटीपी न बताए
साइबर थाने के इंस्पेक्टर अनिल कुमार के मुताबिक ठग लोगों का खाता हैक कर उसमें मौजूद रकम की एफडी बनवा लेते है। शातिरपन यह है कि यह एक ही दिन के लिए बनती है। लिहाजा उसी दिन या कुछ घंटे बाद उसकी अवधि पूरी हो जाती है। ऐसे में ठग के पास अपना खेल पूरा करने के लिए अधिकतम 12 घंटे होते हैं। वे खाताधारक से ओटीपी पूछते हैं और ओटीपी मिलते ही एफडी से रकम सीधे अपने खाते में ट्रांसफर कर लेते हैं।
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इंस्पेक्टर अनिल कुमार के मुताबिक ओटीपी न बताने पर रकम ठग के खाते में नहीं जा सकती। साइबर थाने के एसआई शशांक सिंह ने बताया कि ओटीपी पता न चलने पर खाते से निकाली गई रकम बैंक की पार्किंग जेल में पड़ी रहती है। समय रहते शिकायत की जाए तो इसे वापस खाते में लाया जा सकता है।