नई दिल्ली: Lakhimpur Kheri Violence: उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में हिंसक प्रदर्शन और मौत मामले पर सियासी रंग चढ़ता नजर आया। एक के बाद एक तमाम राजनीतिक पार्टियों के नेता लखीमपुर खीरी कूच करने लगे। हालांकि प्रशासन ने उन्हें पहले ही रोक दिया और हिंसा में मारे गए लोगों के परिवार वालों से मिलने नहीं दिया। लखीमपुर में बवाल के बाद जहां प्रियंका गांधी लखीमपुर के लिए आधी रात को ही रवाना हो गई। वहीं, समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव भी घटना के विरोध में धरने पर बैठ गए। देश की विडंबना ही है कि न सिर्फ उत्तर प्रदेश के नेता और विपक्षी पार्टियां बवाल के विरोध में लखीमपुर जाने की जिद में हैं। बल्कि देश के दूसरे राज्यों के मंत्री, नेता यहां तक की मुख्यमंत्री भी यूपी आने की होड़ में सबसे आगे दिखे।
मामला किसानों से जुड़ा था तो राजनीतिक रोटियां सिकना लाजमी था। उधर देखते ही देखते ये बवाल राजधानी लखनऊ आ पहुंचा। वहां भी गाड़ियां फूंक दी गई और माहौल तनावपूर्ण हो गया। इन सबके बीच योगी सरकार ने कई बैठकें की और दोषियों पर कार्रवाई का आश्वासन दिया। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि इस पूरे घटनाक्रम में जबावदेही किसकी ? हिंसा में मारे गए लोगों के परिवार को इन राजनीतिक हथकंडों से क्या? मामला बढ़ता गया और प्रशासन हाथ पे हाथ धरे बैठा रहा।
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने किसान महापंचायत नाम के संगठन की अर्जी पर सुनवाई करते हुए इस तरह के हिंसक प्रदर्शनों पर सख्त टिप्पणी की है। साथ ही सवाल भी पूछा है कि जब कोई शांतिपूर्ण प्रदर्शन हिंसक बन जाता है तो ये जिम्मेदारी किसकी होगी। सुप्रीम कोर्ट ने लखीमपुर खीरी की घटना का जिक्र करते हुए कहा जब ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं होती हैं तो कोई भी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं होता है। अदालत ने नाराजगी जताते हुए कहा कि प्रदर्शनकारी दावा तो करते हैं कि उनका प्रदर्शन शांतिपूर्ण है, लेकिन जब वहां हिंसा होती है तो कोई जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार नहीं होते हैं। वहीं केंद्र की तरफ से पेश अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि लखीमपुर खीरी जैसी घटनाओं को रोकने के लिए किसानों के विरोध प्रदर्शन पर तुरंत रोक लगाने की जरूरत है।
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कानूनों के लागू होने पर रोक तो विरोध क्यों- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने किसान संगठनों से सवाल किया कि जब कृषि कानूनों के अमल पर अभी रोक है तो इसके खिलाफ हो रहे प्रदर्शन रुक क्यों नहीं रहे? वहीं, किसान महापंचायत ने शीर्ष अदालत से मांग की थी कि उन्हें दिल्ली के जंतर-मंतर पर सत्याग्रह करने की परमिशन दी जाए।
आंदोलन पर सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी उठाए थे सवाल
इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने किसानों के आंदोलन पर सवाल उठाए थे। कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा था कि लंबे समय से विरोध कर रहे किसानों ने पूरे शहर का गला घोंट दिया है, और अब शहर के अंदर आकर उत्पात मचाना चाहते हैं। क्या शहर के लोग अपना कारोबार बंद कर दें या आपके प्रदर्शन से लोग खुश होंगे?