Supreme Court ने Prashant Bhushan पर लगाया 1 रुपये का जुर्माना
नई दिल्ली : वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने भूषण (Prashant Bhushan) पर 1 रुपये का जुर्माना लगाया है। सुप्रीम कोर्ट ने भूषण को 15 सितंबर तक 1 रुपये का जुर्माना जमा कराने को कहा है। जुर्माना नहीं देने पर उन्हें तीन महीने की सजा होगी और 3 साल तक के लिए वकालत पर रोक लग जाएगी।
Supreme Court imposes a fine of Re 1 fine on Prashant Bhushan. In case of default, he will be barred from practising for 3 years & will be imprisoned of 3 months https://t.co/0lMbqiizBb
— ANI (@ANI) August 31, 2020
दरसल सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण को न्यायलय की अवमानना करने कि लिए दोषी माना था। बता दे कि 27 जून को वकील प्रशांत भूषण ने सीजेआई पर “लोकतंत्र के विनाश में भूमिका निभाने” का आरोप लगाया था। 29 जून को, उन्होंने वर्तमान CJI पर “भाजपा नेता की 50 लाख रुपये की बाइक की सवारी” और “ACC को लॉकडाउन (Lockdown) में रखने से नागरिकों को उनके न्याय के मौलिक अधिकार से वंचित रखने” का आरोप लगाया था।
Supreme Court bench headed by Justice Arun Mishra assembles to read out the judgement with respect to the sentencing of lawyer Prashant Bhushan in the contempt case against him pic.twitter.com/bLWOUQiDpj
— ANI (@ANI) August 31, 2020
वहीं 14 अगस्त को चीफ जस्टिस और पूर्व चीफ जस्टिस के खिलाफ आपत्तिजनक टि्वट के मामले में प्रशांत भूषण को सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना का दोषी करार दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि प्रशांत भूषण ने पूरे सुप्रीम कोर्ट के कार्यप्रणाली पर अटैक किया है और अगर इस तरह के अटैक को सख्त तरीके से डील नहीं किया जाता है तो इससे राष्ट्रीय प्रतिष्ठा और ख्याति प्रभावित होगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि लोगों का न्यायपालिका के प्रति भरोसा और न्याय पाने की क्षमता ही न्यायपालिका की बुनियाद है।
न्यायपालिका की बुनियाद को प्रभावित करने की कोशिश की जाएगी तो इससे लोगों का न्यायपालिका के प्रति अनास्था पैदा होगा। प्रशांत भूषण ने न सिर्फ झूठे आरोप लगाए बल्कि न्याय प्रशासन के वैभव पर अटैक किया। इस तरह का अटैक न्यायपालिका के प्रति आम लोगों के बीच अनादार का भाव पैदा करता है और इस हरकत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। बता दे कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में प्रशांत भूषण के उस दलील को खारिज कर दिया था कि उन्होंने लोकहित में स्वस्थ्य आलोचना की थी।