दागी छवि के नेताओं को चुनाव लड़ने से रोकने के बारे में सुप्रीम कोर्ट का फैसला एक बहुत ही साहसिक और एतिहासिक कदम है। पिछले लगभग 30 साल से चल रही इस बहस पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से विराम लग गया है। अदालत के इस फैसले के बाद अब असली जिम्मेदारी निर्वाचन आयोग सहित उन सभी राजनीतिक दलों की है जो राजनीति में बढ़ते अपराधिकरण को रोकने के लिए दावे करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
शीर्ष अदालत ने आदेश दिया है कि राजनीतिक दलों को वेबसाइट पर आपराधिक छवि वाले उम्मीदवारों के चयन की वजह बतानी होगी साथ ही उनके खिलाफ लंबित मामलों की जानकारी भी अपलोड करनी होगी। राजनीतिक दलों को प्रत्याशियों के चयन के बाद 72 घंटे में उनके खिलाफ दायर मामलों की जानकारी चुनाव आयोग को देनी होगी। आदेश का पालन न होने पर चुनाव आयोग अपने अधिकार के मुताबिक राजनीतिक दलों के खिलाफ कार्रवाई कर सकता है। साथ ही दलों को प्रत्याशियों के आपराधिक मामलों की जानकारी क्षेत्रीय, राष्ट्रीय अखबारों में प्रकाशित करवाने के साथ सोशल मीडिया पर भी साझा करनी होगी।
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश पंडित अटल बिहारी वाजपेयी के द्वारा शुरू की गई उस मुहिम को भी मूर्ति रूप देता है जिसके तहत अटल जी ने संसद के अंदर और बाहर राजनीति के बढ़के अपराधिकरण को बहुत मजबूती और प्रभारी ढंग से उठाया था। प्रधानमंत्री के रूप में अटल जी ने ही पूर्व केन्द्रीय ग्रह सचिव एन एन वोहरा के अध्यक्षता में डाक कमिटी का गठन भी किया था और कमिटी से इस बुराई से निपटने के लिए सुझाव भी मांगे थे।
वोहरा कमिटी की रिपोर्ट सरकार को मिल भी गई थी, लेकिन कमजोर इच्छाशक्ति और सत्ता तक पहुंचने की लालसा ने अटल जी के बाद की सरकारों को उन सिफारिशों को लागू करने से रोक दिया।
क्या कहती है वोहरा कमिटी की रिपोर्ट ?
5 दिसंबर 1993 को तत्कालीन केंद्रीय गृह सचिव एनएन वोहरा ने अपनी सनसनीखेज रिपोर्ट गृहमंत्री को सौंपी थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि इस देश में अपराधी गिरोहों, हथियारबंद सेनाओं, नशीली दवाओं का व्यापार करने वाले माफिया गिरोहों, तस्कर गिरोहों, आर्थिक क्षेत्रों में सक्रिय लॉबियों का तेजी से प्रसार हुआ है। इन लोगों ने विगत कुछ वर्षों के दौरान स्थानीय स्तर पर नौकरशाहों, सरकारी पदों पर आसीन लोगों, राज नेताओं, मीडिया से जुड़े व्यक्तियों तथा गैर-सरकारी क्षेत्रों के महत्वपूर्ण पदों पर आसीन व्यक्तियों के साथ व्यापक संपर्क विकसित किए हैं। इनमें से कुछ सिंडिकेटों की विदेशी आसूचना एजेंसियों के साथ- साथ अन्य अंतरराष्ट्रीय संबंध भी हैं।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है था कि इस देश के कुछ बड़े प्रदेशों में इन गिरोहों को स्थानीय स्तर पर राजनीतिक दलों के नेताओं और सरकारी पदों पर आसीन व्यक्तियों का संरक्षण हासिल है। रिपोर्ट में ये भी कहा गया था कि तस्करों के बड़े-बड़े सिंडिकेट देश के भीतर छा गए हैं और उन्होंने हवाला लेन-देनों, कालेधन के प्रसार सहित विभिन्न आर्थिक कार्यकलापों को प्रदूषित कर दिया है। उनके द्वारा भ्रष्ट समानांतर अर्थव्यवस्था चलाए जाने के कारण देश की आर्थिक संरचना को गंभीर क्षति पहुंची है।
तब से लेकर अब तक लगभग सभी राजनीतिक दल राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण पर चिंता जताते रहे हैं। लेकिन जब अपने ही दल में प्रत्याशियों के चयन की बारी आती है तो जिताऊ उम्मीदवारों के फॉर्मूले के तहत दबंग और दागी छवि के लोगों को टिकट दे देते हैं।
क्या कहती है ADR की रिपोर्ट ?
लोकसभा दागी सांसद गंभीर मामले
2019 43% 29%
2014 34% 21%
2009 30% 14%
2004 24% 12%
सुप्रीम कोर्ट इसके पहले 2018 में भी दागी छवि के व्यवक्ति की चुनावी प्रक्रिया में हिस्सा लेने से रोकने के लिए कई सुझाव दिए थे, बावजूद इसके किसी भी राजनीतिक दल की तरफ से इस पर कोई पहल नहीं की गई। अदालत में 2018 के फैसले को लागू ना करने को लेकर अवमानना याचिका भी दाखिल की गई थी। लेकिन उसका असर राजनीतिक दलों पर नहीं पड़ा।
13 फरवरी 2020 के आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने भारत के निर्वाचन आयोग को इस आदेश को लागू करने के लिए निर्देशित किया है।
आदेश से साफ है कि निर्वाचन आयोग के इन आदेशों को न मानने वाले राजनीतिक दलों को सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना माना जाएगा। अब देखना है कि मौजूदा सरकार और राजनीतिक दल कितनी ईमानदारी और पारदर्शिता से सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश का अनुपालन करते हैं। पूर्व के फैसलों पर नजर डालें तो राजनीतिक दलों की कथनी और करनी में अंतर साफ दिखाई देता रहा है।
उम्मीद है इस बार सभी दल इस विषय पर दलीय रजानीति से ऊपर उठकर स्वस्थ्य लोकतंत्र के लिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आत्मसात करेंगे, जिससे राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण के अभाव को राका जा सके।
- वासिंद्र मिश्र