Ravidas Jayanti 2020 : जानें कौन थे संत रविदास
नई दिल्ली : आज संत रविदास जयंती Ravidas Jayanti 2020 है। संत शिरोमणि रविदास का जीवन ऐसे अद्भुत प्रसंगों से भरा है, जो दया, प्रेम, क्षमा, धैर्य, सौहार्द, समानता, सत्यशीलता और विश्व-बंधुत्व जैसे गुणों की प्रेरणा देते हैं। 14वीं सदी के भक्ति युग में माघी पूर्णिमा के दिन रविवार को काशी के मंडुआडीह गांव में रघु व करमाबाई के पुत्र रूप में जन्मी इस विभूति ने भले ही चर्मकारी के पैतृक व्यवसाय को चुना हो, मगर अपनी रचनाओं से जिस समाज की नींव रखी, वह वाकई अद्भुत है। जिस तरह विशाल हाथी शक्कर के कणों को नहीं चुन पाता, मगर छोटी-सी चींटी उन कणों को सहजता से चुन लेती है, उसी तरह अभिमान त्यागकर विनम्र आचरण करने वाला मनुष्य सहज ही ईशकृपा पा लेता है। जन्म और जाति आधारित वर्ण व्यवस्था को नकारते हुए रैदास कहते हैं- ‘रविदास ब्राह्मण मत पूजिए, जेऊ होवे गुणहीन। पूजहिं चरण चंडाल के जेऊ होवें गुण परवीन।
Ravidas Jayanti 2020 संत शिरोमणि रविदास का जीवन ऐसे अद्भुत प्रसंगों से भरा है
Ravidas Jayanti 2020 संत रैदास के इसी दर्शन को समझकर महात्मा गांधी ने अपने ‘रामराज्य’ के लिए पारंपरिक हथकरधा तथा कुटीर उद्योगों को महत्व दिया था और इसी आधार पर चलते हुए नई व्यवस्थाएं कायम हुईं। गरीबी, बेकारी और बदहाली से मुक्ति के लिए उनका श्रम और स्वावलंबन का दर्शन आज भी कारगर है। कहा जाता है कि एक बार पंडित जी गंगा स्नान के लिए उनके पास जूते खरीदने आए। बातों-बातों में गंगा पूजन की बात निकल चली। उन्होंने पंडित महोदय को बिना दाम लिए ही जूते दे दिए और निवेदन किया कि उनकी एक सुपारी गंगा मैया को भेंट कर दें।
Ravidas Jayanti के जीवन का एक प्रेरक प्रसंग है
संत की निष्ठा इतनी गहरी थी कि पंडित जी ने सुपारी गंगा को भेंट की तो गंगा ने खुद उसे ग्रहण किया। संत रविदास के जीवन का एक प्रेरक प्रसंग यह है कि एक साधु ने उनकी सेवा से प्रसन्न होकर, चलते समय उन्हें पारस पत्थर दिया और बोले कि इसका प्रयोग कर अपनी दरिद्रता मिटा लेना। कुछ महीनों बाद वह वापस आए, तो संत रविदास को उसी अवस्था में पाकर हैरान हुए। साधु ने पारस पत्थर के बारे में पूछा, तो संत ने कहा कि वह उसी जगह रखा है, जहां आप रखकर गए थे। संत रैदास अपने समय से बहुत आगे थे। उनका धर्म-दर्शन 600 वर्ष बाद आज भी प्रासंगिक है।