भारत सरकार ने रेलवे के निजीकरण की तरफ एक बड़ा कदम बढ़ा दिया है। सरकार ने निजी कंपनियों को 109 रूट पर पैसेंजर ट्रेनें चलाने के लिए आमंत्रित किया है। ऐसा पहली बार होगा जब भारतीय रेल नेटवर्क में पैसेंजर ट्रेन चलाने के लिए निजी कंपनियों को जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। यहाँ ये बात गौर करने लायक है कि भारतीय रेल नेटवर्क दुनिया के सबसे बड़े रेल नेटवर्क में से एक है जो रोजाना 13 हज़ार से ज्यादा पैसेंजर ट्रेन का परिचालन करता है, जिसमें प्रतिदिन 2 करोड़ से ज्यादा यात्री सफर करते हैं।
अभी तक भारतीय रेल नेटवर्क पर पूरी तरह सरकार का नियंत्रण है और इसके नीति निर्धारण के लिए अलग से मंत्रालय भी है। कुछ साल पहले तक रेलवे के लिए अलग से बजट का ऐलान भी होता था, जो आम बजट से अलग पेश किया जाता था। हालांकि नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में इसका विलय आम बजट में ही कर दिया गया।
भारतीय रेल रेवेन्यू जेनरेट करने में भी अहम भूमिका निभाती है। आरटीआई के जरिए मिली जानकारी के मुताबिक एक क्वार्टर यानि तीन महीने में सिर्फ पैसेंजर ट्रेन से रेलवे 13 हज़ार करोड़ से ज्यादा की कमाई करती है। यानि सिर्फ पैसेंजर ट्रेन के परिचालन से सालाना लगभग 52 से 54 हज़ार करोड़ तक का रेवेन्यू जेनरेट होता है।
सरकार ने बेहतर सुविधाओं का हवाला देते हुए रेलवे में निजीकरण ज़रूरी बताया है। इसी के तहत पहले चरण में लगभग 109 रूट पर 150 ट्रेनों के परिचालन की जिम्मेदारी निजी हाथों में दिए जाने की तैयारी है। आवेदन मंगवा लिए गए हैं और सरकार को उम्मीद है कि इसमें 30 हज़ार करोड़ रुपए का इनवेस्टमेंट आएगा।
ट्रेन की खरीद, उसके रखरखाव और संचालन की जिम्मेदारी निजी कंपनी को होगी। हालांकि ड्राइवर और गार्ड भारतीय रेलवे के होंगे। रेल की पटरी, इलेक्ट्रिसिटी यानि इंफ्रास्ट्रक्चर भी भारतीय रेलवे का होगा यानि सरकार को होगा। इसके साथ ये भी जानना जरूरी है कि किराया तय का अधिकार निवेश करने वाली निजी कंपनी को होगा।
रेलवे में ये अपनी तरह का पहला प्रयोग है लेकिन एयर ट्रैवल में भारत ये प्रयोग कर चुका है। भारत का सिविल एविएशन दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा एविएशन मार्केट बन चुका है। इसके भी नीति निर्धारण के लिए अलग से मंत्रालय है। भारत में पहले दो कंपनियां होती थी एक इंडियन एयरलाइंस और दूसरी एयर इंडिया इंटरनेशनल। इंडियन एयरलाइंस डोमेस्टिक रूट्स पर अपनी सेवाएं देती थीं जबकि अंतर्राष्ट्रीय रूट्स की जिम्मेदारी एयर इंडिया इंटरनेशनल के हवाले थी।
ये दोनों हीं कंपनियां भारत सरकार के अधीन थीं। हालांकि 1991 में सिविल एविएशन में प्राइवेट कंपनियों को एंट्री मिल गई, जिसके बाद एक दर्जन से ज्यादा कंपनियों ने इस क्षेत्र में निवेश कर दिया। धीरे-धीरे कई कंपनियां बंद हो गईं, जबकि कुछ कंपनियों का आपस में विलय हो गया। मौजूदा वक्त में इंडिगो, जेट एयरवेज, स्पाइस जेट, गो एयर जैसी निजी कंपनियों का भारत का एविएशन इंडस्ट्री में बड़ा मार्केट शेयर है। भारत की सरकारी एयरलाइंस एयर इंडिया लगातार घाटे में है।
हालांकि पूरे देश में सिविल एविएशन का मैंनेजमेंट एयरपोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया के जिम्मे है और ये अथॉरिटी भारत सरकार के नागरिक उड्डयन मंत्रालय के अधीन काम करती है। इस तरीके से सिविल एविएशन के पूरे इंफ्रास्ट्रक्चर, इसके रखरखाव की जिम्मेदारी सरकार के हवाले है। इसके बावजूद नेशनल कैरियर एयर इंडिया को बचाने और इसे मुनाफे में ले जाने में सरकार नाकाम रही है। प्रबंधन में खामी के साथ-साथ मुनाफे और पैसेंजर लोड वाले रूट्स निजी विमान कंपनियो को दिए जाने की वजह से एयर इंडिया बिकने के कगार पर खड़ी है और सरकार खरीददार भी नहीं जुटा पा रही।
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सरकार भारतीय रेलवे को भी धीरे धीरे इसी रास्ते पर ले जाना चाहती है, जहाँ इंफ्रास्ट्रक्चर सरकार का होगा और सुविधा देने के नाम पर किराया निजी कंपनियां तय करेंगीं। आखिर क्यों देश की आर्थिक रीढ़ माने जाने वाले रेल नेटवर्क को निजी हाथों में सौंपा जा रहा है। ऐसे में सवाल सरकार की मंशा पर खड़े होते हैं।