जनतंत्र डेस्क, नई दिल्ली: बसंत बहार और पंतग का त्यौहार मकर संक्रांति…14 जनवरी को ये फेस्टिवल देशभर में मनाया जाएगा। इस दिन आसमान में अठखेलियां करती पतंग सबको भाती हैं। रंग बिरंगी पतंग को देख भला कौन पंतगबाजी में हाथ नहीं आजमाना चाहेगा। मौका जब मकर संक्रांति का हो तो उत्साह दोगुना हो जाता है। हाथ में मांझे की डोर लिए पंतग के साथ खुद भी हवा में उड़ने का जी चाहेगा। लेकिन मांझे की ये डोर कहीं जिंदगी ना छीन ले।
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आज कल युवाओं में पंतगबाजी का शौक महज शौक नहीं रह गया। युवा इसे अब साख की लड़ाई समझने लगे। जिसे हर हाल में जीतना है। इसी सोच के साथ बढने लगा खतरनाक चाइनीज मांझे का इस्तेमाल। हर साल इस धागे से कई जिदंगी लील जाती हैं।
हर साल पतंगबाजी में कई लोगों के मौत की खबर आती है मृतकों में वे लोग भी होतो हैं जो पंतग नहीं उड़ा रहे होते। लेकिन उनका कुसूर ये ही होता है कि वे खतरनाक मांझे की चपेट में आ गए।
परिंदो की जान से खिलवाड़
परिंदे तो आसमान में ही उड़ेंगे ये ही उनका जहां है उनका घर है। फिर युवाओं को शौक उनकी जान पर क्यों भारी पड़ रहा है। आसमान में उड़ते परिंदे चाइनीज मांझे की डोर में उलझकर जान गंवा देते हैं। वहीं, कटी हुई पंतग पेड़ों पर फंस जाती हैं जिससे पेड़ों पर बैठे पक्षी इससे मौत के मुंह में जा रहे हैं। पक्षियों का यूं तड़प-तड़पकर मरना दिल दुखाने वाला है।
क्यों इतना खतरनाक है ये मांझा
पतंगबाजी के लिए सादा धागे का भी इस्तेमाल हो सकता है लेकिन पंतगबाजी को साख की लड़ाई मानने वाले युवा पक्के और चाइनीज धागे का इस्तेमाल कर रहे हैं। ये धागा स्पेशल तरीके से तैयार किया जाता है। इसे बनाने का तरीका जान आप हैरान रह जाएंगे।
दरअसल, चाइनीज मांझा कांच को बेहद महीन पीसकर बनाया जाता है। ये धागा नायलॉन और मैटेलिक पाउडर से भी तैयार किया जाता है। जो आसानी से टूटता नहीं है। हर साल प्रशासन ऐसे खतरनाक धागे पर रोक लगा देती है लेकिन इसका इस्तेमाल अभी भी बंद नहीं हुआ।