Ratan Tata Birthday Special: जनतंत्र टीवी: देश के सबसे पुराने औद्योगिक घराने टाटा समूह को ग्लोबल कंपनी बनाने वाले देश के दिग्गज उद्योगपति रतन नवल टाटा का आज 84वां जन्मदिन है। रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर 1937 को सूरत में हुआ था। रतन टाटा, टाटा संस के चेयरमैन पद से रिटॉयर हो चुके हैं लेकिन वे समूह के अवकाश प्राप्त चेयरमैन हैं। आज रतन टाटा का नाम दिग्गज उद्योगपतियों में शुमार है लेकिन उनके व्यक्तित्व का सबसे बड़ा आकर्षण उनकी सादगी है। इतने भव्य कारोबारी साम्राज्य को दशकों संभालने के बावजूद भी उनकी सादगी उनके छवि का श्रृंगार बनी हुई है।
रेस्तरां में भी धोए थे जूठे बर्तन
रतन टाटा के जमीन से जुड़े रहने का कारण उनकी आम लोगों की तरह हुई परवरिश है। भले ही वे पैदा एक रईस परिवार में हुए, लेकिन पढ़ाई से लेकर करियर का सफर उन्होंने आम लोगों की तरह संघर्षों और मेहनत के बलबूते पर तय किया। हालांकि इतने बड़े औद्योगिक घराने से जुड़े होने के बावजूद आप यह जानकर हैरान रह जाएंगे कि पढ़ाई के समय उन्हें रेस्तरां में जूठे बर्तन भी धोए और उनकी शुरुआती नौकरियों में फावड़े चलाने का काम भी किया।
रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर, 1937 को भारत के सूरत शहर में हुआ था। रतन टाटा नवल टाटा के बेटे हैं जिन्हें नवजबाई टाटा ने अपने पति रतनजी टाटा के मृत्यु के बाद गोद लिया था। जब रतन दस साल के थे और उनके छोटे भाई, जिमी, सात साल में उनके माता-पिता अलग हो गए थे। जिसके बाद दोनों भाइयों का पालन-पोषण उनकी दादी नवजबाई टाटा द्वारा किया गया। रतन टाटा का एक सौतेला भाई भी है जिसका नाम नोएल टाटा है।
जानिए रतन टाटा की शिक्षा और कर्रिएर की शुरुआत
रतन की प्रारंभिक शिक्षा मुंबई के कैंपियन स्कूल से हुई और माध्यमिक शिक्षा कैथेड्रल एंड जॉन कॉनन स्कूल से। इसके बाद उन्होंने अपना बी एस वास्तुकला में स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग के साथ कॉर्नेल विश्वविद्यालय से 1962 में पूरा किया। जिसके बाद उन्होंने हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से सन 1975 में एडवांस्ड मैनेजमेंट प्रोग्राम पूरा किया। रतन टाटा ने अपनी पढ़ाई पूरी होने के बाद कुछ समय तक लॉस एंजिल्स, कैलिफोर्निया, में जोन्स और एमोंस में काम किया और फिर IMB में भी जॉब की। साल 1961 में वे अपने परिवारिक टाटा ग्रुप का हिस्सा बने और इस ग्रुप के साथ अपने करियर की शुरुआत की।
रतन टाटा का औद्योगिक सफर
देश के इस सबसे बड़े ग्रुप से जुड़ने के बाद उन्होंने अपने शुरुआती दिनों में टाटा स्टील के शॉप फ्लोर पर काम किया, इसके साथ ही टाटा स्टील को बढ़ाने के लिए इस दौरान उन्हें जमशेदपुर भी जाना पड़ा था। बाद में उन्हें टाटा ग्रुप की कई अन्य कंपनियों के साथ जुड़ने का अवसर प्रदान हुआ। रतन टाटा को ज़िंदगी के एक पड़ाव पर काफी नुकसान और असफलताएं भी झेलनी पड़ी, ऐसे वक़्त में टाटा ग्रुप के मेंबर्स ने रतन को सुझाव दिया की वह उसे बेच दे ! रतन टाटा को ना चाहते हुए भी उनकी बातों को मानना पड़ा और निर्णय लिया कि टाटा मोटर्स को बेचना ही पड़ेगा।
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अपनी सफलता से लिया था अपने अपमान का बदला
ऐसे में रतन टाटा ने कंपनी को बेचने के लिए अपनी टीम के साथ अमेरिका के फोर्ड मोटर्स के पास चले गए और वहां मीटिंग में रतन टाटा का फोर्ड के मालिक बिल फोर्ड ने मजाक उड़ाते हुए कहा, जब आपको कंपनी चलानी नहीं आती है और जब आपको पैसेंजर गाड़ियों के बारे में पता नहीं था तो आपने ये कंपनी बनाई ही क्यों, और ये कंपनी खरीद कर हम आप पर एहसान ही कर रहे हैं, ऐसी बातें सुनकर रतन जी ने अपमानित महसूस किया और वो अपनी टीम के साथ प्लेन से वापस लौट आए, और उन्होंने ठान लिया कि मैं इनके मजाक का जवाब सफलता से दूंगा।
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टाटा मोटर्स को बड़ा करने के लिए मेहनत करना शुरू कर दिया, और उनकी कड़ी मेहनत एक दिन रंग लाई, उनकी टाटा मोटर्स घाटे से फायदे में आ गई और उनकी मेहनत से बनाई हुई कार मार्केट में खूब पसंद की गई। फिर 2008 तक टाटा मोटर्स ने अपनी Brand Value काफी बढ़ा ली थी, ये कंपनी बढ़ती जा रही थी, और फोर्ड कंपनी घाटे में जा रही थी, ऐसे में वह लैंड रोवर और जैगुआर कंपनी के पास फोर्ड कंपनी को बेचने चले आए, पर यह दोनों कंपनी भी कुछ खास चल नहीं रही थी। जिसके बाद रतन टाटा ने इन दोनों कंपनियों को 9300 करोड़ में खरीद लिया था, जिसके बाद बिल फोर्ड के पास कोई ऑप्शन नहीं बचा था, वह कंपनी को बेचे तो बेचे किसको, तो वह रतन टाटा के पास चले आए। और इस बार भी कंपनी की मीटिंग हुई और उस मीटिंग में फोर्ड के मालिक बिल फोर्ड ने रतन टाटा से कहा कि यह कंपनी खरीद कर आप हम पर एहसान कर रहे हैं। तब कहीं जाकर रतन जी को चैन मिला और उन्होंने कहा कि अगर तुम उस दिन मुझसे यह एहसान वाली बात नहीं करते तो मैं यहां तक नहीं पहुंच पाता, और आज यह तीनों कंपनी टाटा ग्रुप्स से के पास नहीं होती। इस सफलता को पाने के लिए उन्हें करीब 10 साल का समय लगा था तब जाकर वह इस सम्मान को हासिल कर पाए