नीतीश – केजरीवाल : रिश्ता वही – सियासत नई !
झारखंड विधानसभा चुनाव (Jharkhand) में आजसू (AJSU) से गठबंधन टूटा फिर बीजेपी (BJP) की हार और उससे पहले महाराष्ट्र (Maharashtra) में शिवसेना (Shivsena) से गठबंधन टूटना और फिर बीजेपी के सत्ता से बाहर होने का असर लगता है अब बिहार (Bihar) पर भी पड़ने लगा है। अगले साल बिहार में विधानसभा (Bihar Assembly Election) की जंग होनी है, लेकिन जेडीयू (JDU) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) के ताजा बयान के बाद बिहार की सियासत गर्म हो गई है। प्रशांत किशोर ने कहा है कि बिहार विधानसभा चुनाव में लोकसभा चुनाव की तरह जेडीयू-बीजेपी के बीच 50-50 का फॉर्मूला नहीं चलेगा। उन्होंने कहा कि बिहार एनडीए (Bihar NDA) में जेडीयू ही बड़े भाई की भूमिका में है, इस नाते आगामी विधानसभा चुनाव में जेडीयू को बीजेपी की तुलना में अधिक सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए। जेडीयू उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर का बयान सियासत के इसी पहलू की तरफ भी इशारा कर रहा है। झारखंड में बीजेपी ने आजसू, जेडीयू और एलजेपी (LJP) से अलग होकर चुनाव लड़़ा। सीट बंटवारे को लेकर ही यहां एनडीए का गठबंधन टूटा और इसका नुकसान बीजेपी को उठाना पड़ा।
झारखंड में हार के बाद बिहार में बीजेपी पर उसके सहयोगी दल दबाव बढ़ाने की स्थिति में आ गए हैं और जेडीयू ने इसे आजमाना शुरू कर दिया है। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले सीट बंटवारे के अलावा भी कई मुद्दें है, जिन पर बीजेपी और जेडीयू में सहमति नहीं है। इसमें सबसे बड़ा मुद्दा NRC है। हालांकि जेडीयू ने नागरिकता कानून यानि CAA को लेकर केंद्र सरकार का समर्थन किया था और संसद के दोनों सदनों में विधेयक के पक्ष वोटिंग की थी, लेकिन NRC के मुद्दे पर जेडीयू ने बीजेपी से अलग रुख अपना लिया है। नीतीश कुमार ने हाल ही में बयान दिया है कि बिहार में एनआरसी लागू नहीं होगा। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी-जेडीयू के रिश्तों पर इसका असर पड़ना भी तय है।
लेकिन सवाल ये भी है कि क्या जेडीयू ने सिर्फ बिहार चुनाव के ही मद्देनज़र ये रणनीति अपनाई है, तो जवाब है शायद नहीं, क्योंकि जेडीयू के इस रुख के पीछे उसका लंबा चौड़ा सियासी प्लान साफ नज़र आ रहा है और भले ही फ्रंटफुट पर प्रशांत किशोर दिख रहे हैं लेकिन इसके पीछे कहीं न कहीं दिमाग नीतीश कुमार (Nitish Kumar) का है और बिहार से पहले नीतीश की नजर अगले साल की शुरुआत में होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव (Delhi Assembly Election) पर भी है। तभी तो उनकी पार्टी के उपाध्यक्ष दिल्ली में केजरीवाल की पार्टी के मुख्य चुनाव रणनीतिकार बन गए हैं। हालांकि प्रशांत किशोर ये दावा करते हैं कि वो एक प्रोफेशनल के तौर पर आम आदमी पार्टी (AAP) की मदद कर रहे हैं, राजनेता के तौर पर नहीं। बावजूद इसके ये स्थिति बीजेपी और जेडीयू गठबंधन के लिए आदर्श नहीं हो सकती।
फिर ये भी है कि इसी साल अक्टूबर में दिल्ली आए नीतीश कुमार ने ये ऐलान भी किया था कि उनकी पार्टी दिल्ली का विधानसभा चुनाव लड़ेगी तो फिर कैसे उनकी पार्टी का एक वरिष्ठ नेता सियासी विरोधी का रणनीतिकार बन सकता है ? तो आपको बताते हैं यहां भी एक रणनीति वाला पेंच है। क्योंकि नीतीश कुमार की दिल्ली के सीएम केजरीवाल से नजदीकी भी बीजेपी के लिए गाहे-बगाहे असमंजस की स्थिति पैदा करती रही है। पिछले महीनों में नीतीश कुमार कई बार दिल्ली आकर केजरीवाल से मुलाकात कर चुके हैं। पिछले चुनाव में उन्होंने दिल्ली में अपना कोई उम्मीदवार नहीं उतारा था, इस बार उतारेंगे लेकिन एक सोची समझी योजना के तहत।
जानकार कहते हैं कि जेडीयू आम आदमी की मदद ही करने उतर रही है। फिलहाल दोनों ही पार्टियों की नजरें दिल्ली के पूर्वांचलियों पर ही हैं क्योंकि 70 सीटों वाली दिल्ली विधानसभा में कम से कम 25-30 सीटों पर पूर्वांचल के लोग ही निर्णायक हैं। जाहिर है ये वोटबैंक दिल्ली की सरकार बनने में इनकी अहम भूमिका है और आगे जाकर ये बिहार के लिए भी अहम रोल निभा सकते हैं, फिर जब एक जैसी ही सियासी जरुरत है फिर साथ आने में क्या हर्ज ? वैसे भी सियासत का तो पुराना चलन है यहां पर रिश्ता या गठबंधन सियासी नफे नुकसान की कसौटी पर ही कसा जाता है ।
– वासिन्द्र मिश्र