जनतंत्र डेस्क, नई दिल्ली: हरियाणा के लोगों के लिए प्राइवेट सेक्टर की नौकरियों में 75 प्रतिशत आरक्षण के फैसले पर हाई कोर्ट की रोक को सुप्रीम कोर्ट ने हटा दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाते हुए कहा कि हाईकोर्ट इस पर एक महीने के भीतर आखिरी फैसला ले।
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सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि इस दौरान वह नौकरी देने वालों के विरुद्ध किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं कर सकती है। इससे पहले तीन फरवरी को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने सरकार के आरक्षण देने के इस फ़ैसले पर रोक लगा दी थी।
हरियाणा में निजी सेक्टर में स्थानीय लोगों को 75 प्रतिशत आरक्षण देने वाले विधेयक को राज्यपाल सत्यदेव नारायण आर्या ने मार्च 2021 में मंजूरी दे दी थी। विधानसभा में यह विधेयक पास भी हो गया था। विधेयक के तहत हरियाणा में स्थित प्राइवेट कंपनी या फैक्ट्री में 75 प्रतिशत नौकरियों में हरियाणा के स्थानीय निवासियों को भर्ती करना अनिवार्य होगा। बचे हुए 25 प्रतिशत में राज्य के बाहर के लोगों को भर्ती किया जा सकता है।
क्या कहता है कानून
ये कानून 50 हजार रुपए प्रति माह से कम वेतन वाली नौकरियों पर लागू होगा। राज्य में चल रही उन कंपनियों, सोसाइटी, ट्रस्ट, फर्म पर यह नियम लागू होगा, जिनमें 10 से ज्यादा कर्मचारी हैं। सभी कंपनियों को 3 महीने में सरकार के पोर्टल पर बताना होगा कि उनके यहां 50 हजार तक के वेतन वाले कितने पद हैं और इन पर काम करने वाले कितने लोग हरियाणा के निवासी हैं।
डेटा अपलोड करने तक कंपनियां नए लोगों को नौकरी पर नहीं रख सकतीं। कानून में ये भी है कि कंपनी प्रबंधन चाहे तो एक जिले से 10% से ज्यादा कर्मचारी रखने पर रोक लगा सकता है। हर कंपनी को हर तीन महीने में इस कानून को लागू करने की स्टेटस रिपोर्ट सरकार को देनी होगी।
कानून का पालन ना करने वाली कंपनियों पर इस बिल के प्रावधानों के तहत कार्रवाई होगी। इसमें पैनल्टी लग सकती है और सब्सिडी रद्द की जा सकती है। यह कानून अगले 10 साल तक लागू रहेगा।
हरियाणा सरकार का कहना है कि इससे राज्य के युवाओं को आगे बढ़ने के मौके मिलेंगे। सस्ते श्रम से राज्य के संसाधनों पर पड़ रहा दबाव कम होगा। लेकिन उद्योग संगठन इस बात से चिंता में हैं कि स्किल्ड लेबर मिलेंगे या नहीं। वहीं, चिंता बाहरी लोगों को भी नौकरी की है।