जनतंत्र डेस्क, नई दिल्ली: दया के देव, देवों के देव महादेव को समर्पित पर्व महाशिवरात्रि का खास महत्व है। इस बार ये पर्व 1 मार्च को देशभर में मनाया जाएगा। पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी दिन माता पार्वती और भगवान शिव का विवाह हुआ था। कहा जाता है इस दिन भगवान शंकर ने माता पार्वती के कठोर तप के बाद उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया था।
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1 मार्च 2022 को महाशिवरात्रि पर्व है। यह पूरा महीना भगवान शिव को बहुत प्रिय है। शिवरात्रि का त्यौहार भगवान शिव का आभार प्रकट करने का दिन भी है। काल के काल और देवों के देव महादेव भक्तों का मंगल करते हैं। आइए जानते है महाशिवरात्रि के दिन कैसे शिव पूजा करें और उन पर जल चढ़ाने के क्या नियम हैं।
इस दिन सुबह साफ कपड़े पहन कर व्रत रखकर मंदिर में या घर पर ही शिव पार्वती की पूजा करें। फूल और सुन्दर वस्त्रों से मंडप तैयार करके सर्वतोभद्र वेदी बनाकर उस पर जल भरकर कलश स्थापित करें। इस दिन भगवान शिव को बेलपत्र, बेर, चरणामृत आर्पित किए जाते हैं।
वेदों का वचन है कि रात के चार प्रहर बताये गये हैं। महाशिवरात्रि के अवसर पर भगवान शिव की पूजा फलदायी होती है। इस पूजा से सभी कामनाएं पूरी होती हैं। महाशिवरात्रि के पहले प्रहर की पूजा- 1 मार्च, 2022 शाम 6:21 मिनट से रात्रि 9:27 मिनट तक है। जबकि इसी दिन दूसरे प्रहर की पूजा- 1 मार्च रात्रि 9:27 मिनट से 12: 33 मिनट तक होगी। इसके बाद तीसरे प्रहर की पूजा- 1 मार्च रात्रि 12:33 मिनट से सुबह 3 :39 मिनट तक है। वहीं चौथे प्रहर की पूजा- 2 मार्च सुबह 3:39 मिनट से 6:45 मिनट तक है। इसके बाद पारण का समय- 2 मार्च, बुधवार 6:45 मिनट के बाद से है।
जलाभिषेक के नियम
हमेशा जलाभिषेक शिवलिंग का ही किया जाता है। दूसरे देवी देवता का जलाभिषेक नहीं करना चाहिए। जलाभिषेक के समय जल में तुलसी पत्ता ना डालें, क्योंकि शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव पर तुलसी अर्पित करना निषेध माना गया है। जलाभिषेक करने के बाद कभी भी शिवलिंग की पूरी परिक्रमा ना करें। क्योंकि जो जल शिवलिंग पर चढ़ाया जाता है उसके बाहर निकले की व्यवस्था को गंगा माना जाता है। मान्यता के अनुसार माता गंगा को कभी भी लांघा नहीं जाता।
इसके साथ ही मंदिर में कभी भी पूजा-अर्चना या जलाभिषेक करते समय शिवलिंग को स्पर्श नहीं करना चाहिए। मान्यता है कि भगवान शिव का जलाभिषेक या रुद्राभिषेक सही मंत्रोच्चार के साथ करने से ही लाभ होता है।