नई दिल्ली : भारत सरकार ने पूरे देश को कोरोना जैसी महामारी से बचाने के लिए 21 दिन के लिए लॉकडाउन किया हुआ है, इस बीच हम आपको एक ऐसे गरीब परिवार का दर्द बताने रहे हैं जो शायद अपने कभी नहीं सुना होगा, ना ही देखा होगा की बेटियां अपने कंधों पर पिता को श्मशान लेकर जा रही हों।
संजय गुप्ता बन्नादेवी क्षेत्र के नगला कलार में अपने परिवार के साथ रहता था, संजय की उम्र 42 वर्ष थी,परिवार में पत्नी अंजू और पांच बेटियां हैं। बड़ी बेटी काजल की शादी हो चुकी है। वहीं बेटी अंजू का कहना है कि पिता को टीबी की बीमारी थी उनका निजी जिला अस्पताल में इलाज चल रहा था इन दिनों लॉकडाउन की वजह से अस्पताल में डॉक्टर नहीं बैठ रहे थे, जिसके चलते इनकी दवाई रुक गई थी, और शुक्रवार को पिता जी की हालत ज्यादा खराब हो गई थी, हमने कई बार एम्बुलेंस को भी फोन किया लेकिन फोन नहीं मिला और एम्बुलेंस तब आई जब पापा की मृत्यु हो चुकी थी।
शनिवार सुबह तक कोई भी नहीं आया पापा के अंतिम संस्कार में शामिल होने क्योंकि सब लोगों के मन में कोरोना का डर बैठा हुआ है। ऐसे में बड़ी बेटी काजल और राधा ने अर्थी को आगे से कंधा दिया तो मोनी, प्रियांशी, ज्योति पीछे से भार उठाने की कोशिश कर रही थीं। संजय के छोटे भाई टिंकल उनका सहयोग कर रहे थे। मुखाग्नि भाई ने ही दी।
घर में नहीं बन रहा था खाना
बता दें कि घर के हालात को देखकर ऐसा लग रहा था कि कई दिनों से खाना नहीं बना हो घर में और एक बैग में थोड़ा सा राशन पड़ा हुआ था जो अभी हाल ही में आया था कहीं से।
परिवार के किसी भी सदस्य कोई दिक्कत नहीं
जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ. अनुपम भास्कर ने जिला कार्यक्रम समन्वयक सतेंद्र कुमार के नेतृत्व में एक टीम भेजी जांच के लिए लेकिन परिवार में किसी को कोई दिक्कत नहीं वहीं संजय का इलाज मसूदाबाद स्थित डॉ. संजय ङ्क्षसघल के यहां चल रहा था। जिला क्षय रोग केंद्र पर मरीज को स्प्यूटम कप दिया था, जिसे मरीज दोबारा लाया ही नहीं। इसलिए टीबी की पुष्टि संभव नहीं हो पाई।
प्रशासन ने की मदद की घोषणा
डीएम चंद्रभूषण ङ्क्षसह ने एसडीएम कोल संजीव ओझा को भेजकर पीडि़त परिवार को 11 हजार रुपये के साथ आर्थिक मदद की और घर में राशन डलवाया घर भी देने का अशवासन दिया।
संजय की मौत के बाद पत्नी बच्चों को लेकर चाय की दुकान पर आ गईं। यहां लोगों ने नुमाइश की ही एक दुकान में सामान रखवा दिया। किराये वाले मकान में अंजू ने ताला लगा दिया है। परिवार रोता हुआ कह रहा था कि अब कोई सहारा नहीं हैं ,पापा चाय बेचकर सौ-दो सौ रुपये कमाते थे। उसी से दाल-रोटी चल रही थी अब वो भी नहीं रहे ,घर की मजबूरी को देखकर बच्चे पढ़ाई भी नहीं कर रहे थे।