नई दिल्ली : भारतीय इतिहास (Indian History) ऐसे कई योद्धाओं की कहानियों से भरी पड़ी है, जिन्होंने अपने शौर्य , साहस और वीरता के दम पर ऐसी अमित छाप छोड़ी, जिसकी कहानी आज भी लोग सुनाते और सुनते हैं। उन्हीं महान योद्धाओं में से एक है महाराणा प्रताप। महाराणा प्रताप राजस्थान के मेवाड़ (Mewad Rajasthan) के 13वें राजा थे। कहा जाता है कि पुरे देश पर राज करने वाले मुग़ल शासक (Mughal Emperors) अकबर (Akbar) को भी महाराणा प्रताप ने युद्ध में परास्त किया था। आज महाराणा प्रताप की 480वीं जयंती है। महाराणा प्रताप जयंती (Maharana Pratap Jayanti) पर आज हम आपको बताते हैं, उनसे जुड़ी कुछ अनसुनी बातें।
कैसे पड़ा ‘कीका’ नाम ?
महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई, 1540 को कुंभलगढ़ दुर्ग (पाली) में हुआ था। उनके पिता का नाम उदय सिंह द्वितीय (Udai Singh II) और माता का नाम जयवंता बाई था। उनके तीन छोटे भाई शक्ति सिंह, विक्रम सिंह और जगमल सिंह थे। सगे भाइयों के अलावा महाराणा प्रताप के 2 सौतेले भाई भी थे। बचपन उन्हें में कीका के नाम से बुलाया जाता था, जो उन्हें नाम भीलों से मिला। कहा जाता है कि जीवन के शुरूआती दिन उन्होंने भीलों के साथ ही बिताये थे। कीका का अर्थ भीलों की बोली में ‘पुत्र’ होता है।
महाराणा प्रताप के ‘चेतक’ की वीरता
महाराणा प्रताप की वीरता का जहाँ कही भी जिक्र होता है, वहां चेतक (Chetak) का भी जिक्र जरूर होता है। आपको बता दें कि महाराणा प्रताप के पास एक घोड़ा था, जिसका नाम चेतक था और इस घोड़े को वो सबसे ज्यादा प्यार करते थे। चेतक की वीरता का जकर महाराणा प्रताप की वीर गाथाओं में मिलता है। चेतक ने अपनी चपलता, गति और बहादुरी से महाराणा प्रताप की कई लड़ाइयों को जीतने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
हल्दीघाटी का ऐतिहासिक युद्ध
महाराणा प्रताप की मुगलों के साथ युद्ध की व्याख्या भी इतिहास के पन्नों में मिलती है। यद्यपि महाराणा प्रताप ने मुगलों के साथ कई लड़ाइयाँ लड़ी, लेकिन सबसे ऐतिहासिक लड़ाई थी – हल्दीघाटी का युद्ध (Battle of Haldighati) जिसमें उन्होंने मानसिंह के नेतृत्व में अकबर की एक विशाल सेना का सामना किया।
1576 में हुए इस ऐतिहासिक युद्ध में, महाराणा प्रताप की तरफ से युद्ध के मैदान में 20 हज़ार सैनिक थे, जबकि मुगलों की तरफ से 80 हज़ार सैनिक युद्ध के मैदान में डंटे थे। मध्यकालीन भारतीय इतिहास (Medieval India ) में यह सबसे चर्चित युद्ध है, जिसके बाद मेवाड़, चित्तौड़, गोगुन्दा, कुंभलगढ़ और उदयपुर पर मुगलों द्वारा कब्जा कर लिया गया था। इस युद्ध में प्रताप का घोड़ा चेतक घायल हो गया था।
जब युद्ध के मैदान में अकबर को दी मात
महाराणा प्रताप के साम्राज्य पर भले ही मुगलों का आधिपत्य स्थापित हो गया, लेकिन महाराणा प्रताप ने कभी भी मुगलों का आधिपत्य स्वीकार नहीं किया। उन्होंने मुगल सम्राट अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की और कई वर्षों तक मुग़ल शासन के खिलाफ संघर्ष किया।
महाराणा प्रताप ने अपनी वीरता का परिचय 1582 में दीवर के युद्ध (The Battle of Diver) में दिया, जब उन्होंने उन क्षेत्रों को फिर से हासिल कर लिया, जो कभी मुगलों से हार गए थे। कर्नल जेम्स टाव ने मुगलों के साथ इस युद्ध को मेवाड़ का मैराथन कहा। 1585 तक, एक लंबे संघर्ष के बाद, वो मेवाड़ को आज़ाद कराने में सफल रहे। 1596 में, वह शिकार करते समय चोटिल हो गए, जिससे वह कभी नहीं उबर पाए। 19 जनवरी 1597 को मात्र 57 वर्ष की आयु में चावड़ में उनकी मृत्यु हो गई।