नई दिल्लीः कोरोना की चपेट में आ जाने से लोगों की हालात काफी गंभीर हो जाती है, ऐसे में जब उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ता है वहां उनकी गंभीर स्थिति को देखते हुए ऑक्सीजन देनी पड़ती है। ऑक्सीजन के बारे में सुना तो सभी ने होगा लेकिन बहुत ही कम लोगों को ये पता होगा कि ये मेडिकल ऑक्सीजन (Medical Oxygen) क्या होती है।
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गंभीर मरीजों को इस ऑक्सीजन की जरुरत क्यों पड़ती है, जब वो पहले से ऑक्सीजन ले रहे होते हैं। आइये आपको बताते हैं कि आखिर क्या होती है ये मेडिकल ऑक्सीजन, और कैसे मरीजों की जान बचने का काम करती है
क्या होती है मेडिकल ऑक्सीजन ?
बता दें की जानकारी के अनुसार ऑक्सीजन हवा और पानी दोनों में मौजूद है। हवा में 21 प्रतिशत ऑक्सीजन होती है और 78 प्रतिशत नाइट्रोजन होती है। इसके अलावा एक प्रतिशत अन्य गैसें होती हैं। इनमें हाइड्रोजन, नियोन और कार्बन डाईऑक्साइड भी होती है। पानी में भी ऑक्सीजन होती है। पानी में घुली ऑक्सीजन की मात्रा अलग-अलग जगहों पर अलग हो सकती है। 10 लाख मॉलिक्यूल में से ऑक्सीजन के 10 मॉलिक्यूल होते हैं। यही वजह है कि इंसान के लिए पानी में सांस लेना कठिन है, लेकिन मछलियों के लिए आसान।
हवा से अलग की जाती है ऑक्सीजन
दरअसल हवा से ऑक्सीजन को अलग कर ऑक्सीजन प्लांट में लिया जाता है। इसके लिए एयर सेपरेशन की तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। यानि हवा को कंप्रेस किया जाता है और फिर फिल्टर किया जाता है। अब इस फिल्टर हुई हवा को ठंडा किया जाता है। इसके बाद इस हवा को डिस्टिल किया जाता है ताकि ऑक्सीजन को बाकी गैसों से अलग किया जा सके। इस प्रक्रिया में ऑक्सीजन लिक्विड बन जाती है और फिर उसे इकट्ठा किया जाता है। आजकल एक पोर्टेबल मशीन आती है, ये मशीन हवा से ऑक्सीजन को अलग करके मरीज तक पहुंचाती रहती है।
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ऐसे मरीजों तक पहुँचती है ऑक्सीजन
आपको बता दें की मेडिकल ऑक्सीजन को बड़े से कैप्सूलनुमा टैंकर में भरकर अस्पताल पहुंचाया जाता है। अस्पताल में इसे मरीजों तक पहुंच रहे पाइप्स से जोड़ दिया जाता है लेकिन हर अस्पताल में ये सुविधा नहीं होती है। इसी वजह से अस्पतालों के लिए इस तरह के सिलेंडर बनाए जाते हैं। इन सिलेंडरों में ऑक्सीजन भरी जाती है और इनको सीधे मरीज के तक पहुंचाया जाता है।देश में मेडिकल ऑक्सीजन के 10-12 ही बड़े निर्माता हैं और 500 से अधिक छोटे गैस प्लांट में इन्हें बनाया जाता है।
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