दिल्ली के चुनाव में कामयाबी के बाद अरविंद केजरीवाल ने एक बाहर फिर यू टर्न लिया है। केजरीवाल की रणनीति यूज एंड थ्रो की रही है। आम आदमी पार्टी के गठन से लेकर अब तक अरविंद केजरीवाल हमेशा अपने रणनीतिकार और पार्टनर बदलते रहे हैं।
अरविंद केजरीवाल के जानने वालों का मानना है कि वो एनजीओ बनाने से लेकर आरटीआई कार्यकर्ता के रूप में हमेशा बहुत ही चतुराई से अपना नजरिया और मार्गदर्शक बदलते रहे हैं। अरविंद केजरीवाल को आरटीआई कार्यकर्ता से लेकर अन्ना आंदोलन तक आरएसएस का सीधा समर्थन हांसिल था। लेकिन उनकी राजनीतिक महत्वकांक्षा ने उन्हें संघ और बीजेपी के सामने लाकर खड़ा कर दिया है। अन्ना का साथ छोड़ने के बाद दिल्ली की राजनीति में बीजेपी और कांग्रेस पटखनी देने के लिए उन्होंने उन सभी तरह के कट्टरपंथी नेताओं का सहयोग लिया जिनकी मदद से उन्हें शुरू के चुनाव में कामयाबी मिली। देश में नई राजनीति का दावा करने वाले केजरीवाल ने सत्ता तक पहुंचने के लिए उन सभी तरह के हथकंडों को अपनाया और इस्तेमाल किया जिस तरह के हथकंडे दूसरे राजनीतिक दल अपनाते रहते हैं। अपने दूसरे कार्यकाल में केजरीवाल ने उन सभी नेताओं को अलग कर दिया जो आंदोलन के समय से उनके साथ थे। जैसे कुमार विश्वास, प्रशांत, आनंद कुमार, कपिल मिश्रा, अलका।
इसके अलावा केजरीवाल मुख्यमंत्री रहते हुए 4 साल प्रधानमंत्री से लड़ते रहे और उनके खिलाफ रैलियां, प्रदर्शन और सत्याग्रह करते रहे। इस मुहिम में उन्हें मोदी विरोधी सभी राजनेताओं और पार्टियों का सहयोग मिला। लेकिन अब उन्होने मोदी और मोदी विरोधी नेताओं से बराबर दूरी बनाने का फैसला लिया है। यहां तक की प्रचार में भी केजरीवाल ने मोदी की सीधे तौर पर कोई आलोचना नहीं की। ऐसा लगता है कि केजरीवाल के लिए ‘चतुर’ उनकी भावी रणनीति और राजनीतिक महत्वकांक्षा की निशानी है।
अब उन्होने फिर देश के बाकी राज्यों में अकेले दम पर चुनाव लड़ने का फैसला लिया है। केजरीवाल ये पहले भी अपने दूसरे कार्यकाल में कर चुके हैं। लेकिन पंजाब के अलावा उन्हें कहीं भी कामयाबी नहीं मिली। दिल्ली विधानसभा चुनाव केजरीवाल बनाम मोदी सरीखे दो ‘चतुर’ नेताओं के बीच में या जिसमें केजरीवाल ने राहुल गांधी को एक बार फिर झांसा देकर मोदी को पटखनी दी और बताया जाता है कि प्रशांत किशोर के जरिए केजरीवाल ने राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी का समर्थन हांसिल किया। कांग्रेस का वोट बैंक AAP को मिल जाने की वजह से दिल्ली में बीजेपी हार गई।
अब केजरीवाल अपने शपथ ग्रहण समारोह में किसी भी मोदी विरोधी नेताओं को बुलाने से परहेज कर रहे हैं… देखना है कि तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद केजरीवाल का राजनीतिक और प्रशासनिक स्टंट क्या होता है।
- वासिंद्र मिश्र