नई दिल्लीः गांधी जयंती: एकमात्र वस्तु जो हमें पशु से भिन्न करती है वह है अहिंसा। व्यक्ति हिंसक है तो फिर वह पशु के समान है। मानव होने या बनने के लिए अहिंसा का भाव होना जरूरी है। यह कथन है सत्य और अहिंसा के अनुपालक महात्मा गांधी का। बापू ने अपनी पूरी जिंदगी जिन मूल्यों को साथ में रखा उनमें अंहिसा का भाव सर्वोपरी रहा। गांधी के वचनों पर बौद्ध धर्म गुरू दलाई लामा ने कहा था कि ”अहिंसा को राजनीति में ही नहीं, बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी में भी प्रभावी तरीके से लागू किया जा सकता है। अपने उदाहरण से इसे साबित करना गांधी जी की महान उपलब्धि थी” बापू आज हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनके जीवन मुल्यों और वचनों से आज भी हर कोई प्रेरणा लेता है। वो गांधी जी ही थे जिन्होंने आक्रामक अंग्रेजों के खिलाफ अहिंसा का हथियार उठाया।
आज के परिवेश में अहिंसा के मायने
दुनिया आधुनिक तौर तरिकों में प्रवेश करती जा रही है। ये 21वीं सदी है जहां टेक्नोलॉजी और मॉर्डेनिटी की बात होती है। समय समय पर जरूरी मुद्दों पर बहस भी होती है। न्याय और अधिकारों की रक्षा की बात होती है, मगर अपराध की काली स्याही में समाज अंधेरे में गुम होता जा रहा है। आए दिन चोरी डकैती हत्या जैसी तमाम घटनाएं समाज को शर्मसार करती हैं। गाँधी जी कहते थे कि हमारा समाजवाद अहिंसा पर आधारित होना चाहिए। जब हम समाजवाद या सोशलिज्म की बात करते हैं तो उसमें अहिंसा और परस्पर सहयोग का भाव शामिल रहता है। बापू का मानना था कि अंहिसा मालिक-मजदूर और जमींदार-किसान के मध्य परस्पर सद्भावपूर्ण सहयोग की कड़ी है।
सच्ची अहिंसा मृत्युशैया पर भी मुस्कराएगी- बापू
गांधी के विचारों ने ही उन्हें महात्मा बनाया। सत्य के रास्ते पर अटल और अहिंसा को हथियार मानकर अंग्रेजो को भी झुका देने वाले गांधी के विचार में निशस्त्र अहिंसा की शक्ति किसी भी परिस्थिति में सशस्त्र शक्ति से सर्वश्रेष्ठ होगी। सच्ची अहिंसा मृत्युशैया पर भी मुस्कराती रहेगी। बहादुरी, निर्भीकता, स्पष्टता, सत्यनिष्ठा, इस हद तक बढ़ा लेना कि तीर-तलवार उसके आगे तुच्छ मालूम पड़े।
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गांधी किससे प्रेरित थे ?
यूं तो भगवान महावीर, भगवान बुद्ध और महात्मा गाँधी की अहिंसा की धारणाएँ अलग-अलग थीं। फिर भी वेद, महावीर और बुद्ध की अहिंसा से महात्मा गाँधी प्रेरित थे। हमारे लिए अहिंसा शब्द के क्या मायने हैं? शायद ये कि किसी को शारीरिक या मानसिक रूप से दुख ना पहुंचाएं…लेकिन हिंसा के मायने हर अहसास से उपर हैं। मन, वचन और कर्म से भी किसी की हिंसा न करना अहिंसा कहा जाता है। हम कितने अहिंसक हैं इसकी झलक हमारी बोली में भी दिख जाएगी। महात्मा गांधी के लिए अहिंसा का अर्थ इससे कहीं ज्यादा गहरा था। गांधी जी के लिए सत्य और अहिंसा अलग अलग नहीं थे। उनके विचार में जो व्यक्ति सत्य पर अटल है वह अहिंसा के मार्ग पर ही चलेगा।
“लश्कर-ए-गांधी को हथियारों की कुछ हाजत नहीं, हां मगर बेइंतिहा सब्र-ओ-कनाअत चाहिए”
ये शब्द हैं अकबर इलाहाबादी के…1919-1921 के बीच रचित गांधीनामा में अकबर इलाहाबादी ने महात्मा गांधी के लिए ये लिखा था। इसका अर्थ है ”गांधी की सेना को हथियारों की जरूरत नहीं है। उसे जरूरत है तो सिर्फ सब्र और संतोष की” इन्हीं मूल्यों को हथियार मानकर गांधी ने ब्रिटिश शासन के साथ संघर्ष किया।