बिहार में एक बार फिर JDU और बीजेपी में नूरा कुश्ती शुरु हो गई है। और ये सब बिहार विधानसभा चुनाव से पहले अपने वोटबैंक के दायरे को बढ़ाने की कवायद है। नीतीश कुमार ने जिस तरह से RSS के 19 संगठनों के नेताओं और पदाधिकारियों के बारे में रिपोर्ट मांगी थी, उसके कारणों को लेकर कई तरह के कयास लगाए गए। किसी ने इसे प्रेशर पॉलिटिक्स कहा तो किसी ने इसे नीतीश के सेक्युलर इमेज से जोड़ दिया। लेकिन असल में ये बिहार विधानसभा चुनाव से पहले नीतीश कुमार का नया वोटप्लान है।
दरअसल बिहार में लोकसभा चुनाव में RJD का सफाया हो गया है और लालू की गैर मौजूदगी में जो वैक्यूम बना है, नीतीश उसे भरना चाहते हैं..यानि RJD का जो मुस्लिम वोटबैंक है, नीतीश कुमार की अब उस पर नजर है। पहले से ही कुर्मी वोटबैंक नीतीश कुमार के पाले में है और अब नीतीश चाहते हैं कि कभी लालू के साथ खड़ा रहनेवाला मुस्लिम वोटबैंक भी उनके साथ आ जाए। और इसलिए बीजेपी के साथ रहकर भी RSS के संगठनों की जासूसी कराकर नीतीश ये जताना चाहते हैं कि बिहार में अब मुसलमानों के असली रक्षक वो भी हैं। इसलिए वो इससे पहले भी बीजेपी के साथ सरकार में रहकर भी धारा 370 और तीन तलाक के मुद्दों पर वो बीजेपी के सामने खड़े नजर आए। लेकिन बिहार चुनाव को लेकर गेमप्लान सिर्फ नीतीश का ही नहीं है, बीजेपी ने भी अपनी नई रणनीति तैयार कर ली है। बीजेपी नेताओं ने सम्राट अशोक को कुर्मी बता दिया है और अब बड़े पैमाने पर उनका जन्मदिवस मनाने की तैयारी कर रहे हैं। यानि बीजेपी ने भी बिहार में अगड़ी जाति पॉलिटिक्स के साथ अब पिछड़ा कार्ड खेल दिया है। बिहार के राज्यपाल फागू चौहान की तैनाती भी इसी रणनीति का हिस्सा है। फागू चौहान नोनिया जाति के हैं और यूपी के रहनेवाले हैं। साफ है कि पूरी रणनीति
अपने वोटबैंक को बनाए रखते हुए नए वोटबैंक की जमीन तैयार करना है। और बिहार में मुस्लिम और पिछड़ों को पाले में लिए बिना सत्ता हासिल कर पाना नामुमकिन है। क्योंकि बिहार की पूरी सियासत इन्हीं वोटबैंक के ईर्द गिर्द घूमती रही है। जिसने इन्हें साध लिया वो सत्ता तक पहुंच गया और जो पिछड़ गया वो पूरी तरह साफ हो गया। बिहार में एक वक्त लालू राज भी इसी फॉर्मूले पर बना था…लालू ने सत्ता में रहते यादव, मुस्लिम समीकरण बनाया और 15 साल तक बिहार पर राज किया..लालू के इस सियासी फॉर्मूले का तोड़ आखिरकार नीतीश ने निकाला..नीतीश ने बिहार में लालू राज का तिलिस्म तोड़ने के लिए अति पिछड़ा और महादलित कार्ड खेला, कुर्मी वोट बैंक को अपने साथ जोड़ा और सत्ता की चाबी हासिल की। और दूसरी तरफ बीजेपी अपर कास्ट को अपने साथ लाई …और यही फॉर्मूला बिहार में NDA गठबंधन के लिए हर बार वरदान साबित हुआ। लेकिन इस बार बीजेपी और नीतीश कुमार दोनों ही चुनाव से पहले अपने वोटबैंक के दायरे को बढ़ाना चाहते हैं और नजर लालू यादव के वोटबैंक पर है। इसलिए चुनाव से पहले हर तरह के दांव खेले जा रहे हैं।
वासिन्द्र मिश्र
@vasindra_mishra