नई दिल्ली : आज भारत के उस ओजस्वी युवा संत का जन्मदिन है जिसने समूची दुनिया को पहली दफा सनातन धर्म से रूबरू करवाया। इस महान संत का नाम स्वामी विवेकानंद है। दरअसल स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था। ये स्वामी विवेकानंद का 156वां जन्मदिवस है।
अगर स्वामी के जीवन की बात की जाये तो पता चलता है कि विवेकानंद भी पहले भारतीय संत परंपरा का मजाक बनाते थे। विवेकानंद एक बहुत मेधावी छात्र थे । जब उन्होंने पहली बार रामकृष्ण से मुलाकात की तब उन्होंने सोचा ये भोला भाला साधु है। क्योंकि वो देवी से ऐसे ही बात करते थे जैसे हम किसी दूसरे आदमी से बात करते हैं। एक अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली का छात्र होने के नाते विवेकानंद का ऐसा सोचना स्वाभाविक ही था। पर दूसरी बार जब वो उनसे मिलने गये तो चारपाई में अपने पास बिठाये विवेकानंद को रामकृष्ण ने अचानक कॉलर पकड़कर चारपाई से नीचे झटकते हुए छाती पर जोरों की लात मारी । और इस घटना में विवेकानंद को एक अनूठा अनुभव हुआ था । शरीर पूरा कांप रहा था पसीना छूट गया था और वो गिडगिडाते हुए रामकृष्ण के सामने हाथ जोड़कर कह कहे थे कि मुझ पर दया करों मेरे भाई बहन और मेरा परिवार है । और इतना कहते ही रामकृष्ण ने उनके सिर में हांथ फेरते हुए उनका सिर अपने कंधे पर टिका लिया । इस घटना के बाद ही नरेंद्र दत्त फिर हमेशा के लिए स्वामी विकेकानंद होने की राह पर निकल पड़े थे।
आधुनिक भारत में कुछ थोड़े से महान संतों में से इस एक भारत माता के सपूत ने पूरी दुनिया में उस समय सनातन धर्म का परचम लहरा दिया जब दुनिया हिंदुत्व से अनजान थी। इसी महान संत ने अपने 1993 में शिकागो के धर्म सम्मेलन भारत से दुनिया का परिचय कराते हुए कहा था । “मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया। हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते, बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं”
इस भारत के सपूत ने अपने शब्दों की शुरूवात “अमेरिका के भाइयों और बहनों से की थी” इसके बाद पूरा धर्म सभा का हॉल तालियों की गड़गडाहट से गूंज उठा था । फिर तालियों के बाद उनका धन्यवाद कुछ इस तरह से किया । ”अमेरिका के बहनों और भाइयों, आपके इस स्नेहपूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया है, और मैं आपको दुनिया की प्राचीनतम संत परम्परा की तरफ से धन्यवाद देता हूं। मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं और सभी जातियों, संप्रदायों के लाखों, करोड़ों हिन्दुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं।
दुनिया में बढ़ रही संप्रदायिकता और धर्मों पंथों के बीच हो रहे युद्धों काट मार की समस्या पर बोलते हुए कहा “रुचिनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम, नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव” इस श्लोक के बारे में आगे अर्थ बताते हुए कहा जिस तरह अलग-अलग स्रोतों से निकली विभिन्न नदियां अंत में समुद्र में जाकर मिल जाती हैं, उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा के अनुरूप अलग-अलग मार्ग चुनता है, जो देखने में भले ही सीधे या टेढ़े-मेढ़े लगें, परंतु सभी भगवान तक ही जाते हैं। उन्होंने कहा कि इस श्लोक को मैंने बचपन में स्मरण किया है इसे भारत के करोड़ों लोग हर दिन दोहराते हैं।