जनतंत्र डेस्क, उत्तराखंड: बच्चों को भगवान का रूप माना जाता है। कहा जाता है उनका मन साफ होता है, बड़े भले ही भेदभाव करें लेकिन बच्चों में ऐसी कोई भावना नहीं होती। आखिर स्कूल में बच्चों को सिखाया भी तो ये ही जाता है। लेकिन उत्तराखंड के एक सरकारी स्कूल में जात-पात, भेदभाव की तस्वीर नजर आई। यहां ऊंची जाति के छात्रों ने दलित भोजनमाता के हाथों से बना खाना खाने से इंकार कर दिया।
मामला चंपावत जिले में सुखीडांग इलाके के जौल गांव का है। जहां ऊंची जाति के छात्रों ने दलित महिला के पकाए गए भोजन को खाने से इंकार कर दिया है। अनुसूचित जाति की सुनीता देवी को हाल ही में जौल गांव के गवर्नमेंट सेकेंडरी स्कूल में भोजनमाता के तौर पर नियुक्त किया गया था। उन्हें कक्षा 6 से 8 तक के छात्रों के लिए मिड डे मील तैयार करने का काम सौंपा गया था। पहले दिन तो छात्रों ने सुनीता देवी के हाथों का खाना खाया लेकिन दूसरे दिन भोजन का बहिष्कार कर दिया। जिसके बाद राज्य में जातिगत भेदभ व को लेकर बहस छिड़ गई।
57 में से 16 अनुसूचित जाति के छात्रों ने ही खाया खाना
स्कूल के प्रिंसिपल का कहना है कि, बच्चों ने पहले दिन तो सुनीता देवी के हाथ से बना खाना खाया था। दूसरे दिन इंकार कर दिया, ऐसा क्यों समझ से परे है। हैरान करने वाली बात ये है कि कुछ 57 छात्रों में से अनुसूचित जाति के 16 छात्रों ने ही सुनीता देवी के हाथों से बना मिड डे मिल खाया।
ऊंची जाति के योग्य उम्मीदवार को न चुनने का आरोप
खाने का बहिष्कार करने वाले स्टूडेंट्स के पेरेंट्स का कहना है कि ऊंची जाति के योग्य कैंडिडेट को जानबूझकर नहीं चुना गया। स्कूल के अभिभावक शिक्षक संघ के अध्यक्ष का कहना है, “25 नवंबर को हुई ओपन मीटिंग में हमने पुष्पा भट्ट को चुना था, जिनका बच्चा स्कूल में पढ़ता है। वह भी जरूरतमंद थीं, लेकिन प्रिंसिपल और स्कूल मैनेजमेंट कमेटी ने उसे दरकिनार कर दिया और एक दलित महिला को भोजनमाता नियुक्त किया।”
‘गैर जरूरी विवाद’
अभिभावक शिक्षक संघ के अध्यक्ष ने अजीब दलील दी है कि, ऊंची जाति के स्टूडेंट्स की संख्या अनुसूचित जाति के छात्रों से ज्यादा है, इसलिए उच्च जाति की महिला को भोजनमाता के रूप में नियुक्त किया जाना चाहिए। स्कूल के प्रिसिंपल ने कहा, उन्होंने उच्च अधिकारियों को नियुक्ति और उसके बाद बहिष्कार के बारे में जानकारी दे दी है। कुछ पेरेंट्स गैर-जरूरी विवाद खड़ा कर रहे हैं।
प्रिंसिपल ने कहा, सभी सरकारी मानदंडों के हिसाब से सुनीता नियुक्त किया गया। उन्होंने बताया, ‘हमें भोजनमाता के पद के लिए 11 आवेदन मिले थे। दिसंबर के पहले सप्ताह में आयोजित अभिभावक शिक्षक संघ और स्कूल प्रबंधन समिति की ओपन मीटिंग में उनका चयन किया गया था।’
बहरहाल सुनीता देवी की नियुक्ति के पीछे कोई भी वजह हो लेकिन उनकी बनाई मिड डे मिल खाने से बच्चों का इंकार करना वो भी इसलिए क्योंकि सुनीता देवी दलित हैं। ये बेहद गंभीर मसला है कि, जाति के भेदभाव और छूआछूत से बच्चों को मासूम मन भी अछूता नहीं रहा।