जनतंत्र डेस्क, नई दिल्ली: जमाने के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने में हमने कंक्रीट के जंगल खड़े कर लिए। नतीजा अब पक्षियों की चहचहाहट नहीं होती। नन्ही चिड़िया छोटे छोटे पैरों से अब हमारे घर इधर उधर नहीं फुदकती। घर की खिड़की पर अपनी चोंच नहीं मारती। विश्व गौरैया दिवस पर चिड़िया के संरक्षण की बात कही जा रही है लेकिन बड़ा सवाल है कि इनकी रक्षा कैसे होगी। विलुप्त होती इनकी प्रजाति कैसे बढ़ेगी।
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फसलों के लिए कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल होने लगा, 2जी, 3जी और 4जी के बाद 5जी भी आ जाएगा। मोबाइल टावर से निकलने वाले रेडिएशन परिंदो के लिए जानलेवा हो गए। आज कल घर इस तरह डिजाइन किए जाने लगे कि यहां गौरेया अपना बसेरा नहीं लगा सकती। चिड़िया के लिए घरों का माहौल अब घोंसला बनाने का नहीं रहा। ऐसे में गौरैया गांव तक रह गई है और गांव में भी कच्चे घर बनना लगभग बंद हो गए। जरूरत है घर बनाते समय पक्षियों के लिए भी सोचा जाए। ताकि उन्हें उपयुक्त माहौल मिल सके।
पक्के मकानों में भी ओट के सहारे गौरैया अपना आशियाना बना सकती है लेकिन वो ओट तो हो। वहीं, घर का छोटा सा हिस्सा पर्यावरण और पक्षियों के अनुकूल बनाया जा सकता है। वहीं, हर साल भीषण गर्मी में परिंदों का दाना पानी छिन जाता है। दाना चुगने चिड़िया मीलों दूरी तय करती है। क्योंकि अब घरों में इन पक्षियों के लिए दाने नहीं डाले जाते, बर्तन में पानी भरकर रखना भी कम हो गया है। पहले घर आंगन में नन्ही चिड़िया ऐसे फुदकती थी जैसे मानों वो घर का ही हिस्सा हो। क्योंकि रोज आंगन में दाने डालना भी तो हमारी रिवाज थी। अब ना रिवाज बची न गौरेया संरक्षण की बात। इंसानों की ही कोशिश से गौरैया संरक्षण संभव है।
ऐसे मनाएं रूठी चिड़िया को
अभी भी देर नहीं हुई है आधुनिक दौर में भी हम गौरैया फिर से आंगन में फुदकता देख सकते हैं। घरों में कुछ ऐसे झरोखे रखें, जहां गौरैया घोंसला बना सके। छत पर और आंगन में अनाज के दाने बिखेरें। आंगन और छतों पर पौधे लगाएं ताकि पक्षी आकर्षित हों। फसलों में कीटनाशकों का प्रयोग न करें। घर की मुंडेर पर मिट्टी के बरतन में पानी रखें और छत पर दाना डालें। ये कुछ ऐसे तरीके हैं जिससे गौरैया फिर से हमारे घर का हिस्सा बन जाए।