धरना पॉलिटिक्स से दूर ‘धरना कुमार’…सब ‘चुनावी’ माया है !
पूरे देश में CAA पर आर-पार की लड़ाई जारी है। न सरकार पीछे हटने को तैयार है और न ही विरोधी हथियार डालने को राजी। हालत ये है कि दिल्ली से लेकर केरल तक, हर जगह नागरिकता संशोधन क़ानून के खिलाफ़ और समर्थन में प्रदर्शनों का दौर जारी है, लेकिन विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी देश की राजधानी दिल्ली के मुखिया अरविंद केजरीवाल इन प्रदर्शनों में अभी तक नहीं दिखाई दिए। चुनावी मौसम में इतने अहम मुद्दे पर उनकी गैर-मौजूदगी को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता, क्योंकि जऱा पुरानी तारीखों को याद कीजिए। चुनावी राजनीति में कदम रखने के पहले से लेकर आज तक केजरीवाल की इमेज ‘धरना कुमार’ की रही है।
एक वक्त था जब छोटे छोटे मुद्दों पर भी केजरीवाल धरने पर बैठ जाते थे, लेकिन एक महीने से ज्यादा वक्त बीत चुका है, जब CAA के खिलाफ सबसे बहुचर्चित प्रदर्शन दिल्ली में ही शाहीन बाग में चल रहा है और आम आदमी पार्टी CAA पर खुल कर विरोध भी जाहिर कर चुकी है, लेकिन केजरीवाल वहां अब तक नहीं गए। सिर्फ यही नहीं जिस जेएनयू और जामिया में संग्राम को हर दल ने भुनाने की कोशिश की, केजरीवाल वहां भी चुप्पी साधे बैठे रहे। हां, जेएनयू हिंसा को लेकर उन्होंने एक ट्वीट ज़रूर किया था। ऐसे में सवाल उठता है कि देश के हर मुद्दे पर मुखर राय रखने वाले अरविंद केजरीवाल का CAA के विरोध प्रदर्शनों से गायब रहना कहीं उनकी चुनावी रणनीति का हिस्सा तो नहीं। क्योंकि CAA के मुद्दे पर कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष खासा हमलावर है, लिहाजा केजरीवाल भी समझ रहे हैं कि उन्हें ज्यादा फायदा तो नहीं मिल पाएगा, उल्टे मुस्लिम वोट बैंक की नाराजगी जरूर उठानी पड़ सकती है। जानकार भी इससे इत्तेफाक रखते हैं कि ये आम आदमी पार्टी की सोची समझी नीति का हिस्सा है।
फिर केजरीवाल तो हिट एंड रन पॉलिसी के पुराने माहिर माने जाते हैं, वो ऐसे ही मसलों और फैसलों में दिलचस्पी लेते हैं जिसका तत्कालिक फायदा मिल सकता है। उदाहरण के तौर पर उनकी Freebies पॉलिटिक्स को समझा जा सकता है कि कैसे वो सरकारी खजाने को मुफ्त योजनाओं पर लुटाने में लगे हैं, ताकि वोट मिल सकें। बात वोटबैंक की निकली है तो यहां पर केजरीवाल की चुप्पी के वोट बैंक कनेक्शन का जिक्र भी जरूरी हो जाता है। साल 2015 में आम आदमी पार्टी को 70 में से 67 सींटों पर जीत मिली थी, क्योंकि उनको हर तबक़े का वोट मिला था। इस बार भी वो इतिहास दोहराना चाहते हैं, ऐसे में किसी भी एक तबक़े की नाराज़गी उनको भारी पड़ सकती है और केजरीवाल इसी से बचना चाहते हैं।
दरअसल दिल्ली के शाहीन बाग़ में जारी प्रदर्शन को एक बड़ा तबक़ा मुस्लिमों के प्रदर्शन के तौर पर भी देखता है और मुस्लिम समुदाय केजरीवाल की पार्टी का एक बड़ा वोट बैंक रहा है, लेकिन केजरीवाल को ये डर भी है कि अगर खुलकर उनके सपोर्ट में गए तो वोटों का ध्रुवीकरण हो सकता है, जिससे उन्हें दूसरे बड़े वोट बैंक हिंदू वोट बैंक की नाराजगी उठानी पड़ सकती है और केजरीवाल चुनाव के इतने क़रीब ये जोख़िम मोल नहीं लेना चाहते। क्योंकि दिल्ली पर कब्जे के लिए उन्हें दोनों का वोट चाहिए। आपको बता दें कि दिल्ली विधानसभा के लिए 8 फ़रवरी को मतदान होना हैं। अरविंद केजरीवाल नई दिल्ली सीट से एक बार फिर क़िस्मत आज़मा रहे हैं।
अब बात आंकड़ों की करें तो दिल्ली में मुस्लिम वोटर्स की संख्या करीब 12-13 फ़ीसदी है। पिछले चुनाव में आम आदमी पार्टी को 76 फ़ीसदी के करीब वोट मिले थे। वहीं दिल्ली के करीब 50 फ़ीसदी हिंदू मतदाताओं ने 2015 में आम आदमी पार्टी को वोट दिया था। लिहाजा ये सारा खेल टाइमिंग का है। हो सकता है चुनाव खत्म होने के बाद केजरीवाल एक बार फिर अपने पुराने रंग में दिख जाएं। खैर, यहां भी उनकी रणनीति काम कर रही है। भले ही केजरीवाल शाहीन बाग से दूर हैं लेकिन उन्होने अपने विधायक अमानतुल्ला को वहां खासा सक्रिय कर रखा है।
केजरीवाल की मुश्किल ये भी है कि दिल्ली में उनका सीधा मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस से है। ऐसे में अगर वो CAA का समर्थन करते हैं तो बीजेपी के साथ दिखेंगे और मुस्लिम वोट गवांएगे और अगर सीएए के विरोध में खुल कर धरने में शामिल होते है तो देश में चल रहे नैरेटिव के मुताबिक CAA के विरोधी एंटी नेशनल माने जा रहे है। ऐसा करने से हिंदू नाराज़ होंगे। दोनों ही सूरतों में केजरीवाल के लिए आगे कुआं पीछे खाई जैसे हालात हैं।
ये वही केजरीवाल हैं जिन्होने पिछले चुनाव से पहले मुस्लिम समुदाय खासकर बरेलवी धारा को मानने वाले मुस्लिमों को साधने के इरादे से मौलाना तौकीर रज़ा का समर्थन लेने से भी गुरेज नहीं किया था। साल 2013 में वो खुद बरेली जाकर के इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल के अध्यक्ष तौकीर रजा से मिल कर भी आए, जिसपर खासा विवाद भी हुआ लेकिन वोटबैंक की खातिर केजरीवाल पीछे नहीं हटे और तौकीर रज़ा ने केजरीवाल का साथ भी दिया था। लेकिन इस बार केजरीवाल ने ऐसी किसी भी कवायद से किनारा कर लिया है, क्योंकि CAA के विरोध में बरेलवी और देवबंदी दोनों ही पंथी सुर में सुर मिला रहे हैं, लिहाजा केजरीवाल ने ऐसे मसले पर चुप्पी साधने में ही भलाई समझी है। जबकि ये वही केजरीवाल हैं जो ट्विटर पर अपने बायो में सर्वधर्म समभाव की बात करते हैं। “सब इंसान बराबर हैं, चाहे वो किसी धर्म या जाति के हों. हमें ऐसा भारत बनाना है जहाँ सभी धर्म और जाति के लोगों में भाईचारा और मोहब्बत हो, न कि नफ़रत और बैर हो”
अब जबकि दिल्ली में मौसम चुनावी है,केजरीवाल फूंक फूंक कर कदम बढ़ा रहे हैं और आंदोलन की सियासत से बचने की कोशिश में लगे हैं। शायद वो भूल गए हैं कि आज वो जो कुछ भी हैं उसके पीछे भी एक आंदोलन की ताकत रही है। कहा तो जाता है कि इस आंदोलन के पीछे बीजेपी और संघ की भूमिका थी लेकिन इस पूरा सियासी फायदा केजरीवाल ले उड़े। खैर, केजरीवाल को इन दिनों आंदोलन खासकर धरनों से परहेज है क्योंकि ये जो सत्ता की चाहत है,वो जो न कराए वो कम है।
-वासिन्द्र मिश्र