लीडरशिप के बिना तालमेल और बिना तालमेल न तो कोई समूह सही तरीके से काम कर सकता है और न ही कोई संस्था । मेघालय के जयंतिया हिल्स की अवैध खदानों में फंसे मजदूरों की अगर बात की जाये। तो वो मजदूर अगर बीते 17 दिनों से अगर अभी तक खदान के अंदर ही हैं तो ये सिर्फ और सिर्फ एजेंसियों के बीच तालमेल और लीड़रशिप की कमी के कारण ही हुआ है।
दरअसल हुआ ये कि बीते 13 दिसंबर को मेघालाय के जयंतिया हिल्स के अवैध खदानों में पास की ही एक नदी का पानी भरने लगा, ये खदान 370 फीट गहराई की बताई जा रही है। इसी जल भराव के कारण वहां मौके पर मौजूद कुछ मजदूर भागने पर तो कामयाब रहे पर वहीं 13 मजदूर फंस गये । अजीब बात तो ये है कि यहां पहुंची एनडीआरएफ को एक दिन का समय यह समझने में ही लग गया कि यहां से पानी निकालने के बगैर कोई भी बचाव कार्य नहीं किया जा सकता ।
चौकाने वाली बात तो ये है कि हमारी नौसेना के पास ऐसे ऑपरेशन करने के लिए उपकरण व गोताखोर मौजूद हैं,पर उसे घटना स्थल तक पहुंचने में 16 दिन लग गये । ओडिशा स्टेट फायर फाइटर 10 पंप के साथ तो जरूर घटना स्थल पर पहुंच गयी पर ये पंप बेहद साधारण थे । जबकि 300 फीट गहरी खदान से पानी निकालने के लिए कम से कम 100 एचपी के पंप की जरूरत होती है।
इस पूरी घटना में जो एक बात सबसे ज्यादा खटकती है, वो है कि भारत के पास जब राहत बचाव के सारे उपकरण गोताखोर और सारी सुविधाएं मौजूद हैं तो फिर आखिर क्यों और कैसे इस ऑपरेशन में इतनी देरी हुई?