नई दिल्ली : कृषि कानूनों के विरोध में किसानों के दिल्ली घेराव को 30 दिन बीत चुके हैं। किसानों के एक वर्ग की यह घेरेबंदी धीरे-धीरे ‘शाहीन बाग’ जैसे हालात उत्पन्न करती जा रही है। सरकार की ओर से बार-बार बातचीत के बुलावे को ठुकराकर किसान नेता संसद में पारित कानूनों को रद कराने की मांग पर अड़े हैं।
लोग अब इस घेरेबंदी को गत वर्ष के शाहीन बाग के कथित आंदोलन से जोड़कर देखने लगे हैं जब नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध के नाम पर दो माह से ज्यादा समय तक दिल्ली को बंधक बना लिया गया था। किसान संगठनों ने कुंडली-सिंघु बार्डर के अलावा टिकरी बार्डर, यूपी गेट व चिल्ला बार्डर को भी जाम कर रखा है।
किसान आंदोलन में वामपंथी संगठनों के सदस्य-
शाहीन बाग प्रदर्शन के कर्ता-धर्ता भी इसमें शिरकत करने पहुंच गए। विभिन्न वामपंथी संगठनों के सदस्य, छात्र संगठनों का भी यहां जमावड़ा लगना शुरू हो गया और यह कथित आंदोलन पूरी तरह से सरकार विरोधी हो गया। हालांकि बाद में किसान नेताओं ने किसी भी राजनीतिक दल के साथ मंच साझा करने से इन्कार कर दिया, लेकिन मौके पर रोजाना बाहरी लोगों का जमावड़ा कुछ और ही कहानी कहता है।तीन नए कृषि कानूनों के विरोध में पंजाब की विभिन्न किसान यूनियनों ने दिल्ली चलो का नारा दिया था। इसके तहत किसानों का जत्था 27 नवंबर की सुबह कुंडली बार्डर पर पहुंचा और पुलिस से संघर्ष के बाद जीटी रोड को जाम कर वहीं बैठ गया। शुरुआत में यहां केवल पंजाब के किसानों का जमावड़ा था, लेकिन बाद में हरियाणा, दिल्ली और आसपास के कुछ किसान नेता व संगठन भी इसमें शामिल हो गए।
आरही हैं ये समस्याएं-
एक महीने से चल रही इस घेरेबंदी से सब परेशान हैं। क्षेत्र की औद्योगिक गतिविधियां पूरी तरह से ठप हो चुकी है। कुंडली और आसपास के क्षेत्रों में रहने वाले श्रमिक परेशानियों के चलते पलायन को मजबूर हैं। एसोचैम के अनुसार, आंदोलन के कारण 35 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हो चुका है। रोजाना 100 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान केवल कुंडली और नाथूपुर औद्योगिक क्षेत्र को ही हो रहा है। इससे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और देश के दूसरे शहरों से आने-जाने वाले लोग भी प्रभावित हो रहे हैं। व्यापार प्रभावित हो रहा है। छोटे व्यापारियों और कामगारों के समक्ष रोजी-रोटी के लाले पड़ने लगे हैं।