राहत या प्रोपेगेंडा ?
भारत सरकार की तरफ से बार-बार ये याद दिलाया जा रहा है कि लाखों करोड़ों रुपए गरीबों के कल्याण पर खर्च किए जा रहे हैं… कोरोना के बेहिसाब मामले और भारत चीन बॉर्डर पर तनाव के बीच प्रधानमंत्री मोदी जब देश की जनता को संबोधित करने आए तो ये एक बार फिर याद दिलाया कि किस तरह सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत गरीबों की मदद के लिए पौने दो लाख करोड़ रुपए का पैकेज दिया … बीते तीन महीनों में 20 करोड़ गरीब परिवार के जनधन खातों में सीधे 31 हज़ार करोड़ रुपए जमा कराए गए… उन्होंने तुलना करते हुए ये भी बताया कि किस तरह अमेरिका की कुल आबादी से ढाई गुना, ब्रिटेन की कुल आबादी से 12 गुना और और युरोपियन युनियन के देशों की आबादी से दोगुने से ज्यादा लोगों को हमारी सरकार ने मुफ्त अनाज दिया । सरकार ने इस बात का ज़िक्र भी किया सरकार अब तक 50 हज़ार करोड़ रुपए इस पर खर्च कर चुकी है और आने वाले पाँच महीनों में गरीबों की राहत के लिए 90 हज़ार करोड़ से ज्यादा खर्च करने जा रही है … अब इस आंकड़े को करीब से देखते हैं .. 80 करोड़ लोगों पर अगले 5 महीनों में 90 हज़ार करोड़ खर्च किए जाएंगे यानि अगले पाँच महीनों में प्रति व्यक्ति ये खर्च 1125 रुपए का होगा यानि हर महीने प्रति व्यक्ति सरकार को 225 रुपए खर्च करने पड़ेंगे .. सरकार की इस पहल का स्वागत किया जाना चाहिए..
सरकार ने अपनी इस योजना के तहत नवंबर महीने तक का वक्त तय किया है जब बिहार में चुनाव होने हैं … उन्होंने खासकर इस बात पर जोर दिया कि छठ तक गरीबों को मुफ्त राशन दिया जाएगा .. अब ये बात सब जानते हैं कि बिहार में छठ पूजा का कितना महत्व होता है …. ऐसे में एक तीर से दो निशाने लगाए गए.. कोविड 19 के लिए पैकेज भी हो गया और बिहार चुनाव के लिए जनता को संदेश भी दे दिया गया ..
80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज देने की योजना का ज़िक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि इससे पूरी दुनिया हैरान है … अब इस बात पर गौर करिए कि तुलनात्मक बातचीत में प्रधानमंत्री ने जिन देशों का नाम लिया वो क्या कर रहे हैं….. ब्रिटेन की तरफ से उनके देश में जिन लोगों की नौकरियाँ जाने का खतरा है उनकी सैलरी का 80 फीसदी हिस्सा सरकार दे रही है ताकि उन्हें नौकरी से ना निकाला जाए .. ऐसे लोगों की संख्या लाखों में है .. सरकार इसके तहत हर ऐसे शख्स के लिए हर महीने 2500 पाउंड यानि 2 लाख 20 हज़ार रुपए तक की मदद कर रही है । ये पैसे सीधे कंपनी के खाते में जाते हैं ताकि कंपनी आर्थिक संकट की वजह से अपने कर्मचारी को निकाले नहीं ।
अमेरिका अपने देश में हर बेरोज़गार को भत्ता देता है … महामारी के दौर में इस बेरोज़गारी भत्ते के अलावा हर महीने 600 यूएस डॉलर यानि 45 हज़ार रुपए तक का एडिशनल भत्ता दिया गया ताकि लोगों को इस संकट से उबरने में मदद मिले …और इस वक्त अमेरिका की लगभग 50 फीसदी आबादी बेरोजगार है ।
यहां ये सवाल उठेंगे कि भारत की तुलना अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों से नहीं की जानी चाहिए … ये बात सच भी है लेकिन कोरोना महामारी के प्रबंधन के लिए भी ऐसा ही किया जाना चाहिए था … भारत ने कोरोना के मामले, मृत्यु दर की तुलना हमेशा ब्रिटेन, अमेरिका, इटली और स्पेन जैसे देशों से की है … जबकि इंडियन सब कॉन्टिनेंट के देशों यानि पाकिस्तान में अब तक लगभग 2 लाख 10 हज़ार संक्रमण के मामले सामने आए हैं.. बांग्लादेश में डेढ़ लाख, चीन में 83 हज़ार, नेपाल में 14 हज़ार, श्रीलंका में करीब 2 हज़ार और भूटान में 77 मामले सामने आए हैं … यानि इन देशों ने कोरोना पर काबू पाने में फिर भी कामयाबी हासिल की है … ऐसे में क्या ये माना जाए कि सरकार की तरफ से ऐहतियातन कदम उठाने में थोड़ी देरी हुई … विश्व स्वास्थ्य संगठन चेतावनी देता रहा और हम उस पर समय रहते उचित कार्रवाई नहीं कर पाए …
यहाँ बात भारत की अर्थव्यवस्था की भी होनी चाहिए … आपको याद होगा कि कोरोना संकट के आने से पहले ही दिसंबर में भी मूडीज ने भारत का विकास दर का अनुमान घटा दिया था … अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी मूडीज ने 2019-20 के लिए भारत की जीडीपी विकास दर 5.8% से घटाकर 4.9% कर दी थी … खुद कमज़ोर पड़ती अर्थव्यवस्था की वजह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आर्थिक सलाहकार परिषद के साथ बैठकें कर रहे थे .. मंदी की आहट को देखते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण हर सेक्टर के लोगों से मिलकर चर्चा कर रही थीं… कमजोर पड़ती अर्थव्यवस्था को और बुरी हालत में जाने की प्रक्रिया में कोविड ने आग में घी की तरह काम किया है… अब जब रोजाना कोरोना के रिकॉर्डतोड़ मामले ये साबित कर चुके हैं कि लॉकडाउन का उद्देश्य सफल नहीं हुआ तो लोग दोहरी मार देख रहे हैं … अर्थव्यवस्था भी बिगड़ी और कोविड का फैलाव भी नहीं रुका … यानि ना तो जान की रक्षा हो पाई ना ही माल की रक्षा हो सकी ।
अब जब सरकार खुद ही इस बात को कह रही है कि देश में 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन दिया जा रहा है .. यानि ये 80 करोड़ लोग एक किलो दाल और पाँच किलो चावल या गेहूं के लिए सरकार पर निर्भर हैं … ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर भारत की 60 फीसदी आबादी को गरीबी रेखा से नीचे पहुँचाने के लिए कौन ज़िम्मेदार है … किसकी नीतियों की सज़ा ये भुगत रहे हैं ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से समाज का हर वर्ग अपेक्षाएं लगाकर बैठा है …. ऐसे में उन्होंने टैक्सपेयर्स का शुक्रिया भी अदा किया… प्रधानमंत्री ने वन नेशन वन राशन कार्ड का भी ऐलान किया .. हालांकि इससे पहले राम विलास पासवान और निर्मला सीतारमण इसका ऐलान कर चुके हैं … दोबारा इसे बताकर प्रधानमंत्री ने लोगों को एक बार फिर भरोसा दिलाने की कोशिश ज़रूर की है …
– वासिन्द्र मिश्र