नई दिल्ली– लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद राहुल गांधी ने जिम्मेदारी लेते हुए अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। काफी बार उन्हें ऐसा न करने के लिए मनाया गया मगर राहुल गांधी अपनी जिद्द पर अड़े रहे और अंत में सोनिया गांधी को कांग्रेस का अंतरिम अध्यक्ष नियुक्त किया गया। सोनिया गांधी के नेतृत्व में आते ही कांग्रेस में ओलड गार्ड के रिएक्टिवेट होने की चर्चा होने लगी जिसकी वजह से राहुल के करीबियों पर किनारे होने का संकट छाने लगा।
राहुल के नेतृत्व में अशोक तंवर, संजय निरुपम, मिलिंद देवड़ा, देब बर्मन और नवजोत सिंह सिद्धू जैसे चेहरों को तरजीह मिलती थी। मगर राहुल गांधी के अध्यक्षता छोड़ने के बाद इन करीबियों पर गाज गिरने लगी। पंजाब कैबिनेट में मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू और मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच कई मौकों पर खींचतान होती नजर आई। सिद्धू राहुल को अपना कैप्टन बताते रहे और अमरिंदर सिंह को कभी अपना लीडर स्वीकार नहीं किया जिसका नतीजा यह हुआ कि सिद्धू की पारी कैप्टन अमरिंदर के सामने फीकी पड़ गई और उन्हें सबकुछ गंवाना पड़ा। हाल ही में हरियाणा में अशोक तंवर को अध्यक्ष पद से हटा दिया और सोनिया की करीबी माने जाने वाली कुमारी शैलजा के हाथों में प्रदेश की कमान सौंपकर सामंजस्य स्थापित करने की कोशिश की गई।
पार्टी के नेतृत्व पर सवाल उठाते हुए संजय निरुपम ने कहा कि वह सोनिया गांधी के खिलाफ नहीं है लेकिन उनको अपने दरबारियों से मुक्ती पानी चाहिए। साथ ही उन्हों ने राहुल गांधी से अपील की है कि अब वह अपनी जिद्द छोड़कर पार्टी की कमान सम्भालें।
कांग्रेस के युवा नेता प्रद्युत देब बर्मन से भी त्रिपुरा में अपने अध्यक्ष पद से इस्तेफा देना पड़ा, उन्होंने कहा कि कांग्रेस में भ्रष्ट लोगों की एंट्री हो चुकी है। वही राहुल के करीबी मिलिन्द देवड़ा को भी मुंबई अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा।
इससे यही साबित होता है कि राहुल के अध्यक्षता छोड़ना उनके करीबी नेताओं पर भारी पड़ रहा है। यही वजह है कि सोनिया गांधी की अध्यक्षता में राहुल गांधी के करीबी किनारा किये जाने पर सवाल उठा रहे हैं और अपने करीबियों से बचने की नसीहत दे रहे हैं।