Karwa Chauth: करवा चौथ व्रत को लेकर यूँ तो कई कथाएँ प्रचलित हैं, जिनमें से एक माता पार्वती और भगवान शिव से जुड़ी है।
जनतंत्र डेस्क: Karwa Chauth: कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को महिलाएँ अपने पति के मंगल, दीर्घायु एवं अखंड सुहाग की प्राप्ति के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। करवा चौथ का व्रत पति-पत्नी के अखंड प्रेम और त्याग की चेतना का प्रतीक है। कहा जाता है कि इस व्रत को देवताओं के लिए उनकी पत्नियों ने भी रखा था। इस व्रत का प्रसंग महाभारत काल में भी मिलता है।
Karwa Chauth: माँ पार्वती ने भगवान शिव के लिए रखा था ये व्रत
करवा चौथ व्रत को लेकर यूँ तो कई कथाएँ प्रचलित हैं, जिनमें से एक माता पार्वती और भगवान शिव से जुड़ी है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, सबसे पहले करवा चौथ का व्रत शक्ति स्वरूपा माँ पार्वती ने भगवान शिव के लिए रखा था। इसी व्रत से उन्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति हुई थी। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा कर सुहागिन स्त्रियाँ पति की लंबी आयु की कामना करती हैं।
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Karwa Chauth: ब्रह्मदेव ने देवताओं की पत्नियों से व्रत रखने को कहा
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार देवताओं और राक्षसों के बीच ज़ोरदार युद्ध छिड़ा था। तमाम कोशिशों के बाद भी देवताओं को सफलता हासिल नहीं हो रही थी। देवताओं पर दैत्य हावी हो रहे थे। तभी ब्रह्मदेव ने देवताओं की पत्नियों को करवा चौथ व्रत रखने के लिए कहा था। उन्होंने बताया कि इस व्रत को रखने से दैत्य देवताओं से परास्त हो जाएँगे। इसके बाद देवताओं की पत्नियों ने युद्ध में सफलता और लंबी आयु की कामना के लिए करवा चौथ का व्रत किया था। कहते हैं कि तभी से कार्तिक मास की चतुर्थी तिथि से इस व्रत को रखने की परंपरा शुरू हुई।
Karwa Chauth: महाभारत काल से भी जुड़ी है एक कथा
करवा चौथ व्रत से जुड़ी एक कथा महाभारत काल की भी मिलती है। कथा के अनुसार, एक बार अर्जुन नीलगिरी पर्वत पर तपस्या करने गए थे। उसी दौरान पांडवों पर कई तरह के संकट आ गए। तब द्रौपदी ने श्रीकृष्ण से पांडवों के संकट से बचने का उपाय पूछा। इस पर भगवान कृष्ण ने उन्हें कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन करवा चौथ का व्रत रखने के लिए कहा था। कहते हैं कि द्रौपदी ने यह व्रत किया और इसी से उन्हें संकट से मुक्ति मिल गई।