जनतंत्र डेस्क, नई दिल्ली: पोंगल उत्सव के दौरान होने वाला तमिलनाडु का पांरपरिक खेल जल्लीकट्टू इस साल 17 जनवरी को होगा। हर साल बैलों को काबू करने का ये खेल 16 जनवरी को खेला जाता है लेकिन इस साल कोविड के चलते इसे 17 जनवरी को खेला जाना है। कोरोना को देखते हुए राज्य में वीकेंड कर्फ्यू लागू है। इसलिए जल्लीकट्टू एक दिन बाद होगा।
तमिलनाडु सरकार ने कोविड के सख्त नियमों के साथ जल्लीकट्टू के आयोजन की मंजूरी दे दी है। सरकारी आदेशानुसार, कार्यक्रम के आयोजकों और प्रशिक्षणकर्ताओं का डबल वैक्सीनेटेड होना जरूरी है। इसके लिए उन्हें वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट दिखाना होगा। इसके अलावा खेल से जुड़े सभी लोगों को 48 घंटे पहले की RT-PCR टेस्ट रिपोर्ट भी दिखानी होगी। कार्यक्रम में शामिल होने के लिए उन्हें खास पहचान पत्र भी दिया जाएगा। सरकार ने जल्लीकट्टू देखने वालों की संख्या 150 ही रखी है।
सांडो को काबू करने का खेल
जल्लीकट्टू तमिलनाडू का मुख्य खेल है जो पोंगल पर खेला जाता है। इस खेल में सांडो को काबू किया जाता है। इसके लिए उन्हें बंद जगह से आजाद किया जाता है और बाहर उन्हें काबू करने वालों की फौज खड़ी रहती है। सांड को खोलते ही वह बेकाबू होकर बाहर निकलता है। खेल में भागते हुए सांड के कूबड़ को पकड़ना होता है। इसके अलावा सांड के सींग से बंधे कपड़े को भी पकड़कर खोलना होता है। उस कपड़े में सिक्का बंधा होता है। इस खेल को देखने के लिए दर्शकों की भारी भीड़ जमा हो जाती है।
जल्लीकट्टू का मतलब
जल्लीकट्टू में जल्ली का मतलब है तमिल में सल्ली से है। सल्ली का मतलब सिक्का होता है। जबकि कट्टू का मतलब ‘बांधा हुआ’ से है। जल्लीकट्टू तमिलनाडू की प्राचीन पंरपरा से जुड़ा ग्रामीण खेल है। कहा जाता है यह तकरीबन हजारों सालों से खेला जा रहा है।
बैलों को दी जाती है विशेष ट्रेनिंग
जल्लीकटटू में विशेष रूप से प्रशिक्षित बैलों को शामिल किया जाता है। इसके लिए बैलों के मालिक उन्हें कई महीनों पहले से ही खिला-पिलाकर तैयार करते हैं। खेल में शामिल होने के लिए बैलों का मेडिकल टेस्ट भी होता है। खेल में बेकाबू बैलों को काबू करना आसान नहीं होता। इस दौरान कई लोग चोटिल भी हो जाते हैं। लेकिन खेल के प्रति खिलाड़ियों और दर्शकों का जुनून कम नहीं होता। खेल में जीतने वाले को इनाम भी दिया जाता है।
जल्लीकट्टू पर विवाद
पिछले कुछ सालों में जल्लीकट्टू को बंद करने की मांग भी की गई। एक पशुप्रेमी संस्था ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। याचिकाकर्ता ने कहा कि, इस खेल के दौरान जानवरों पर अत्याचार किया जाता है साथ ही इसमें सैकड़ों लोगों के घायल होने और जान गंवाने के भी कई मामले हैं। जल्लीकट्टू को हिंसक मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट ने साल 2014 में इस खेल पर रोक लगा दी थी, लेकिन तमिलनाडू के लोग, राजनेता और सुपरस्टार इस आदेश के खिलाफ एक हो गए और खेल को पंरपरा और आस्था का हवाला देते हुए जारी रखने की मांग की। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट को फिर से जल्लीकट्टू की मंजूरी देनी पड़ी।