Deepawali: पांच तत्वों से मिट्टी का दीया बनता है। पानी, आग, मिट्टी, हवा और आकाश ये तत्व ही मनुष्य और मिट्टी के दीए में मौजूद होते हैं।
जनतंत्र डेस्क Deepawali: बाजार रोशनी से गुलजार हैं, रंग-बिरंगी लाइटें हर किसी को आकर्षित कर रही हैं। खूबसूरत झालर, लाल-नीले, हर कलर में मौजूद हैं। बाजार में आजकल सब कुछ ईजी टू यूज और लेटेस्ट मिल जाता है। जाहिर है लोगों का रूझान इस ओर तो बढ़ेगा ही। हमें ये ही तो बताया जाता है ना कि जमाने के साथ चलना है। मगर इस बदलाव की बयार में भी जिसकी खुशबू बरकरार है वो है रोशनी का प्रतीक ‘दीया’…बदलाव की इस बयार में भी दीए या दीपक का क्रेज किसी भी सूरत में कम नहीं हुआ।
बदलते वक्त के साथ भले ही प्राचीन रीति रिवाज पीछे छूट रहे हों, मगर माटी के दीपक की चमक बरकरार है। दिवाली से पहले ही कुंभकारों में खुशी की लहर आ जाती है। माटी के कलाकार बड़े ही उत्साह के साथ दीए तैयार करते हैं। दीपावली पर हम कितने भी इलेक्ट्रिक उपकरण खरीद लें, मगर क्या माटी के छोटे से दीए का महत्व कभी कम हो सकता है। फेस्टिवल ऑफ लाइट में पंरपरागत मिट्टी के दीए की मांग बरकरार है। दीपावली के मौके पर भारत ही नहीं विश्व के कई देशों से दीयों के लिए ऑर्डर आते हैं। मिट्टी के दीयों से पूरी दुनिया में त्यौहार रोशन होता है।
मिट्टी का दिया और पंचतत्व
जब भी हम दीए की जलती हुई लौ को देखते हैं क्या सोचते हैं एक रोशनी…जो अंतर्मन में उम्मीद जलाए रखती है। मिट्टी का दीया पांच तत्वों से मिलकर बनता है, जिसकी तुलना मनुष्य के शरीर से की जाती है। जिन पांच तत्वों से मानव का शरीर निर्मित होता है। उन्हीं पाच तत्वों से ही मिट्टी के दीए का निर्माण कुम्हार करते हैं। पानी, आग, मिट्टी, हवा और आकाश ये तत्व ही मनुष्य और मिट्टी के दीए में मौजूद होते हैं। हिंदू धर्म के हर शुभ कार्य में दीए का महत्व माना गया है। वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में अखंड दीपक जलाने से वास्तु दोष समाप्त होते हैं।
दीये का वैज्ञानिक महत्व
हमारे भारतीय तीज त्यौहार प्रकृति से जुड़े हुए हैं। धार्मिक के साथ साथ इनकी प्राकृतिक तौर भी खास भूमिका है। दीए का भी वैज्ञानिक महत्व है। मिट्टी के दीपक में सरसों का तेल जलने से जो गंध उत्पन्न होती है, वह बैक्टीरिया का विनाश करती है। यह वातावरण को शुद्ध करता है। मिट्टी का दीपक उपयोग के बाद मिट्टी में ही मिल जाता है और प्रदूषण का कारक नहीं बनता।
जब मुस्कुरातें हैं माटी के कलाकार
हर साल दिवाली पर चाइनीज लाइट्स घरों और प्रतिष्ठानों में सजने लगती हैं। जो चीन से आती है, इसकी जगह अगर हम दीयों का इस्तेमाल ज्यादा करें तो हम कुंभकारों के चेहरे पर मुस्कान बिखेर सकते हैं। साल भर कुम्हार दिवाली का इंतजार करता है जब दीयों की बिक्री सबसे ज्यादा होती है। माटी के दीये बनाने वाला कुंभकार भी समाज का एक अभिन्न अंग है। इसलिए हम एक छोटी सी पहल करके अपने सामाजिक ताने बाने को भी मजबूत बना सकते हैं।