नई दिल्ली- देश के कई राज्यों में लोग भीषण गर्मी की मार झेल रहे है और पानी की समस्या लगातार विकराल रूप लेती जा रही है। हाल ही में नीति आयोग की रिपोर्ट में भी कहा गया कि वर्ष 2030 तक लगभग 40 फीसदी लोगों की पहुंच पीने के पानी से दूर हो जाएगी। ऐसे में पीएम मोदी ने इस समस्या के निराकरण को लेकर जन आंदोलन की अपील की है और इसके लिए जन शक्ति से जल शक्ति का नारा दिया है।
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून
भले ही रहीम के समय देश में पीने के पानी की संकट नहीं था, लेकिन वो दूरदर्शिता जरूर थी, जो समाज को जल संरक्षण की ओर ले जाए। 15 वीं शताब्दी में रहिम ने जो उपदेश दिया था और उसका सार आज समझने का वक्त आ गया है। जलवायु परिवर्तन, खत्म होते जंगल और विकास की अंध दौड़ में लगातार हो रहे कंक्रीट के शहरों के निर्माण में जो चीज पीछे छूट रही है वो है जल, जिसका संरक्षण वर्तमान के साथ एक बेहतर भविष्य के लिए बहुत ज्यादा जरूर है।
मन की बात में पानी की बात
यही कारण है कि अब देश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल की पहली मन की बात में इस भीषण समस्या से निजात दिलाने के लिए जन आंदोलन की बात की। मन की बात कार्यक्रम में पीएम ने स्वच्छता के साथ ही जल संरक्षण का नारा दिया। प्रधानमंत्री ने कहा कि जन शक्ति के जरिए जल शक्ति को हमें सुनिश्चित करना होगा। देश का एक बड़ा हिस्सा आज जल संकट से जूझ रहा है और हमारे बेहतर भविष्य के लिए ये जरूरी हो जाता है कि हम समय रहते इस समस्या का स्थाई समाधान निकालें, पीएम ने इसे लेकर तीन सुझाव भी दिए।
एक तरफ देश के बेहतर भविष्य के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जल संरक्षण को एक मुहिम के रूप में शुरू करने की अपील कर रहे हैं, तो इस भीषण समस्या की अगर गहराई से पड़ताल की जाए तो जो तथ्य सामने आते हैं वो ये सिद्ध करने के लिए काफी हैं कि कैसे इंसान ने आधुनिकता की अंध दौड़ में न केवल प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया है। बल्कि प्रकृति को इस कदर नुकसान भी पहुंचाया कि आज गर्मी के कारण देश उबल रहा है और तटवर्टी इलाकों को अगर छोड़ दिया जाए तो बारिश न होने के कारण देश का अधिकांश हिस्सा जल संकट से जूझने को मजबूर है।
आंकड़े
देशभर में पिछले 10 सालों में करीब 30 फीसदी नदियां सूख चुकी हैं।
70 सालों में 20 लाख तालाब, कुएं, पोखर, झीलों का अस्तित्व खत्म हो चुका है।
सबसे बड़ी बात है कि भारत में भू-जल स्तर 40 मीटर तक नीचे चला गया है।
नीति आयोग ने भी माना है कि 2030 तक पीने का पानी 40% लोगों की पहुंच से दूर हो जाएगा।
आंकड़े बहुत भयावह हैं
देश में लगातार नीचे जा रहे भू-जल स्तर और सूखती नदियां चिंता का विषय बन चुकीं हैं। यूं तो देश में वर्षा जल संरक्षण के लिए तमाम प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन जन जागरुकता के बिना ये सभी प्रयास अधूरे हैं। बारिश के दिनों में जहां देश का अधिकांश हिस्से में हरियाली दिखाई देती है। वहीं चंद रोज में ही ये हरियाली फिर बंजर जमीन में तब्दील हो जाती है। वहीं धरती के गर्भ से लगातार हो रहे पानी के दोहन का परिणाम ये है कि भू-जल स्तर नीचे जा रहा है। तालाब सूख चुके हैं, नदियों की धार धीमी हो गई है और हमारे पुराने जल स्त्रोत जैसे कुएं, पोखर और बाबरियां हमारी ही गलतियों से प्रदूषित हो चुकीं हैं। शहरों के गंदे नालों को नदियों के स्वच्छ जल में छोड़ जा रहा है और जो बचा खुचा स्वच्छ जल है उसे भी हम प्रदूषित कर रहे हैं।
केंद्र सरकार की बजट में इजाफा
बताते चलें कि लगातार जल संरक्षण को लेकर केन्द्र के द्वारा बजट में इजाफा किया जा रहा है और अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जल संरक्षण के लिए देशवासियों से मुहिम चलाने की अपील की है। माना जा सकता है कि स्वच्छ भारत अभियान की तरह ही जन शक्ति से जल शक्ति के नारे को भी देश का जनसमर्थन मिल सकता है और एक बेहतर भविष्य के लिए देश का आम नागरिक जल संरक्षण की दिशा में कदम उठा सकता है। इसी मंशा के साथ देश में जल शक्ति मंत्रालय की भी स्थापना की गई है। पीएम भी इस मंत्रालय को लेकर अपनी मंशा स्पष्ट कर चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी मन की बात कार्यक्रम के दौरान ये कहा कि जल शक्ति मंत्रालय के जरिए नदियों के रख रखाव और जल संरक्षण के कार्यों को प्रगति मिलेगी।