जनतंत्र डेस्क, जोधपुर: अंधेरी रातें लेकिन सूनसान सड़कें नहीं। मेले जैसी रौनक लगी हुई है महिलाएं सोलह श्रृंगार कर सज-धज कर बाहर निकली हैं लेकिन सिर्फ महिलाएं। मंगलवार रात राजस्थान का जोधपुर जिला जाग रहा था। सूर्यनगरी सूरज की तरह चमक रही थी। गलियों में रंग-बिरंगी लाइट्स सजी हुई थी। जगह जगह झांकी और स्टेज लगे हुए थे। ये नजारा था सूर्यनगरी के फेमल धींगा गवर फेस्टिवल का।
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इस फेस्टिवल में सोलह शृंगार के साथ गवर माता विराजित थीं। इस फेस्टिवल में रात को महिलाएं ही निकलती हैं अगर इस दौरान सड़क पर कोई लड़का दिख गया तो उसे बेंत मारी जाती है। बेंत किसी कुंवारे लड़के को लग जाए तो उसकी जल्द शादी हो जाती है। ऐसे में वो युवक महिलाओं से मार खाना चाहते हैं जिनकी शादी नहीं हो रही।
धींगा गवर महोत्सव में महिलाओं ने भी तरह-तरह के स्वांग रच रखे थे। कोई केसरिया साफा बांधे थी तो किसी ने काली का रूप धर रखा था। रातभर शहर में सिर्फ महिलाओं का राज था।
563 साल पुरानी है परंपरा
563 साल पुरानी परंपरा जोधपुर की स्थापना राव जोधा ने 1459 में की थी। मान्यता है कि धींगा गवर पूजन तभी से शुरू हुई है। राज परिवार से इस पूजन की परंपरा शुरू हुई थी। पिछले 563 सालों से यह पूजा चली आ रही है। पूजन करने वाली महिलाओं को तीजणियां कहा जाता है।
मान्यता है कि मां पार्वती के सती होने के बाद जब दूसरा जन्म लिया तो वे धींगा गवर के रूप में आई थी। इसलिए मां गवर की पार्वती के रूप में भी पूजा होती है। भगवान शिव ने ही मां पार्वती को इस पूजन का वरदान दिया था। इसके बाद से धींगा गवर की पूजा होती है।
16 दिन तक इसका पूजन होता है। 16वें दिन पूरी रात महिलाएं घर से बाहर रहती हैं। देर रात अलग-अलग समय में धींगा गवर की आरती की जाती है। महिलाएं पूजन के बाद अपने हाथ में बेंत लेकर निकलती हैं।
धींगा गवर की अनूठी पूजा करने वाली महिलाएं (तीजणियां) दिन में 12 घंटे निर्जला रहती हैं। नमक हाथ तक नहीं लगाती हैं। इस पूजा के नियम कठोर रहते हैं। महिलाएं दिन में एक समय खाना खाती हैं। अच्छे पति के लिए भी यह पूजा की जाती है। महिलाओं के साथ युवतियों ने भी धींगा गवर के दौरान पूजा अर्चना कर अच्छे पति की कामना की। इस सेलिब्रेशन में देशी सैलानियों के साथ साथ विदेशियों ने भी शिरकत की। कोविड के कारण दो साल बाद धींगा गवर फेस्टिवल हुआ है।