- बजट से पहले एक और बुरी खबर!
- यूएन ने GDP Growth का अनुमान घटाया
- 7वीं संस्था ने ग्रोथ रेट का अनुमान घटाया
- कैसे रफ्तार पकड़ेगी अर्थव्यवस्था?
नई दिल्ली- फरवरी को बजट आने वाला है। लेकिन उससे पहले यूएन के जरिए एक और बुरी खबर आ गई है। यूएन ने 2019-20 के लिए जीडीपी ग्रोथ रेट का अनुमान घटा दिया है। यूएन सांतवी ऐसी संस्था है जिसने विकास दर का अनुमान घटाया है। विकास दर कम होने के साथ एक्सपर्ट टैक्स कलेक्शन में भी भारी कमी की आशंका जता रहे हैं। क्या सरकार इन चुनौतियों से निपटने के लिए कोई बड़ा कदम उठा सकती है।
देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक के बाद एक बुरी खबरों के आने का सिलसिला जारी है। अब विश्व की सबसे बड़ी अंतर्राष्ट्रीय संस्था संयुक्त राष्ट्र यानि यूएन ने भी भारतीय अर्थव्यवस्था के सुस्त होने की पुष्टि कर दी है। यूएन ने 2019-20 के लिए की भारत विकास दर का अनुमान 1.9 फीसदी घटा दिया है। यूएन ने देश की अर्थव्यवस्था 5.7% की दर से बढ़ने की उम्मीद जताई है। पिछले साल यूएन ने 2019-20 के लिए जीडीपी विकास दर अनुमान 7.6% जाहिर किया था।
कई संस्थाओं ने GDP Growth का अनुमान घटाया
यूएन से पहले भी कई अंतरराष्ट्रीय और घरेलू एजेंसियां भारत की ग्रोथ रेट का अनुमान घटा चुकी हैं। यूएन ऐसी 7वीं संस्था है, जिसने भारत की विकास दर के अनुमान में कटौती की है। इससे पहले वर्ल्ड बैंक, रिजर्व बैंक, एसबीआई, एडीबी, मूडीज, एसबीआई और फिच ने भी ग्रोथ प्रोजेक्शन कम किया था।
एसबीआई ने पहले 5.0% ग्रोथ रेट का अनुमान किया था लेकिन बाद में इसे घटाकर 4.6% कर दिया। आरबीआई 6.1% से 5% फीसदी कर दिया। फिच ने 5.6% से 4.6% कर दिया। मूडीज ने 5.8% से घटाकर 4.9% फीसदी कर दिया। वर्ल्ड बैंक ने 6.0% से घटाकर 5% फीसदी कर दिया। एडीबी ने 6.5% से 5.1% कर दिया। और अब यूएन ने भारत की विकास दर 7.6% से घटाकर 5.7% कर दिया है।
GDP में गिरावट के मुख्य कारण
भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने भारत की जीडीपी ग्रोथ में गिरावट की जो तीन मुख्य वजहें बताई हैं। उनमें पहला ऑटो सेक्टर में मंदी है। दूसरा कॉरपोरेट टैक्स में कटौती के बावजूद औद्योगिक गतिविधियों में सुस्ती और तीसरा नॉन बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों यानि एनबीएफसी का नकदी संकट है। यूएन ने भारत की ग्रोथ रेट का अनुमान घटाने के बाद उसे दुरुस्त करने के उपाय भी सुझाएं हैं। यूएन ने जो पहला उपाय सुझाया है वो है आर्थिक सुस्ती के दौर से गुजर रहे भारत को ढांचागत सुधारों का आगे जारी रखना चाहिए। यूएन ने दूसरा उपाय सुझाया कि निवेश और खपत बढ़ाने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन और फाइनेंशियल सेक्टर में सुधार लाए जाएं।
टैक्स कलेक्शन कम होने की आशंका
विकास दर कम होने के साथ टैक्स कलेक्शन में कमी आने की आशंका भी जताई जा रही है। मोदी सरकार के दौरान वित्त सचिव रह चुके सुभाष चंद्र गर्ग ने अपने ब्लॉग में लिखा है कि इस साल टैक्स कलेक्शन 2 हजार 500 अरब रुपए कम हो सकता है। जो कुल जीडीपी का 1.2 फीसदी है। सुभाष चंद्र गर्ग ने कॉरपोरेट टैक्स, उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क कलेक्शन में भी गिरावट की आशंका जताई है। गर्ग ने कहा कि कुल मिलाकर केंद्र सरकार का सकल राजस्व संग्रह 3.5 लाख से 3.75 लाख करोड़ रुपये तक कम रह सकता है।
उन्होंने कहा कि यह काफी बड़ा फासला है और इसे गैर-कर राजस्व में अधिक प्राप्ति के जरिये भरना मुश्किल है। गर्ग ने कुल टैक्स कलेक्शन के टारगेट पर भी सवाल उठाया है। उन्होंने कहा है कि अगर राज्यों के हिस्से का 8.09 लाख करोड़ अलग रखा जाये तो केंद्र का टारगेट 16.5 लाख करोड़ रुपए हैं। जो बहुत ज्यादा और वास्तविकता से दूर है
सरकार में शामिल होंगे एक्सपर्ट!
अर्थव्यवस्था की लड़खड़ाई रफ्तार को फिर से पटरी पर लाने के लिए सरकार कुछ बड़े कदम उठाने की तैयारी कर रही है। खबरें हैं कि ब्रिक्स बैंक के मौजूदा चेयरमैन केवी कामथ को मोदी सरकार में शामिल किया जा सकता हैं। केवी कामथ वित्त मंत्रालय में राज्य मंत्री बनाए जा सकते हैं। और बाद उनकी भूमिका बढ़ाई भी जा सकती है। ब्रिक्स बैंक से जुड़ने से पहले कामत देश की दूसरी सबसे बड़ी आईटी कंपनी Infosys के चेयरमैन और ICICI Bank के नॉन-एक्जीक्यूटिव चेयरमैन थे। कामत ने 2011 में नारायण मूर्ति से Infosys की कमान अपने हाथों में ली थी। कामत के ऊपर अर्थव्यवस्था की सुस्ती दूर करने की जिम्मेदारी होगी।