अयोध्या विवाद का हल कब और कैसे निकलेगा? ये सवाल एक बार फिर उठ खड़ा हुआ है, क्योंकि एक बार फिर विवाद में मध्यस्थता की गुंजाइश खत्म होने का ऐलान हो गया। तीन महीने पहले 8 मार्च को सुप्रीम कोर्ट की पहल पर मध्यस्थता का प्रस्ताव बना। मंदिर विवाद पर हिंदू और मुस्लिम पक्षों के बीच आम सहमति बनाने के लिए अयोध्या मध्यस्थता पैनल को 31 जुलाई तक का समय दिया गया था, लेकिन मध्यस्थता कमेटी कामयाब नहीं रही। हालांकि ये पहला मौका नहीं है। विवाद शुरु होने के दिन से लेकर आज तक तीन बार ऐसी पहल हुई लेकिन हर बार नतीजा सिफर ही रहा।
हालांकि पहली बार है, जब कोर्ट की निगरानी में मध्यस्थता की पहल की गई थी। दिलचस्प बात ये भी थी कि अयोध्या मामले को मध्यस्थता के जरिए सुलझाने की इससे पहले कई कोशिशें हो चुकी हैं। पहली कोशिश 90 के दशक में तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह के समय में हुई। हिंदू-मुस्लिम दोनों पक्षकारों से बातचीत के सिलसिले भी शुरू हुए। विवाद हल होता नजर आ रहा था और समझौते का ऑर्डिनेंस भी लाया जा रहा था, लेकिन सियासत ने ऐसी करवट ली कि वीपी सिंह सरकार को अयोध्या विवाद को सुलझाने वाले ऑर्डिनेंस को वापस लेना पड़ा था।
वीपी सिंह के अयोध्या विवाद के समाधान की दूसरी पहल तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के दौर में शुरू हुई और ये समाधान के करीब थी, लेकिन दुर्भाग्य था कि उनकी सरकार चली गई। उसके बाद नरसिम्हा राव की सरकार ने प्रयास किया, लेकिन फिर भी अंतिम हल तक नहीं पहुंचाया जा सका। इसके बाद सरकार के स्तर पर दोबारा समझौते के लिए कोई प्रयास नहीं हुआ। अटल बिहारी वाजपेयी ने 2003 में कांची पीठ के शंकराचार्य के जरिए भी अयोध्या विवाद सुलझाने की कोशिश की थी, तब दोनों पक्षों से मिलकर जयेंद्र सरस्वती ने भी भरोसा दिलाया था कि मसले का हल महीने भर में निकाल लिया जाएगा लेकिन ऐसा तब भी कुछ नहीं हुआ था।
सुप्रीम कोर्ट में ये मामला बीते 9 सालों से लंबित है और अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अब इस मामले की सुनवाई तब तक चलेगी, जब तक कोई नतीजा नहीं निकल जाता है। बात अगर अयोध्या विवाद की करें तो इसकी शुरुआत तो आज से करीब 500 साल पहले हो गई थी, जब साल 1528 में अयोध्या में मस्जिद का निर्माण हुआ। कहा जाता है कि मुगल सम्राट बाबर के सेनापति मीर बाकी ने ये मस्जिद बनवाई थी। इस कारण इसे बाबरी मस्जिद के नाम से जाना जाता है. जबकि हिन्दू उस स्थल को अपने आराध्य भगवान राम का जन्मस्थान मानते हैं और वहां राम मंदिर बनाना चाहते हैं।
1853 में पहली बार यहां सांप्रदायिक दंगे तक हुए। 1859 में ब्रिटिश सरकार ने विवादित स्थल पर बाड़ लगा दी हालांकि पूजा की अनुमति थी। 1949 में स्थल पर भगवान राम की मूर्तियां मिलीं। मुस्लिमों ने इसे साजिश बताया और दोनों पक्षों की तरफ से पहली बार मुकदमा दाखिल किया गया। सरकार ने स्थल को विवादित घोषित करके ताला लगा दिया, इसके बाद करीब 35 सालों तक शांति रही और फिर 1986 में फैजाबाद के जिलाधिकारी ने ताला खुलवाने का आदेश दिया लेकिन मुस्लिम पक्ष विरोध में खड़ा हो गया।
इसके बाद लगातार विवाद बढ़ता ही रहा और 1992 में वीएचपी, शिवसेना और बीजेपी के कार्यकर्ताओं नेताओं ने मिलकर बाबरी मस्जिद को गिरा दिया जिसके बाद देशभर में दंगे हु्ए और करीब 2000 लोग मारे गए। इसके बाद लगातार विवाद की स्थिति बनी रही। साल 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थति बरकरार रखने का आदेश दिया। हालांकि इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर ASI ने खुदाई शुरु की जिसमें मंदिर से मिलते-जुलते अवशेष मिले।
जून 2009 में बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के मामले की जांच के लिए गठित लिब्रहान आयोग ने 17 सालों के बाद अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंपी। फिर आई 30 सितंबर 2010 की अहम तारीख, जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित 2.77 एकड़ जमीन को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान के बीच बराबर-बराबर बांटने का आदेश दिया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ 14 याचिकाएं दायर की गईं। अपेक्स कोर्ट ने मई 2011 में हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने के साथ विवादित स्थल पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया। अब इन 14 अपीलों पर लगातार सुनवाई होनी है।
यानि कुल मिलाकर अयोध्या विवाद में ताऱीख पर तारीख का सिलसिला जारी है और इंसाफ की आस में रामलला टेंट में विराजमान हैं, तो वहीं सियासत भी गाहे बगाहे अपनी राह तलाश कर ही ले रही है। फिलहाल नजरें इंसाफ की देवी पर आ टिकीं हैं कि अब वो ही करेंगी रामजी का बेड़ा पार।
-वासिन्द्र मिश्र
@vasindra_mishra