नोटबंदी के 3 साल : देश को कितना फायदा और कितना नुकसान ?
नई दिल्ली : 8 नवम्बर 2016 को जब पीएम मोदी ने देश को संबोधित करते हुए 500 और 1000 के नोटों को बंद करने की घोषणा की थी, तो देश भर में हडकंप मच गया था। नोटबंदी के बाद बैंकों में पुराना नोट जमा करवाने व नए नोट लेने के लिए लंबी-लंबी लाइनें लगनी शुरू हो गयी और ये सिलसिला कई महीनों तक जारी रहा। उस समय मोदी सरकार ने नोटबंदी के कई कारण गिनवाए थे, साथ ही इससे देश को होने वाले फायदों के बारे में बताया था, लेकिन नोटबंदी के 3 साल पुरे होने पर मोदी सरकार का नोटबंदी को लेकर किया गया वादा कितना सफल रहा ? आइये इसकी पड़ताल करते हैं।
कालेधन पर लगा कितना लगाम ?
नोटबंदी के पीछे की सबसे बड़ी वजह कालेधन पर नकेल कसने को बताया गया था, लेकिन 3 साल पुरे होने के बाद भी अभी तक इस तरह का कोई आंकड़ा सामने नहीं आया, जिससे ये साफ़ हो सके कि आखिर नोटबंदी से कालेधन पर किस हद तक लगाम लगा और कितना कालाधन देश में वापस आया। दरअसल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के घोषणापत्र में कालाधन को वापस लाने का वादा किया गया था और नोटबंदी को इस प्रक्रिया का हिस्सा बताया गया था, लेकिन अभी तक तस्वीर साफ़ नहीं हो पाई है। आरबीआई के द्वारा जारी किये गए आंकड़ों के अनुसार नोटबंदी के दौरान बंद हुए 99.30 फीसदी 500 और 1000 के पुराने नोट बैंक में वापस आ गए। जब सारा पैसा वापस बैंकों में लौट गया, तो फिर सरकार कालेधन को पकड़ने में कैस कामयाब रही ?
नकली नोटों को खत्म करने का मकसद रहा सफल ?
सर्कुलेशन में मौजूद नकली नोटों को खत्म करने के मकसद से भी नोटबंदी की गई थी, लेकिन नोटबंदी के बाद भी देश के कई हिस्सों में आये दिन नकली नोटों के खेप बरामद होने की खबर सामने आती रहती है। ऐसे में सरकार का ये मकसद भी विफल ही नज़र आता है। हैरानी की बात ये है कि नोटबंदी के तुरंत बाद ही मार्केट में नए नोटों के नकली नोट आ गए थे, जो बड़े पैमाने पर बरामद किये गए थे। रिजर्व बैंक के ही आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2016-17 में जहां दो हजार के 638 जाली नोट पकड़ में आये थे, 2017-18 में इनकी संख्या बढ़कर 17,938 हो गई।
नोटबंदी का सबसे बड़ा साइडइफ़ेक्ट ये रहा कि इसने देश की अर्थव्यवस्था को जो झटका दिया, उससे देश 3 साल बाद भी नहीं उबर पाया है। नोटबंदी के कारण कई छोटे धंधे तबाह हो गए, जिससे बड़े पैमाने पर लोगों को बेरोज़गारी का सामना करना पड़ रहा है। मौजूदा समय में जीडीपी विकास दर गिरकर 5 फीसदी पर आ गई, जो पिछले छह साल में सबसे निचला तिमाही आंकड़ा है।
कैशलेस ट्रांसेक्शन को बढ़ावा देने का उद्देश्य भी विफल
कैशलेस ट्रांसेक्शन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भी नोटबंदी की गई थी, जिसमें सरकार काफी हद तक सफल रही। नोटबंदी के बाद कैशलेस ट्रांसेक्शन का प्रचलन बढ़ा और बड़े पैमाने पर लोग मोबाइल वोलेट का इस्तेमाल करने लगे। हालाँकि नोटबंदी के करीब 6 महीने बाद ही कैशलेस ट्रांसेक्शन में कमी आने लगी और लोग एक बार फिर नगदी पर आ गए।
आतंकवाद और नक्सलवाद पर लगा लगाम ?
आतंकवाद और नक्सलवाद पर लगाम लगाने की बात भी नोटबंदी के दौरान कही गई थी, लेकिन 3 साल बाद भी अभी तक इस तरह का कोई आंकड़ा सामने नहीं आय, जो इस बात की तस्दीक कर सके कि नोटबंदी से आतंकवाद और नक्सलवाद पर लगाम लगा भी या नहीं। हालांकि नक्सली गतिविधियों में कमी देखने को जरूर मिली है।
कुल मिलाकर देखा जाये तो नोटबंदी जिस मकसद से की गई थी, उसमें सरकार विफल ही रही, लेकिन बावजूद इसके बीजेपी की तरफ से नोटबंदी को साहसी फैसला बताया जाता रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में जब कभी भी विपक्ष ने नोटबंदी को लेकर बीजेपी को घेरने की कोशिश की, तो सत्ता पाक्ष इससे कन्नी काटता नज़र आया।