नई दिल्ली : भारत और नेपाल के बीच सीमा (Indo Nepal Border) पर तनाव का मुद्दा समय-समय पर सामने आता रहता है। शांत छवि वाले देश के तौर पर पहचान रखने वाले नेपाल का यूँ तो किसी से मतभेद नहीं है, लेकिन भारत के साथ सीमा विवाद का मुद्दा समय-समय पर बाहर आ ही जाता है। हाल ही में नेपाल ने भारत के कालापानी (Kalapani Territory) , लिपुलेख (Lipulekh Pass) और लिम्पियाधुरा को नेपाल का हिस्सा बताया था और इसको लेकर नया नक्शा भी जारी किया था, लेकिन बाद में भारत की आपत्ति को देखते हुए नेपाल ने अपने कदम पीछे खींच लिए।
Indo-Nepal Border पर तनाव और सुगौली संधि का अस्तित्व
भारत और नेपाल के बीच भारत के आज़ादी के बाद सीमा विवाद को लेकर भले ही कोई युद्ध न लड़ा गया हो, लेकिन भारत की आज़ादी से पहले भारत-नेपाल के बीच हुए युद्ध में नेपाल की करारी हार हुई थी, जिसने नेपाल के भूगोल को बदलने में बड़ी भूमिका निभाई। इस युद्ध के बाद ही सुगौली संधि अस्तित्व में आया और नेपाल को एक बड़े भूभाग से हाथ धोना पड़ा और ये भाग भारत में शामिल हो गए। नेपाल ने 1816 में सुगौली की संधि की थी। कहा जाता है कि अगर उस युद्ध में नेपाल की हार न होती, तो वर्तमान उत्तराखंड का अधिकांश हिस्सा नेपाल में होता।
ब्रिटिश भारत और नेपाल के बीच क्यों हुआ था युद्ध ?
दरअसल अँगरेज़ जब दुनिया भर में अपने उपनिवेश को विस्तार दे रहे थे, तो उनकी नज़र नेपाल पर भी थी। नेपाल से दोस्ती के प्रस्ताव के बहाने वहां अपना साम्राज्य स्थापित करने की कोशिश अंग्रेज़ों द्वारा की गई, लेकिन इसमें वो नाकाम रहे। उधर नेपाल के राजा भी साम्राज्य विस्तार में जुटे थे और भारत के हिस्सों पर धीरे-धीरे अपना प्रभुत्व स्थापित करने लगे थे। नेपाली साम्राज्य विस्तार की भनक अंग्रेज़ों को हो गई और उन्हें नेपाल से अपने साम्राज्य पर खतरा नज़र आने लगा।
शुरुआत में दोनों के बीच बातचीत का सिलसिला चला, लेकिन जब बात नहीं बनी तो बतो दोनों ने एक दूसरे के खिलाफ युद्ध का ऐलान कर दिया। नेपाल को लगा कि यूरोप में आंतरिक युद्ध और भारत में युद्ध का सामना कर रहे अंग्रेज़ों को मात देना आसान होगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। नेपाल ने चीन और भारत के कुछ राजाओं से मदद की गुहार लगाई, लेकिन बात नहीं बनी। नेपाल ने अंग्रेज़ों को संधि का प्रस्ताव भी भेजा, लेकिन ईस्ट इंडिया कंपनी ने 2 नवंबर 1814 को नेपाल के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया।
ईस्ट इंडिया के कब्जे में आया नेपाल का बड़ा भूभाग
इस युद्ध में नेपाल के राजा भीमसेन के अगुवाई में नेपाली सैनिक बहादुरी से लड़े, लेकिन ईस्ट इंडिया की बेशुमार ताकत के आगे नेपाली सैनिकों का पराक्रम काम नहीं आया और आंशिक सफलता को छोड़कर नेपाल को इस युद्ध में हार का सामना करना पड़ा और भारी नुकसान भी हुआ। इस युद्ध में हार के बाद नेपाल और ईस्ट इंडिया के बीच संधि हुआ, जिसे सुगौली संधि के नाम से जाना जाता है।
सुगौली संधि में नेपाल को वो भाग भी गंवाने पड़े, जो उन्होंने पहले के युद्ध में जीते थे। कहा जाता है कि वर्तमान उत्तराखंड का अधिकांश हिस्सा नेपाल का भाग हुआ करता था, लेकिन सुगौली संधि के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने इन भूभागों को भारत में शामिल कर लिया। हालाँकि इसी संधि के आधार पर आज़ादी के बाद दोनों देशों के बीच अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर सहमति बनी, लेकिन समय-समय पर सीमा विवाद का जिन्न सामने आ जाता है।