सियाचिन ग्लैशियर में दिखेगी पर्यटन की रौनक, कठिन परिस्थितियों में भी डंटे रहते हैं सैनिक
नई दिल्ली : विश्व की सबसे सुंदर घाटियों में से एक सियाचिन ग्लैशियर दूर से देखने में जितना खूबसूरत और सुहाना लगता है, पास से उतना ही खतरनाक है। जरा सोचिए सेना के जवानों की जिंदगी कैसी होगी इस बर्फीली जगह में और क्या कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ता है सेना के जवानों को ? लेकिन बावजूद इसके सेना के जावन यहाँ मुस्तैदी से डटे रहते हैं, वो भी देश की रक्षा के लिए।
दुनिया का सबसे ऊंचा और अनोखा रणक्षेत्र
ज़मीन ऐसी बंजर और दर्रे इतने ऊँचे कि सिर्फ़ पक्के दोस्त और कट्टर दुश्मन ही वहां तक पहुंच सकते हैं। ऐसा है सियाचिन का नज़ारा। दुनिया का सबसे ऊंचा और अनोखा रणक्षेत्र। अगर नाम के मतलब पर जाएं तो सिया मतलब गुलाब और चिन मतलब गुलाबों की घाटी। मगर भारत-पाकिस्तान के सैनिकों के लिए ये जगह गुलाब के कांटे काफ़ी चुभने वाले साबित हुए हैं। समुद्र तल से 16 से 18 हजार फीट ऊंचाई पर सियाचिन ग्लेशियर के एक तरफ पाकिस्तान की सीमा है तो दूसरी तरफ चीन की सीमा अक्साई चीन इस इलाके में है। दोनों देशों पर नजर रखने के हिसाब से ये क्षेत्र भारत के लिए काफी खास है।
दुशमन की गोली से ज्यादा बेरहम मौसम
दुनिया का सबसे ऊंचा रणक्षेत्र सियाचिन में दुशमन की गोली से ज्यादा बेरहम मौसम होता है। सियाचिन में भारतिय सैनिकों की तैनाती का एक कड़वा सच है। इस बर्फीले रेगिस्तान में जहां कुछ नहीं उगता, वहां सैनिकों की एक दिन की तैनाती का खर्च 4 से 8 करोड़ रुपये तक आता है, फिर भी भारतीय सेना यहां पर कई दशकों से तैनात हैं और दुशमनों के नापाक इरादे को नाकामयाब कर रही हैं। सियाचिन ग्लेशियर में भारतीय फौज की करीब 150 पोस्ट हैं, जिनमें करीब 10 हजार फौजी तैनात रहते है। अनुमान है कि सियाचिन की रक्षा पर साल में 1500 करोड़ रुपए खर्च किए जाते है। सियाचिन में अक्सर दिन में तापमान 40 डिग्री नीचे और रात में माइनस 70 डिग्री तक चला जाता है।
चाह कर भी सेंध नहीं लगा सकता पाकिस्तान
सियाचिन में भारतीय फौजों की किलेबंदी इतनी मजबूत है कि चाह कर भी पाकिस्तान इसमें सेंध नहीं लगा सकता। ऐसा इसलिए है क्योंकि 1984 में पाकिस्तान सियाचिन पर कब्जे की तैयारी में था। जानकारी मिलने पर सेना ने ऑपरेशन मेघदूत लॉन्च किया और 13 अप्रैल 1984 को सियाचिन ग्लेशियर पर भारत ने कब्जा कर लिया। 2003 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम संधि हो गई। उस समय से इस क्षेत्र में फायरिंग और गोलाबारी होनी बंद हो गई है। इस ग्लेशियर के ऊपरी भाग पर फिलहाल भारत और निचले भाग पर पाकिस्तान का कब्जा है।
कठिन परिस्थितियों में डंटे रहते हैं सैनिक
ये जानकर आपको हैरानी होगी कि हज़ारों फ़ुट ऊँचे पहाड़ या हज़ारों फ़ुट गहरी खाइयां, न पेड़-पौधे, न जानवर, न पक्षी। यहां पर तैनात सैनिक चौकियों पर जाने के लिए एक के पीछे एक लाइन में चलते हैं और एक रस्सी सबकी क़मर में बंधी होती है। क़मर में रस्सी इसलिए बांधी जाती है क्योंकि बर्फ़ कहां धंस जाए, इसका पता नहीं रहता और अगर कोई एक व्यक्ति खाई में गिरने लगे तो बाकी लोग उसे बचा सकें। ऑक्सीजन की क़मी होने की वजह से उन्हें धीमे-धीमे चलना पड़ता है और रास्ता कई हिस्सों में बंटा होता है। साथ ही ये भी तय होता है कि एक निश्चित स्थान पर उन्हें किस समय तक पहुंच जाना है और फिर वहां कुछ समय रुककर आगे बढ़ जाना है। इसी से अंदाजा लगया जा सकता है कि पहाड़ों के बीच पहाड़ सी मुश्किलों के साथ चलता है सैनिकों का जीवन।
यहां से लेह, लद्दाख और चीन के कुछ हिस्सों पर नजर रखने में भारत को मदद मिलती है। और अब यही सियाचिन पर्यटकों की आवभगत के लिए तैयार हो चुका है। जल्द ही सियाचिन में आने वाले पर्यटकों की रौनक देखी जा सकेगी।