नई दिल्ली: Rakesh Asthana Appointment Case: बीते दिनों से दिल्ली में राकेश अस्थाना की नियुक्ति को लेकर बवाल मचा है। जिसके चलते उनकी मुश्किलें बड़ती जा रही है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि गुजरात कैडर के आईपीएस अधिकारी राकेश अस्थाना की दिल्ली पुलिस आयुक्त के रूप में नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर पहले उच्च न्यायालय में सुनवाई होनी चाहिए, जहां इसी तरह की याचिका दायर की गई है। जिसमें दिल्ली उच्च न्यायालय से दो सप्ताह में मामले पर फैसला करने को कहा।

बता दें, भारत के मुख्य जज एनवी रमना, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्य कांत की पीठ सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी और इसे उच्च न्यायालय की याचिका में हस्तक्षेप करने की अनुमति दी है । बेंच ने अपने आदेश में लाइव लॉ के अनुसार कहा कि “हम दिल्ली उच्च न्यायालय से अनुरोध करते हैं कि इस मामले पर 2 सप्ताह में जल्द से जल्द विचार करें ताकि हमें उच्च न्यायालय के फैसले का लाभ मिल सके। आवेदक हस्तक्षेप दायर करने के लिए स्वतंत्र है”
यह भी पढ़े :-Delhi Updates: दिल्ली निवासियों को प्रदूषण से मिलेगी बड़ी राहत, CM केजरीवाल ने किया स्मॉग टॉवर का उद्घाटन।
उच्च न्यायालय ने मंगलवार को सदर आलम की ओर से अस्थाना की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई टालते हुए बताया कि इसी तरह की याचिका उच्चतम न्यायालय में दायर की गई है. अदालत ने सीपीआईएल का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील प्रशांत भूषण को याचिका की एक प्रति केंद्र के वकील को देने के लिए कहा था और आलम की याचिका को 24 सितंबर को सुनवाई के लिए लिस्टिड की थी।

दरअसल, अधिवक्ता भूषण ने बुधवार को उच्च न्यायालय के समक्ष याचिका को “घात याचिका” कहा, जो “वास्तविक याचिका कर्ताओं को आगे आने से रोकने के लिए बरख़ास्तगी पाने के लिए सरकार के साथ मिली-भगत से दायर की गई है।”ताकि गंभीर मुद्दे को बेअसर किया जा सके”।
यह भी पढ़े :-CM Yogi Adityanath: अयोध्या की तरफ पहले लोग झांकते नहीं थे, आज सबकी टोपियां उतर गई हैं
इसके बाद, जस्टिस चंद्रचूड़ ने COIL को उच्च न्यायालय में हस्तक्षेप करने की स्वतंत्रता दी है। सॉलिसीटर जनरल ने इस आरोप को ख़ारिज करते हुए कहा कि, “अगर याचिकाकर्ता ऐसी बात कहेंगे तो मैं भी कहा सकता हूं कि “यहां बहुत से प्रोफेशनल जनहित याचिकाकर्ता बैठे हैं. यह लोग पीआईएल की आड़ में उन लोगों की तरफ से याचिका करते हैं, जो कोई पद पाने की रेस में पीछे छूट गए हैं. इस मामले में याचिकाकर्ता का कोई मौलिक अधिकार प्रभावित नहीं हुआ है कि सीधे सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो.”

एडवोकेट भूषण ने कहा, “मैंने ऐसा मामला कभी नहीं देखा, जहां सरकार कानून के शासन का इतना खुला उल्लंघन करती हो। उसे हर नियम का उल्लंघन कर सेवा विस्तार दिया जाता है! जिस तरह से रिटायरमेंट के 4 दिन पहले अस्थाना को नई नियुक्ति दी गई, वह पूरी तरह अवैध है” इसे तुरंत खारिज किया जाना चाहिए। जिसके बाद केंद्र के वकील ने 2 हफ्ते की समय सीमा का विरोध किया था। लेकिन कोर्ट ने कहा कि अब सभी पक्ष हाई कोर्ट में ही अपनी बात रखें.
https://www.youtube.com/watch?v=o5SEBpxR1-o