नई दिल्ली: राजनीति का रिवर्स गियर। जी हां बुढ़ापे में एक बार फिर बेटों की नाकामी सिद्ध होने के बाद राजनीतिक रसूख और पार्टी का वजूद बचाने के लिए दिग्गज मैदान में हैं। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद पार्टी की कमान छोड़ चुके राहुल की जगह एक बार फिर सोनिया गांधी कांग्रेस को नई दिशा दिखा रहीं हैं, या फिर यूं कहें कि सोनिया गांधी के फिर मोर्चे पर लौटने का मतलब राहुल गांधी की विफलता पर मुहर लग जाने जैसा है। जी हां खराब स्वास्थ्य के चलते सक्रिय राजनीति से दूर रहने वाली सोनिया गांधी को बेटे और कांग्रेस ने इतना मजबूर कर दिया। कि संसदीय राजनीति की सक्रिय भूमिका में सोनिया को वापसी करनी पड़ी। यहां काबिले गौर ये भी हो जाता है। कि 2017 में गुजरात विधानसभा के चुनाव खत्म होने के बाद सोनिया ने ही राहुल को कांग्रेस की कमान सौंप थी। सोनिया ने ये भी कहा था कि ‘राहुल गांधी मेरे भी नेता हैं, और खुद के चुनाव लड़ने का फैसला भी कांग्रेस पर ही छोड़ दिया था, लेकिन सोनिया को ये इल्म बिल्कुल नहीं था कि उन्ही का बेटा इस्तीफा देकर बैठ जाएगा और एक बार फिर सोनिया को ही पार्टी की कमान सम्भालनी होगी।
कांग्रेस के बाद अब बात समाजवादी पार्टी की जी हां उत्तर प्रदेश की राजनीति के सुल्तान रहे यादव परिवार की जिसके मुखिया है मुलायम सिंह यादव. दरअसल मुलायम सिंह यादव भी अपना ताज बेटे अखिलेश के सिर पर सजाने के बाद खास खुश तो नहीं हैं…कारण भी जायज है…बेटा है कि मानता ही नहीं…यादव परिवार में शिवपाल को लेकर हुई कलह तो जग जाहिर है…पहले अखिलेश ने शिवपाल के कोटे के मंत्रियों की छुट्टी की और फिर भरे मंचों पर चाचा भतीजे की लड़ाई साफ दिखाई दी…नतीजा हुआ कि मुलायम की समाजवादी में से…लोहिया की विचारधारा लेकर शिवपाल ने नई पार्टी का एलान कर दिया…और नाम दिया गया प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया….बात यहीं तक नहीं रुकी लोकसभा में बबुआ ने मुलायम सिंह की राजनीति में धुर विरोधी रहीं बुआ मायावती से गठबंधन किया…और 2019 की मोदी लहर में समाजवादी पार्टी चारों खाने चित्त नजर आई….बीएसपी को 10 और एसपी को महज 5 सीटों पर जीत मिली…खबर ये भी थी कि नेताजी गठबंधन के पक्ष में नहीं थे…लेकिन बात लौटकर बेटे की जिद पर ही आनी थी…लिहाजा अब अपनी पार्टी के नेता आज़म के लिए नेता जी ने खुद मैदान संभाला है।
राजनीति के रिवर्स गियर में हरियाणा और बिहार भी शामिल है…हाल ही में लालू की गैरहाजिरी में बिहार का पहला चुनाव खत्म हुआ है…और चुनाव में लालू के दो लाल तेज और तेजस्वी के रंग को पूरे देश ने देखा है…जिसके बाद साफ कहा जा सकता है…कि जेल में बंद लालू को कभी उम्मीद न होगी ये उसके दोनों लाल मिलकर पार्टी को पाताल में पहुंचाने की कार्ययोजना तैयार कर देंगे…ऐसे ही कुछ हालात हरियाणा के भी हैं…जहां कभी सूबे के सुल्तान रहे भूपेन्द्र सिंह हुड्डा और उनके बेटे दीपेन्द्र हुड्डा लोकसभा में अपनी ही सीट नहीं बचा पाए…और अब कांग्रेस में अपने वजूद को तलाश रहे हैं।