नई दिल्ली : कांग्रेस (Congress) के पूर्व अध्यक्ष और केरल के वायनाड (Wayanad) से सांसद राहुल गाँधी का आज जन्मदिन (Rahul Gandhi Birthday) है, वो 50 साल के हो गए हैं। उत्तर प्रदेश की अमेठी (Amethi) लोकसभा सीट से बतौर उम्मीदवार खड़े होकर उन्होंने अपने राजनीतिक पारी की शुरुआत की थी। जिस युथ कांग्रेस (Youth Congress) का नेतृत्व कभी उनके पिता राजीव गाँधी किया करते थे, उन्होंने उस संगठन का नेतृत्व किया और फिर पार्टी की कमान भी संभाली। लेकिन 2019 में हुए लोकसभा चुनाव (Loksabha Election 2019) में पार्टी को मिली हार के बाद उन्होंने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दे दिया।
हालाँकि पार्टी अध्यक्ष का पद छोड़ने के बाद उन्होंने अपनी राजनीतिक सक्रियता कम नहीं की है, बल्कि विपक्ष के नेता के तौर पर वो पहले से अधिक मुखर हुए हैं और कई मुद्दों पर सरकार को घेरकर उन्होंने अपनी संजीदगी का परिचय दिया है। बावजूद इसके, राहुल गाँधी के सामने कांग्रेस संगठन को एक बार फिर मजबूत करने और पार्टी का जनाधार बढ़ाने की चुनौती है।
Rahul Gandhi Birthday : शहीदों के सम्मान में जन्मदिन न मनाने का फैसला
भारत चीन सीमा (India China Border) पर जारी तनाव के बीच भारतीय सेना के शहीद हुए 20 जवानों के सम्मान में राहुल गाँधी ने बड़ा फैसला लेते हुए इस बार अपना जन्मदिन न मनाने का फैसला लिया है। राहुल गाँधी के निर्देश पर पार्टी आलाकमान ने सभी प्रदेश, जिला एवं ब्लॉक इकाइयों को निर्देशित किया है कि 19 जून को कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता राहुल गांधी के जन्मदिन पर कहीं भी केक नहीं काटें और नारेबाजी नहीं करें। इसके अलावा पार्टी आलाकमान की तरफ से कार्यकर्ताओं को कोरोना काल में परेशानी का सामना कर रहे गरीबों तक ज्यादा से ज्यादा मदद पहुँचाने के लिए कहा गया है।
राहुल गाँधी के राजनीतिक सफर पर एक नज़र
राहुल गाँधी को राजनीति विरासत में मिली है। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू उनके परनाना है, जबकि भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी उनकी दादी और भूतपूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी उनके पिता हैं। राहुल गाँधी ने अपने राजनीतिक पारी की शुरुआत तब की, जब कांग्रेस पार्टी का स्वर्णिम काल चल रहा था। 2004 में उन्होंने अमेठी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत भी दर्ज़ की।
इसी साल कांग्रेस ने अटल सरकार को चुनाव में मात देकर केंद्र में सरकार बनाने में भी सफलता प्राप्त की। हालाँकि राहुल गाँधी सरकार में शामिल नहीं हुए। इसके बाद 2009 के लोकसभा चुनाव में भी उन्हें अमेठी लोकसभा सीट से जीत हासिल हुई और केंद्र में फिर एक बार मनमोहन सिंह की अगुवाई में कांग्रेस की सरकार बनी। कांग्रेस सरकार के दूसरे कार्यकाल में भी वो सरकार में शामिल नहीं हुए।
साल 2014 बना कांग्रेस के लिए टर्निंग पॉइंट
राहुल गाँधी और कांग्रेस पार्टी के लिए टर्निंग पॉइंट साबित हुआ साल 2014, जब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय राजनीति में एंट्री हुई और इसके बाद बीजेपी का ग्राफ बढ़ता चला गया। 2014 के लोकसभा चुनाव में राहुल गाँधी को भले ही अमेठी लोसकभा सीट से लगातार तीसरी बार जीत हासिल हुई हो, लेकिन देश भर में पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा और पार्टी सरकार से बाहर हो गई।
साल 2017 के अंत में उन्हें पार्टी की कमान सौंपी गई और इसके बाद उन्होंने पार्टी का जोर-शोर से प्रचार शुरू किया। उनके नेतृत्व में पार्टी को विधानसभा चुनाव में आंशिक सफलता जरूर हासिल हुई, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में उनका नेतृत्व पूरी तरह विफल रहा और पार्टी को एक बार फिर करारी हार का सामना करना पड़ा। खुद राहुल गाँधी को अमेठी लोकसभा सीट से हार का सामना करना पड़ा। हालाँकि केरल के वायनाड सीट से जीत दर्ज़ कर वो लोकसभा पहुँचने में कामयाब रहे। पार्टी की हार की जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने पार्टी अध्यक्ष का पद छोड़ने का ऐलान कर दिया। हालाँकि इसके बाद भी वो लगातार पार्टी के प्रचार में जुटे हैं, साथ ही विभिन्न मुद्दों पर सरकार को घेरते भी रहे हैं।
राहुल के सामने पार्टी का जनाधार बढ़ाने की चुनौती
2019 में पार्टी अध्यक्ष का पद छोड़ने के बाद राहुल गाँधी पार्टी में अपनी कोई जिम्मेदारी अभी तक तय नहीं कर पाए हैं। कहा ये भी जाता है कि उनके नेतृत्व को लेकर पार्टी ही दो गुटों में बँटी रहती है, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है कि पार्टी में उनकी स्वीकार्यता सबसे अधिक है। ऐसे में आगे चलकर अगर वो फिर से पार्टी की कमान संभालते हैं, तो उनके सामने पार्टी का जनाधार बढ़ाना सबसे बड़ी चुनौती होगी। कभी गरीब-मजदुर वर्ग के लोगों का कांग्रेस को सबसे अधिक समर्थन हासिल था, जिसके बदौलत पार्टी लंबे समय तक सत्ता में भी बनी रही, लेकिन अब वही गरीब-मजदूर पार्टी से दूर हो गए हैं।
देश के युवा वर्ग में पार्टी की छवि को पुनः स्थापित करना भी राहुल गाँधी की बड़ी चुनौतियों में से एक है। 2014 के बाद से कांग्रेस पार्टी की विचारधारा को लेकर लोगों के बीच जो संशय की स्थिति बनी है, वो जस की तस है। ऐसे में पार्टी की विचारधारा को क्लियर करना भी उनके सामने बड़ी चुनौती होगी। कुल मिलाकर राहुल गाँधी के सामने चुनौतियों का अंबार है, लेकिन उनके हौसले को देखते हुए लगता है कि वो इन चुनौतियों पर पार लेंगे। राहुल गाँधी को जन्मदिन की शुभकामनाएं।